आपदा काल में कार्यों के आदर्श रूप में निष्पादित होने की उम्मीद नहीं की जा सकती, परन्तु बावजूद इसके श्रमिकों को घर पहुंचाने की केंद्र सरकार की समुचित व्यवस्थाओं की जो कहानियाँ देशभर के श्रमिकों की जुबानी सामने आई हैं, उनके आधार पर कह सकते हैं कि आपदा में भी श्रमिक हितों के लिए मोदी सरकार ने जिस तरह काम किया है, वो आदर्श स्थापित करने वाला है।
24 मार्च को रात आठ बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना महामारी के मद्देनजर इक्कीस दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गयी। यह निर्णय पूरी तरह से सुचिंतित व सुविचारित था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य नागरिकों को इस एकदम नए और अपरिचित शत्रु से बचने के लिए व्यावहारिक तथा मानसिक रूप से तैयार करना था। दूसरा उद्देश्य यह था कि भारत जैसे विशाल व सघन आबादी वाले देश में इस आपदा से उपजने वाली संभावित परिस्थितियों के लिए व्यवस्था को तैयार किया जाए।
24 मार्च की घोषणा के बाद 25 से शुरू हुआ लॉकडाउन चार चरणों में होते हुए 31 मई तक चला जिसके बाद एक जून से देश ने अनलॉक की प्रक्रिया में प्रवेश कर लिया जो कि अब भी जारी है।
आज अनलॉक के दौर में आकर हम कह सकते हैं कि सरकार ने जिन उद्देश्यों के साथ लॉकडाउन किया था, उन्हें प्राप्त कर लिया गया है। ‘जान है तो जहान है’ से ‘जान भी, जहान भी’ तक की यात्रा में इस देश ने कोरोना महामारी के साथ जीने का ढंग बखूबी सीख लिया है।
गौर करें तो भारत अपने सामाजिक-आर्थिक स्वरूप में इतना विस्तृत और एक हद तक जटिल देश है कि यहाँ किसी बड़ी समस्या से कितनी और कैसी छोटी-छोटी समस्याएँ पैदा हो जाएंगी, इसका निश्चित पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। समस्याओं का अनुमान हो जाए तो भी उनके समाधान के लिए पूरी तैयारी एकदम से संभव नहीं। लॉकडाउन के बाद श्रमिकों का पलायन एक ऐसी ही समस्या के रूप में सामने आया।
ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन करते हुए केंद्र को दैनिक आय पर निर्भर श्रमिकों का ख्याल नहीं रहा होगा, लेकिन उसे यह उम्मीद भी रही होगी कि राज्य अपने स्तर पर श्रमिकों के लिए समुचित प्रबंध कर लेंगे। कुछ राज्यों ने यह प्रबंध किया भी, परन्तु देश के दो प्रमुख राज्यों, दिल्ली और महाराष्ट्र, की सरकारें श्रमिकों को संभालने में बुरी तरह से नाकाम रहीं।
इनकी नाकामी ने श्रमिक पलायन की समस्या को बहुत बड़ा बना दिया। सिर्फ नाकामी ही नहीं, इन राज्यों में जिस तरह अफवाहों के कारण श्रमिकों का बस अड्डों और स्टेशनों पर जुटान हुआ, उसके पीछे केंद्र के लॉकडाउन को विफल करने की गहरी राजनीतिक साज़िश होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, ने श्रमिकों के पलायन को राजनीतिक मुद्दा बनाने की भरपूर कोशिश की और यह साबित करने के लिए खूब जोर लगाया कि सरकार मजदूरों की चिंता नहीं कर रही। लेकिन ऐसा करते हुए कांग्रेस महाराष्ट्र, जहां वो सत्ता में भागीदार है, की अव्यवस्था के विषय में सन्नाटा मार जाती थी।
महाराष्ट्र के सवाल पर राहुल गांधी यह तक कहते नजर आए कि कांग्रेस महाराष्ट्र सरकार में ‘की डिसीजन मेकर’ की भूमिका में नहीं है। लेकिन इसपर कुछ नहीं कह सके कि फिर कांग्रेस वहां सरकार में भागीदार बनी क्यों बैठी है?
सिर्फ विपक्ष ही नहीं, मीडिया के एक ख़ास धड़े ने भी पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों की कब्र खोदते हुए श्रमिक पलायन के मसले पर बेहद गैरजिम्मेदाराना रुख दिखाया। एक स्वघोषित जनपक्षधर चैनल के स्वघोषित निष्पक्ष पत्रकार महोदय अपने प्राइम टाइम में जिस तरह श्रमिक पलायन के मुद्दे को उठाते नजर आए उसमें तथ्य कम लच्छेदार बातें अधिक थीं। महाराष्ट्र और दिल्ली से मजदूरों के पलायन पर इन पत्रकार महोदय के मुंह से वहाँ की राज्य सरकारों के लिए सवाल नहीं सुनाई दिए, लेकिन केंद्र को घेरने के मौके वे तलाशते नजर आए।
हम यह नहीं कह रहे कि लॉकडाउन में श्रमिकों के लिए चुनौतियाँ पैदा नहीं हुईं। यह आपदा काल था, सो समस्याएँ होनी ही थीं, लेकिन श्रमिकों की समस्याओं की आड़ में मीडिया के ख़ास धड़ों ने जिस तरह भाजपा और मोदी विरोध का एजेंडा चलाने की कोशिश की, वो उन्हें सवालों के घेरे में लाता है।
अब चूंकि यह तो कहीं नहीं लिखा कि कैमरे के सामने खड़े होकर जिस-तिस पर सवाल उठाने वालों की कोई जवाबदेही नहीं होती। बेशक उन्हें सबसे जवाब लेने का अधिकार है, लेकिन सवालों से बाहर वे भी नहीं हैं। सो कुछ जवाब उन्हें भी देने चाहिए।
बहरहाल, दिल्ली और महाराष्ट्र की अव्यवस्था के उलट देश की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य यूपी में योगी सरकार के त्वरित निर्णय और सुप्रबंधन के कारण इस तरह की कोई समस्या नहीं हुई। योगी सरकार ने न केवल राज्य में व्यवस्था को चाक-चौबंद कर कोरोना संक्रमण को नियंत्रित रखा बल्कि अन्य राज्यों में फंसे अपने श्रमिकों व छात्रों को वापस लाने का काम भी किया।
यही कारण है कि आज कोरोना संक्रमितों के मामले में दिल्ली और महाराष्ट्र जहां शीर्ष पर हैं, वहीं आबादी में इन दोनों से कहीं अधिक होते हुए भी यूपी काफी नीचे और संभली हुई स्थिति में है।
दिल्ली-महाराष्ट्र जैसे राज्यों की सरकारों ने श्रमिकों के हितों को लेकर सजगता भले न दिखाई हो, परन्तु उनके पलायन को देखते हुए केंद्र ने सक्रियतापूर्वक कदम उठाने का काम किया। श्रमिकों को सुरक्षित और सम्मानजनक ढंग से उनके घर पहुंचाने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय द्वारा 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का सञ्चालन शुरू किया गया जिसके तहत बीते छः जून तक के आंकड़ों के अनुसार, चार हजार से अधिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के द्वारा देश के अलग-अलग राज्यों से 58 लाख प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुँचाया जा चुका है। निश्चित रूप से अबतक यह आंकड़ा और भी ऊपर पहुँच गया होगा।
आपदा काल में कार्यों के आदर्श रूप में निष्पादित होने की उम्मीद नहीं की जा सकती, परन्तु बावजूद इसके श्रमिकों को घर पहुंचाने की केंद्र सरकार की समुचित व्यवस्थाओं की जो कहानियाँ देशभर के श्रमिकों की जुबानी सामने आई हैं, उनके आधार पर कह सकते हैं कि आपदा में भी नागरिकों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए कैसे काम किया जाना चाहिए, मोदी सरकार ने इसका आदर्श स्थापित किया है।
http://https://www.youtube.com/watch?v=xzVAfAgBoxI&feature=youtu.be
प्रस्तुत वीडियो में ‘जन की बात’ के संस्थापक संपादक प्रदीप भंडारी मोहाली रेलवे स्टेशन पर पहुंचे हैं। वीडियो में स्पष्ट होता है कि श्रमिकों को बसों के द्वारा स्टेशन लाया गया है। हम देख सकते हैं कि इस दौरान स्टेशन पर सबने मास्क भी लगाए हैं और सोशल डिस्टेन्सिंग का पूरा पालन भी हो रहा है। हम यह भी देखते हैं कि इस पूरी व्यवस्था में जिला प्रशासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।
बातचीत में श्रमिक बताते हैं कि वे अमेठी जा रहे हैं और सरकार द्वारा की गयी व्यवस्था से पूर्णतः संतुष्ट हैं। श्रमिक यह भी कह रहे कि जब परिस्थितियां सामान्य हो जाएंगीं तो वे वापस काम पर पुनः लौटेंगे।
इसी तरह पश्चिम बंगाल, जहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का रवैया कोरोना काल में बेहद गैर-जिम्मेदाराना और संघीय ढाँचे के प्रतिकूल रहा है, से भी केंद्र ने श्रमिक स्पेशल ट्रेनों द्वारा बड़ी मात्रा में श्रमिकों को उनके घर पहुँचाया है। बंगाल के आसनसोल परिक्षेत्र के डीआरएम ने अपने ट्विटर हैंडल पर कुछ वीडियो साझा किए हैं, जिनमें स्पेशल ट्रेनों के द्वारा अपने घर जा रहे लोग रेलवे की व्यवस्था के विषय में बता रहे हैं।
RPF & Comml. Staff of Asansol Division distributed food packets/water bottles to 8128 Passengers of Shramik Special Trains. Five such trains were dealt at Asansol Stn on 29.5.2020. Passengers were happy with the facilities provided at Asansol station and enroute in the Division. pic.twitter.com/B4H0aSM29r
— DRM Asansol (@DRM_ASN) May 30, 2020
तीस मई को साझा वीडियो में बिहार से आ रहीं एक युवती आसनसोल स्टेशन पर हो रही ट्रेनों की साफ़-सफाई, खाना दिए जाने और रास्ते में आरपीएफ के लोगों के सहयोगी रवैये के विषय में बता रही हैं। चार जून के एक वीडियो में बांद्रा से मुर्शिदाबाद जा रही एक लड़की भी इन सब व्यवस्थाओं की बात करती है।
ये कुछ उदाहरण भर हैं, ऐसे और भी अनेक वीडियो देश भर की अलग-अलग जगहों से आए हैं जिनमें सरकार व रेलवे की व्यवस्थाओं से मजदूर संतुष्ट नजर आ रहे और उनकी सराहना कर रहे हैं। बात केवल घर पहुँचाने तक की ही नहीं है, बल्कि घर पहुँचने के बाद बेरोजगार हो गए मजदूरों को आर्थिक संकट का सामना न करना पड़े इसके लिए भी मोदी सरकार ने लगातार कदम उठाए हैं। खाते में नकदी डालने, मुफ्त राशन, गैस सिलिंडर देने जैसे निर्णय इसका प्रमाण हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, जून तक बीस करोड़ महिलाओं के खाते में कोरोना राहत पैकेज के तहत दो किश्तों में बीस हजार करोड़ से अधिक की धनराशि ट्रांसफर की जा चुकी थी और तीसरी किश्त भेजने का काम भी शुरू हो गया था। इसी तरह अप्रैल से जून के बीच उज्ज्वला के लाभार्थियों को लगभग बारह करोड़ मुफ्त गैस सिलिंडर दिए जा चुके हैं और सितम्बर तक दिए जाने की योजना है।
इसी तरह लोगों को मुफ्त राशन वितरण भी हो रहा है और इस योजना को छठ तक जारी रखने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री अपने संबोधन में कर चुके हैं। सबसे ख़ास बात ये कि ये सब काम सिर्फ आंकड़ों में नहीं हुए हैं, अपितु धरातल पर भी पहुँचे हैं, जिसकी गवाही श्रमिक स्वयं दे रहे हैं।
समग्रतः श्रमिकों की जुबानी सामने आई ये कहानियाँ न केवल विपक्ष के निराधार आरोपों और एजेंडाधारी मीडिया खेमों की नकारात्मकताओं की कलई खोलती हैं, अपितु मोदी सरकार द्वारा श्रमिक हितों के लिए प्रतिबद्ध भाव से किए जा रहे कार्यों की सच्ची तस्वीर भी प्रस्तुत करती हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)