जीएसटी संग्रह में लगातार वृद्धि के निहितार्थ

इस साल के मार्च महीने में भी जीएसटी संग्रहण 1.23 लाख करोड़ रुपए रहा था। नवंबर, 2020 से अब तक के एक साल के दौरान सिर्फ जून 2021 में ही जीएसटी संग्रहण 1 लाख करोड़ रुपए से कम रहा। शेष अन्य महीनों में जीएसटी संग्रहण 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है। इस तरह, ताजा जीडीपी और जीएसटी आंकड़ों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के चंगुल से तेजी से बाहर निकल रही है।

भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया, जो भारतीय रिजर्व बैंक और भारतीय स्टेट बैंक की रिसर्च टीम के अनुमान से अधिक है। भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी में 7.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान लगाया था, जबकि भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कोर्पोरेट केंद्र मुंबई ने इस अवधि में जीडीपी में 8.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान लगाया था।

जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि से 0.1 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2019 में अर्थव्यवस्था का आकार 35.61 लाख करोड़ रूपये था, जो बढ़कर 35.71 लाख करोड़ रूपये हो गया है।

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सबसे तेज गति से विकास खनन क्षेत्र में 15.4 प्रतिशत की दर से हुआ है, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में 5.5 प्रतिशत, निर्माण गतिविधियों में 7.5 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र में 4.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि चीन और अमेरिका में इस अवधि में विकास 4.9 प्रतिशत की दर से हुआ है। इस तरह, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में दुनिया में सबसे तेज गति से विकास भारत में हुआ है। भारत के बाद सबसे तेज गति से विकास तुर्की में 6.9 प्रतिशत की दर से हुआ है, जबकि जापान में विकास 1.4 प्रतिशत की दर से हुआ है।

वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में तालाबंदी के बाद सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ा था और अब इस क्षेत्र में तेज गति से विकास हो रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 50.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी, जिससे इस क्षेत्र का आकार 1.30 लाख करोड़ रूपये के दायरे में सिमट कर रह गया लेकिन अब इस क्षेत्र का आकार कोरोना काल से पहले की स्थिति से महज 660 करोड़ रुपए पीछे रह गया है।

वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में 24.4 प्रतिशत की दर से गिरावट दर्ज की गई थी। बाद में अक्टूबर से नवंबर महीने के दौरान इसमें 0.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। पुनः जनवरी 2021 से मार्च 2021 के दौरान जीडीपी में 1.6 प्रतिशत और अप्रैल से जून महीने में 20.1 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई।

साभार : India TV News

वर्ष 2021 में अप्रैल से अक्टूबर महीने के दौरान राजकोषीय घाटा पूरे साल के बजटीय लक्ष्य का 36.3 प्रतिशत रहा, जो यह दर्शाता है कि राजस्व संग्रहण में तेजी आ रही है साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में भी बेहतरी आ रही है। इस अवधि के दौरान कुल कर संग्रहण 10.53 लाख करोड़ रुपए रहा, जबकि सरकार का कुल खर्च 18.27 लाख करोड़ रुपए रहा। इस साल, सरकार ने राजकोषीय घाटा के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जिसे मौजूदा परिदृश्य में हासिल करने की प्रबल संभावना है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रहण नवंबर महीने में 1,31,526 करोड़ रुपए रहा, जबकि अक्टूबर महीने में यह 1.30 लाख करोड़ रुपए रहा था। देश में जीएसटी लागू होने के बाद से जीएसटी का यह दूसरा सबसे ज्यादा बड़ा संग्रहण है। अब तक का सबसे ज्यादा जीएसटी संग्रहण 1.41 लाख करोड़ रुपया इस साल के अप्रैल महीने में दर्ज किया गया था।

जीएसटी संग्रहण में सीजीएसटी का हिस्सा 23,978 करोड़ रुपए रहा, आईजीएसटी का हिस्सा 66,815 करोड़ रूपये और राज्यों का हिस्सा यानी एसजीएसटी 31,127 करोड़ रुपए रहा। आईजीएसटी में 32,165 करोड़ रुपए का हिस्सा आयात का रहा, जबकि 9,607 करोड़ रुपए का हिस्सा सेस का रहा। इस साल नवंबर महीने में जीएसटी संग्रहण पिछले साल नवंबर महीने के 1.04 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक रहा है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के नवंबर महीने की तुलना में यह 27 प्रतिशत ज्यादा रहा।

अक्टूबर महीने में कुल 7.35 करोड़ ई-बिल जेनरेट हुआ था। अमूमन, ज्यादा संख्या में ई-बिल जेनरेट होने से अगले महीने जीएसटी संग्रहण में तेजी आती है। इस आधार पर एवं कुछ अन्य कारणों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि नवंबर महीने में अब तक का सबसे ज्यादा जीएसटी संग्रहण होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अभी तक सबसे ज्यादा ई-बिल जेनरेट मार्च 2021 में हुआ था, जिसके कारण अप्रैल महीने में अब तक सबसे ज्यादा जीएसटी संग्रहण हुआ। मौजूदा प्रक्रिया के तहत ई-बिल जेनरेट करने के अगले महीने जीएसटी संग्रहण का आंकड़ा जारी किया जाता है। अक्टूबर महीने में जीएसटी संग्रहण 1.3 लाख करोड़ रुपए रहा, जो वर्ष 2020 के अक्टूबर महीने के मुकाबले 34 प्रतिशत अधिक था।

जीएसटी के नियमों को अभी भी सरल एवं कारोबारियों के अनुकूल बनाने का कार्य सरकार कर रही है। इस क्रम में 27 नवंबर को जीएसटी कौंसिल की बैठक में जीएसटी दरों को और भी तार्किक बनाने के लिए जीएसटी दरों के स्लैब में बदलाव किया जाना था, लेकिन किसी कारणवश उक्त बैठक को रद्द कर दिया गया। नवंबर महीने में ई-बिल कम जेनरेट हुआ है, जिसके करण यह कयास लगाया जा रहा है कि दिसंबर महीने में जीएसटी संग्रहण कम रहेगा। नवंबर महीने में हर दिन औसतन 18.76 लाख ई-बिल जेनरेट किया गया, जबकि अक्टूबर महीने में रोजाना 23.70 लाख ई-बिल जेनरेट किया गया। हालाँकि, अर्थव्यवस्था में बेहतरी आने से आगामी महीनों में जीएसटी संग्रहण में और भी तेजी आने की संभावना बरकरार है।

चालू वित्त वर्ष के अप्रैल महीने में अब तक का सबसे अधिक जीएसटी संग्रहण होने के बाद मई महीने में 1.02 लाख करोड़ रुपए का जीएसटी संग्रहण हुआ था, जो जून महीने में घटकर 92,840 करोड़ रुपए रह गया था। पुनः, जुलाई महीने में यह फिर से 1 लाख करोड़ रुपए के पार 1.16 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुँच गया, जबकि अगस्त महीने में यह 1.12 लाख करोड़ रुपए रहा था। सितंबर महीने में यह 1.17 लाख करोड़ रूपये और अक्तूबर महीने में यह 1.30 लाख करोड़ रुपए रहा। इस साल के मार्च महीने में भी जीएसटी संग्रहण 1.23 लाख करोड़ रुपए रहा था। नवंबर, 2020 से अब तक के एक साल के दौरान सिर्फ जून 2021 में ही जीएसटी संग्रहण 1 लाख करोड़ रुपए से कम रहा। शेष अन्य महीनों में जीएसटी संग्रहण 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है।

इस तरह, ताजा जीडीपी और जीएसटी आंकड़ों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के चंगुल से तेजी से बाहर निकल रही है, लेकिन अभी ओमिक्रोन वायरस के डर से हवाई यात्रियों के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा अलग से जो दिशा निर्देश जारी किये गए हैं, वे डराने वाले हैं, क्योंकि ये दिशानिर्देश कतई तार्किक नहीं हैं। इसलिए, मामले में राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। अन्यथा, विमानन और पर्यटन क्षेत्र को फिर से नुकसान हो सकता है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)