मोदी सरकार जिस तरह पूरे देश का सर्वांगीण विकास कर रही है उसमें तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। इसीलिए तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता बौखलाए हुए हैं। उन्हें डर है कि कुछ साल बाद मुख्यधारा की राजनीति में उनकी वापसी मुश्किल हो जाएगी इसीलिए वे अफवाहों के जरिए खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं।
दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली वैसे तो दिल्ली की 1731 अनधिकृत कालोनियों के 40 लाख निवासियों को मालिकाना हक देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने हेतु आयोजित की गई थी लेकिन इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने विरोधियों की जमकर खबर ली। उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाले अफवाहों के जरिए अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।
इतना ही नहीं, ये लोग उकसाने वाले बयान देकर देशवासियों को धर्म के नाम पर भड़का रहे हैं। यह 130 करोड़ देशवासियों का कानून है। जिस एनआरसी का कांग्रेस विरोध कर रही है, वह कांग्रेस शासन के दौरान बनाया गया था। जो लोग आज मोदी पर देश को धर्म के आधार पर बांटने का आरोप लगा रहे हैं, वे उस समय कहां थे?
प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममती बनर्जी और वामपंथी पार्टियों के बदले हुए बयानों को भी देश के सामने रखा। इससे नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर अफवाह फैलाकर राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे राजनेताओं को करारा झटका लगा है।
प्रधानमंत्री ने सबसे करारा उत्तर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दिया जो कुछ साल पहले तक संसद में खड़े होकर गुहार लगा रहीं थी कि बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों को रोका जाए और वहां से आए शरणार्थियों की मदद की जाए। गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम का सबसे बढ़कर विरोध ममता बनर्जी ही कर रही हैं क्योंकि इस क़ानून और इसके बाद एनआरसी के आने से उनकी राजनीतिक जमीन खिसकने वाली है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर जनमानस में व्याप्त भ्रांतियों का भी निवारण कर दिया। उन्होंने साफ किया कि यह कानून उन लोगों के लिए है जिन्होंने वर्षों से बाहर उत्पीड़न का सामना किया है और जिनके पास भारत आने के अलावा और कोई जगह नहीं है। इसका 130 करोड़ भारतीयों से कोई लेना-देना नहीं है।
इसके दायरे में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक धार्मिक उत्पीड़न के चलते आने वाले हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, पारसी आएंगे। इन समुदायों को जटिल प्रक्रिया से मुक्ति दिलाकर शीघ्रता से भारतीय नागरिकता दी जाएगी। इस कानून के बाद भी ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान या किसी अन्य देश से आने वाले मुसलमान भारत की नागरिकता नहीं ले सकेंगे।
नागरिकता कानून के खंड 6 में किसी भी विदेशी के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने के जो प्रावधान थे, वे अब भी हैं। गौरतलब है कि इसी कानून के तहत पिछले छह वर्षों में 2830 पाकिस्तानी, 912 अफगानी और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई। इनमें से अधिकांश लोग संबंधित देशों के बहुसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के पीछे असली वजह वोट बैंक की राजनीति है। इसी राजनीति के तहत 2002 के गुजरात दंगों से ही मोदी विरोधी राजनीति करके मुसलमानों को बरगलाया जा रहा है। चूंकि प्रधानमंत्री विकास की राजनीति का आगाज कर चुके हैं इसलिए वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता बौखलाए हुए हैं कि यदि एक बार यह राजनीति कामयाब हो गई तो मुसलमानों को मोदी भय दिखाकर गोलबंद करना कठिन हो जाएगा। इसीलिए विपक्षी नेता नागरिकता संशोधन अधिनियम के बहाने मोदी सरकार को घेरने में जुटे हैं।
गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में अब तक मुसलमानों को एक वोट बैंक की तरह देखा गया और उनसे अपेक्षा की जाती रही है कि वे शिक्षा, रोजगार आदि के बजाए सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट दें। वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता अपनी कुटिल चाल में कामयाब भी रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि विकास की दौड़ में मुस्लिम समुदाय पिछड़ता गया।
अब मोदी सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों का शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक विकास कर रही है। जो नेता व सरकारें आजादी के 70 साल बाद तक सभी को रोटी, कपड़ा और मकान नहीं मुहैया करा सकें उन्हें नरेंद्र मोदी द्वारा किया जा रहा देश का सर्वागींण विकास कैसे रास आएगा? गौरतलब है कि मोदी सरकार अब तक डेढ़ करोड़ बेघरों को छत मुहैया करा चुकी है। महज तीन साल में आठ करोड़ से अधिक गरीब परिवारों तक रसोई गैस पहुंच चुकी है। इसी तरह करोड़ों लोगों को शौचालय, हर गांव तक बिजली, सड़क समय से पहले पहुंचाने में कामयाब रही है मोदी सरकार।
विकास की राजनीति के जरिए मोदी सरकार पूरे देश का विकास कर रही है जिसमें तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। इसीलिए तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता बौखलाए हुए हैं और अफवाहों के जरिए खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटे हैं। लेकिन वे यह भूल रहे हैं कि देश की जनता उनकी हकीकत से अच्छी तरह परिचित हो गयी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)