देश की सर्वाधिक आबादी वाला सूबा होने के बावजूद उत्तर प्रदेश अगर आज कोरोना के केसों के मामले में काफी निचले पायदान पर है, तो इसमें योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली और नेतृत्व ही कारण है। कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना से संघर्ष में योगी ने सिद्ध किया है कि वे वास्तव में कर्मयोगी हैं।
बीते सोमवार की शाम एक दुखद खबर मिली कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के पिता का एक लम्बी बीमारी के बाद स्वर्गवास हो गया। कोविड-19 के खिलाफ मजबूती से लड़ने वाले मुख्यमंत्री योगी ने ये एलान किया कि लॉकडाउन की वजह से वह अपने पिता की अंतिम क्रिया में नहीं जा सकेंगे बल्कि प्रदेश की 23 करोड़ की जनता के कल्याण के लिये अभी मोर्चे पर डटे रहेंगे।
अंतिम संस्कार में हिस्सा नहीं लेने का निर्णय उनका बिलकुल निजी मामला है, लेकिन यह देखना होगा कि एक राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते यह उनके लिए बिलकुल ही मुश्किल नहीं था कि उत्तराखंड कार से या हेलीकाप्टर से चले जाते, लेकिन योगी ने ऐसी घोषणा करके सिद्ध किया कि वह सही मामले में कर्मयोगी हैं।
उत्तर प्रदेश में जब से कोरोना ने पैर पसारा है, योगी लगातार उससे लड़ने की मुहिम की अगुवाई कर रहे हैं। देश में ऐसे बहुत कम मुख्यमंत्री हैं जो ज्यादातर वक़्त हेल्थ वर्कर्स के साथ, डॉक्टर्स के साथ मशविरा करने में बिता रहे हों, लेकिन योगी ने ऐसा करके उन्होंने बाकी लोगों के सामने एक नजीर पेश की है।
योगी ने 11 सदस्यों की एक टीम बनाई जिससे कि इस संकटकाल में छात्रों से जुड़े मुद्दे, राशन-पानी, स्वास्थ्य व्यवस्था, साफ़ सफाई और किसानों से जुडी समस्याओं का तत्काल प्रभाव से समाधान किया जा सके। योगी के इस कदम को केंद्र ने सराहा भी और उससे प्रभावित होकर ऐसी कमिटियाँ भी बनाई कि जिससे समाज के सभी वर्गों की परेशानियों का निराकरण हो सके।
योगी की कार्यशैली को इस उदहारण से समझा जा सकता है कि जब दिल्ली द्वारा उत्तर प्रदेश की सीमा में धकेले गए मजदूरों को रातों रात उन्होंने बसों के द्वारा उनके मंतव्य पर पहुंचवाने का काम किया। यह सहज नहीं कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की सीमा में हजारों मजदूर आ जायें और आपके पास रिएक्शन टाइम महज कुछ घंटे रहें, ऐसे में योगी न केवल निर्णय लेते हैं बल्कि उस पर तुरंत अमल भी करते हैं। योगी का सुप्रबंधन ही है कि उस दिन के बाद से अब तक कोई भी मजदूर प्रवासियों का संकट उत्तर प्रदेश की धरती पर देखने को नहीं मिला है।
चूँकि कोरोना के खिलाफ लड़ाई दीर्घकालिक है, इसलिए योगी ने राज्य स्तर पर एक कोविड फण्ड बनाया है ताकि अस्पतालों में बेड की संख्या बढ़ाई जा सके व अन्य आवश्यक चीजें प्राप्त की जा सकें। इस फण्ड से कम से कम ऐसा तो होगा ही कि उत्तर प्रदेश की सरकार को राज्य स्तरीय ज़रूरतों के लिए काफी हद तक केंद्र पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इस फण्ड के ज़रिये वेंटीलेटर खरीद जा सकेगा, प्रोटेक्शन के लिए अलग से किट खरीदे जा सकेंगे और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए जरूरी सुरक्षा व संसाधन उपलब्ध कराए जा सकेंगे।
लॉकडाउन चूँकि लम्बा खींच रहा है, ऐसे में यह ज़रूरी था कि उत्तर प्रदेश के बाहर फंसे लोगों को सम्मान के साथ वापस लाया जा सके। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के छात्रों को, मजदूरों को वापस लाने के लिए अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत करके उनको वापस लाने का काम किया, यह किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं था।
ज़ाहिर है, हमारे यहाँ जिस तरह की प्रशासनिक व्यवस्था है, उसमें कुछ अधिकारी सिस्टम का फायदा उठाते हैं, योगी ने ऐसे अधिकरियों को भी किनारे लगा, चुस्त-दुरुस्त अधिकारियों को सामने आने का मौका दिया, जिससे सरकार के फैसलों पर र्वारित ढंग से अमल हो सके। जिला स्तर पर कोरोना के प्रभाव को कम करने के लिए योगी ने सबसे पहले सुनिश्चित किया कि जिले की सीमा पूरी तरह से सील हो जायें।
कोरोना संकट के दौरान मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है, ऐसे में यह ज़रूरी था कि उनके हितों का ध्यान रखा जाय, अतः मजदूरों के खाते में 1000 रूपये जमा करवाने का काम योगी सरकार द्वारा किया गया, जिससे कम से कम उनके दैनिक रोजी-रोटी का प्रबंध हो सके।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि देश की सर्वाधिक आबादी वाला सूबा होने के बावजूद उत्तर प्रदेश अगर आज कोरोना के केसों के मामले में काफी निचले पायदान पर है, तो इसमें योगी आदित्यनाथ की उपर्युक्त कार्यशैली और नेतृत्व ही कारण है। कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना से संघर्ष में योगी ने सिद्ध किया है कि वे वास्तव में कर्मयोगी हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)