अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बन चुके योगी आदित्यनाथ के प्रबंधन की सराहना विपक्ष भले न कर पा रहा हो, लेकिन यह तय है कि कोरोना के इस दौर में योगी के कामकाज ने विपक्ष के लिए सवाल उठाने के नामपर कुछ भी नहीं छोड़ा है। हालत यह है कि पार्टियां राजनीति के नाम पर रोजाना सिर्फ ट्वीटर पर ट्वीट कर ले रही हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इन दिनों मुद्दों के अभाव में विपक्ष की कमर टूट चुकी है।
कोरोना संकट से निपटने में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस कुशल प्रबंधन के साथ प्रदेश का नेतृत्व किया, न केवल प्रदेश अपितु देश की जनता भी उसकी कायल हो रही है। यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि कई विकसित देशों की तुलना में योगी सरकार ने अपने प्रदेश के करोड़ों निवासियों को इस महामारी से बचा लिया है और अब दुनियाभर में योगी की इन नीतियों को सबक के तौर पर देखा जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बन चुके योगी आदित्यनाथ के प्रबंधन की सराहना विपक्ष भले न कर पा रहा हो, लेकिन यह तय है कि कोरोना के इस दौर में योगी के कामकाज ने विपक्ष के लिए सवाल उठाने के नामपर कुछ भी नहीं छोड़ा है। हालत यह है कि पार्टियां राजनीति के नाम पर रोजाना सिर्फ ट्वीटर पर ट्वीट कर ले रही हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इन दिनों मुद्दों के अभाव में विपक्ष की कमर टूट चुकी है।
महामारी जैसे प्राकृतिक संकट से निपटना एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में विपक्षी दलों के लिए यह वह मौका था जिसमें निःसंदेह वे अपने लिए राजनीतिक अवसरों की उम्मीद लगाए होंगे। विपक्ष की सोच रही होगी कि जब योगी सरकार महामारी के जाल में फंस जाएगी और अव्यवस्था सबकुछ तहस-नहस होने लगेगा तो वे सरकार की आलोचना कर अपनी राजनीति चमकाएंगे। लेकिन जिस प्रकार योगी सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर पूरी शक्ति लगाकर काम किया और प्रबंधन को दुरुस्त रखने के लिए ग्राउंड रिपोर्टिंग तक की, वह अविस्मरणीय है।
पिछले छः साल से विपक्ष सरकार के सामने कई चुनौतियों को सजा चुका है और योगी उन तमाम चुनौतियों के मामले में अपने शानदार प्रबंधन की बदौलत दुनिया के सामने अपने कौशल का उदाहरण पेश करते दिखते रहे हैं। ऐसे में जब इस वैश्विक महामारी ने देश में प्रवेश किया तो विपक्ष चुप्पी साधे तमाशा देखता रहा।
पार्टियों को यह पता था कि जिस समस्या का समाधान अमेरिका, यूरोप और अन्य देश नहीं निकाल पाए, उस समस्या से बीजेपी की योगी सरकार किस आधार पर इतनी बड़ी आबादी वाले प्रदेश को बचा पाएगी। लेकिन योगी सरकार ने हर बार की तरह चुनौतियों का जवाब अपने कुशल अनुशासित प्रबंधन से दिया।
जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के लिए सारी अनुकूल संभावनाएं मौजूद थीं। वहीं पड़ोसी राज्य तेजी से फैलती महामारी के सामने हथियार डालते दिख रहे थे। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू था। केंद्र के कठोर कदमों पर सवाल किए जा रहे थे। वहीं खुद की असफलता का बोझ केंद्र सरकार पर मढ़ने का प्रयास भी जारी था।
उत्तर प्रदेश की सरकार दिल्ली, मुंबई, गुजरात और कई संक्रमित प्रदेशों से लौट रहे बिहार और यूपी के करीब 30 लाख कामगारों को सुरक्षित स्थानांतरित करने के प्रयास में जुटी थी। मीडिया में लगातार नकारात्मक खबरों का सिलसिला जारी था।
लेकिन इन सबके बावजूद योगी सरकार के जज़्बे में कोई कमी देखने को नहीं मिली। नकारात्मक माहौल के बावजूद योगी ने चौबीस घंटे अपनी निगरानी में एक हजार बसें गाजियाबाद बॉर्डर पर भेजीं और हजारों किलोमीटर चल कर सफर कर रहे श्रमिकों को उनके गांवों तक पहुंचाया।
इस दौरान कोटा में फंसे छात्र-छात्राओं को शहर छोड़ने का अल्टीमेटम जारी कर दिया गया। महाराष्ट्र समेत सभी प्रदेशों ने यूपी के श्रमिकों को राशन देना बंद कर दिया। तमाम तरह की मजबूरियों के बावजूद एक जिम्मेदार अभिभावक के तौर पर योगी ने इनकी समस्याओं को समझा और जिम्मेदारी अपने सिर पर ली। केंद्र सरकार से तुरंत बात की और छात्रों को लाने की व्यवस्था की। श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलवाईं गईं और लाखों प्रवासी श्रमिकों को उनके परिवार के पास लौटने की व्यवस्था की गयी।
इन सबके बीच संक्रमण के इस दौर में स्वास्थ्य परीक्षण योगी सरकार की सबसे प्रमुख प्राथमिकता थी। जरूरत के हिसाब से मुफ्त इलाज भी दिया गया। जरूरतमंदों के खातों में नकद राशि डाली गई और माहौल सामान्य होने पर सबको रोजगार भी मुहैया कराया गया। आइसोलेशन सेंटर से लेकर बाजार और रिहाइशी इलाकों को पूरी तरह से लॉक कर दिया गया।
सरकार के इन प्रयासों को जनता ने भी सिर आंखों पर लिया और अनुशासन का पालन करती दिखी। हालांकि कोरोना के साथ जंग अभी जारी है, फिर भी सरकार के हौसले के सामने यह महामारी कई मायनों में नियंत्रित दिख रही है। वहीं अब यूपी में विपक्षी पार्टियों के हालात भी कोरोना के हालात जैसे ही दिख रहे हैं। पार्टियां नियंत्रण में हैं, शांत हैं।
उधर संक्रमण काल के दौरान योगी के इन ऐतिहासिक प्रयासों को जनता सराह रही है। वर्षों से मौजूद जातिवाद टूटता नजर आ रहा है। प्रदेश के लोग सरकारी व्यवस्था से खुश हैं। प्रदेश का किसान खुश है, मेहनतकश खुश हैं।
हालांकि योगी के पास गिनाने के लिए तमाम उपलब्धियां मौजूद हैं, लेकिन इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी कि राज्य की जनता एकजुट हो रही है, उनके बीच भेदभाव टूट रहा है, वंचितों को सुविधाएं मिल रहीं हैं, हिंदू मुसलमान की राजनीति नहीं हो रही और करोड़ों परिवार अपने घरों के पास रोजगार हासिल कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त बिजली पानी की परियोजनाएं कई गुना गति से आगे बढ़ रही हैं। इन सब के बीच विपक्षी पार्टियां हो न हों अपने भाग्य का इंतजार कर रही हैं कि आखिर कब समाज में कुछ संवेदनशील मुद्दे उठें और जातियां टूटें, धर्म टूटे। लेकिन देश की आम जनता योगी और मोदी की निष्ठा को परख चुकी है। ऐसे में पार्टियों को अब राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए विकास की एक और लंबी रेखा खींचनी होगी।
आलोचना के साथ-साथ जनहित के सही कार्यों के लिए सरकार की सराहना भी करनी होगी। नकारात्मक राजनीति से परहेज करना होगा और जनसेवा के लिए सरकार के समक्ष नए पायदान हासिल करने होंगे। हालांकि अभी के हालात में विपक्ष के लिए ये सब आसान नहीं नजर आता। अभी तो देश-प्रदेश की जनता में बस मोदी और योगी का ही नाम गूँज रहा है।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)