किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिये सरकार ने बहुत से कदम उठाए हैं, लेकिन अभी और बहुत कुछ किया जाना शेष है। किसानों की समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान की नीति पर काम करने की जरूरत है। अच्छी बात है कि सरकार की नीति और नीयत दोनों ही सही दिशा में हैं, जिससे उम्मीद है कि किसानों के हित में सरकार द्वारा आगे सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
सत्ता में आने के बाद से ही कृषि सुधार राजग सरकार के मुख्य कार्य सूचियों में से एक रहा है। अपने पिछले कार्यकाल में राजग सरकार ने विभिन्न सुधारों की शुरुआत की थी, जिनमें फसल बीमा के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई), कृषि-उत्पादकता में सुधार लाने के लिये प्रधानमंत्री किसान सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई), खरीद प्रणाली में खामियों को दूर करने के लिये प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएमए-एएसएचए), उत्पादन की लागत को 1.5 गुना तक बढ़ाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा, किसानों को एक निश्चित आय सहायता प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री किसान (पीएम-किसान) योजना आदि की शुरुआत की गई।
निश्चित ही इन क़दमों का असर हो रहा है, मगर वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लिए अभी विपणन, निर्यात एवं कृषि में कुछ संरचनात्मक बदलाव लाने की भी जरूरत है। चूँकि, कृषि राज्य का विषय है, इसलिए सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी राज्य कृषि उत्पाद, पशु विपणन, कृषि उपज मंडी समिति (एपीएलएम) अधिनियम 2017 आदि को अपने यहाँ शत-प्रतिशत लागू करें। इससे देश की कृषि विपणन प्रणाली एवं कृषि कारोबारियों की मुश्किलों को दूर करने में मदद मिलेगी।
जीएसटी काउंसिल की तर्ज पर कृषि विपणन सुधार परिषद (एएमआरसी) की स्थापना भी की जा सकती है, ताकि राज्यों में कृषि विपणन सुधारों को समन्वित तरीके से लागू किया जा सके। इससे “एक देश, एक बाजार” विकसित करने में भी सरकार को मदद मिलेगी।
दूध के क्षेत्र में एक नामचीन ब्रांड बन चुके अमूल (एएमयूएल) मॉडल के अनुरूप विविध कृषि उत्पादों को विकसित करने की जरूरत है। किसानों की संस्था (एफपीओ) “द को-ऑपरेटिव मॉडल” की मदद से कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारित करने एवं विपणन में सुधार लाने में सफल हो सकती है।
देखा जाये तो देश में 14 करोड़ किसानों की आय को बढ़ाने और उनके जीवन स्तर को बेहतर करने के लिये प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधि योजना सबसे महत्वपूर्ण है। चूंकि आमतौर पर ऐसे सुधारों को लागू करने में लंबा समय लगता है। अस्तु, सरकार को प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधि योजना को कम से कम पांच सालों तक चलाना चाहिए। इससे किसानों को आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री-किसान सम्मान निधि योजना का विस्तार करने का सरकार का निर्णय एक सकारात्मक कदम है। एक अनुमान के मुताबिक 14 करोड़ किसानों को दिये जाने वाले आय समर्थन राशि को 6,000 रूपये से बढ़ाकर 8,000 रूपये करने से सरकारी खजाने पर 12,000 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। अगर ग्रामीण क्षेत्र में उपभोग में बढ़ोतरी होगी तो वहाँ विकास की गति भी तेज होगी। ऐसा होने पर वित्त वर्ष 2024 तक राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.00% से कम करने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मुख्य रूप से खाद्य फसलों, जैसे, बाजरा, दलहन, तिलहन, वार्षिक फसल जैसे, वाणिज्यिक व बागवानी से जुड़ी फसलें आदि को कवर करता है। ये फसलें बैंकों द्वारा दिये गये कुल फसली ऋण का 30% हिस्सा हैं। लिहाजा, सरकार को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सभी प्रकार के फसलों को कवर करने पर विचार करना चाहिए, जिससे बैंकों को जोखिमों का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी साथ ही साथ किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आयेगा।
चल रहे मौजूदा चलन के अनुसार, राज्य खरीफ फसलों के लिए अगस्त में और रबी फसलों के लिए दिसंबर में दिशा-निर्देशों से संबंधित अधिसूचना जारी करते हैं। मामले में सरकार को बुवाई के मौसम की शुरुआत से पहले अधिसूचना जारी करनी चाहिए अर्थात रबी फसलों के लिये सितंबर या अक्टूबर में और खरीफ फसलों के लिए मार्च या अप्रैल में। फिलवक्त, बीमा दावों का भुगतान लगभग 1 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है। इस अवधि में कई ऋण खाते गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में तब्दील हो जाते हैं, जिसके कारण किसानों को अगली बुवाई सत्र में आर्थिक सहायता नहीं मिल पाती है। इसके बरक्स प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से भुगतान प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
फसल उत्पादन में 90 से 120 दिनों का समय लगता है। राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा खरीद में 45 से 60 दिन, प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग में 45 से 60 दिन, राज्य एजेंसियों के आउटलेट्स के माध्यम से खुदरा बिक्री में 60-90 दिन आदि समय लगता है। किसानों को फसल उत्पादन और राज्य खरीद एजेंसियों द्वारा प्रदत्त रसीदों पर बैंकों द्वारा वित्त पोषण किया जाता है। कृषि से जुड़े उत्पादों पर दिये जाने वाले ऋण प्रसंस्करण चरण के बाद, लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई) या व्यापार वित्त में परिवर्तित हो जाते हैं। इतना ही नहीं कृषि से जुड़े अंतिम उत्पाद पर भी बैंक ऋण मुहैया कराते हैं। ये प्रक्रिया ठीक है, मगर इसे और भी बेहतर बनाया जा सकता है।
कहा जा सकता है कि किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिये सरकार ने बहुत से कदम उठाए हैं, लेकिन अभी और बहुत कुछ किया जाना शेष है। किसानों की समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान की नीति पर काम करने की जरूरत है। अच्छी बात है कि सरकार की नीति और नीयत दोनों ही सही दिशा में हैं, जिससे उम्मीद है कि किसानों के हित में सरकार द्वारा आगे सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)