देश का रक्षा निर्यात लगातार बढ़ रहा है। 2015-16 में जहां 2059 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात हुआ वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 13000 करोड़ रुपये को पार कर गया। इससे स्पष्ट है यदि दरवाजे खोले जाएं तो दुनिया के बाजार में भी भारतीय सैन्य उत्पाद किसी से कम नहीं ठहरेंगे। उदाहरण के लिए रूसी टी-90 टैंक के मुकाबले स्वदेशी युद्धक टैंक अर्जुन का प्रदर्शन किसी भी मामले में कमतर नहीं है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने रक्षा आयात नीति की समीक्षा की है ताकि अधिक से अधिक रक्षा उपकरणों का घरेलू स्तर पर विनिर्माण किया जाए।
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ ही मोदी सरकार रक्षा निर्यात को भी प्रोत्साहित कर रही है। सरकार को इसमें भरपूर सफलता भी मिल रही है। 2021-22 में रक्षा निर्यात 13000 करोड़ रुपये के अब तक के उच्चतम आंकड़े को पार कर गया है। इस रक्षा निर्यात में निजी क्षेत्र का योगदान 70 प्रतिशत है और बाकी 30 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र का है।
देश का रक्षा निर्यात मुख्य रूप से अमेरिका, फिलीपींस, दक्षिण-पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीकी देशों में होता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाले शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत ने मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए कई देशों से समझौता किया है।
मोदी सरकार रक्षा प्रौद्योगिकी क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) को व्यापक स्तर पर प्रोत्साहित कर रही है। सरकार एआइ से जुड़ी 75 नई तकनीकों और टूल्स को लांच करने की योजना पर काम कर रही है। इन उत्पादों में रोबोटिक्स प्रणाली, साइबर सुरक्षा, मानव व्यवहार विश्लेषण निगरानी प्रणाली, रसद और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, ध्वनि विश्लेषण और कमान, संचार, कंप्यूटर और सूचना प्रणालियों के साथ डाटा विश्लेषण के कार्यक्षेत्र जुड़े हैं। इन 75 उत्पादों के अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े अन्य 100 उत्पाद व प्रौद्योगिकी विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
देश का रक्षा निर्यात लगातार बढ़ रहा है। 2015-16 में जहां 2059 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात हुआ वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 13000 करोड़ रुपये को पार कर गया। इससे स्पष्ट है यदि दरवाजे खोले जाएं तो दुनिया के बाजार में भी भारतीय सैन्य उत्पाद किसी से कम नहीं ठहरेंगे। उदाहरण के लिए रूसी टी-90 टैंक के मुकाबले स्वदेशी युद्धक टैंक अर्जुन का प्रदर्शन किसी भी मामले में कमतर नहीं है।
इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने रक्षा आयात नीति की समीक्षा की है ताकि अधिक से अधिक रक्षा उपकरणों का घरेलू स्तर पर विनिर्माण किया जाए। रक्षा मंत्रालय ने अब तक 200 से अधिक रक्षा उपकरणों की सूची जारी की है जिन्हें अब विदेश से नहीं खरीदा जाएगा। इसके लिए देश में ही सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में रक्षा अनुसंधान, डिजाइन और विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 358 निजी कंपनियों को विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने के लिए 584 रक्षा लाइसेंस जारी किए हैं। इनमें हथियार निर्माण के लिए 107 लाइसेंस शामिल हैं। साथ ही सरकार ने लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया का सरलीकरण, इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (IDEX) पहल का शुभारंभ किया है।
दुनिया के सबसे बड़े सैन्य आयातकों में शामिल भारत अपनी जरूरत का साठ प्रतिशत से अधिक सैन्य साजो-सामान विदेश से खरीदता है। इसका कारण है कि हम सैन्य साजो-सामान के विकास की सुध तब लेते हैं जब हमें खरीद की जरूरत होती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि मोदी सरकार रक्षा उत्पादन में दूरगामी नीतियों पर काम कर रही है।
रक्षा उत्पादन में स्टार्टअप कंपनियां महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। विदेशों से आयात की जाने वाली रक्षा तकनीकों को स्वदेशी स्टार्टअप कंपनियां अब तेजी से तैयार करने लगी हैं। रक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल के दौरान 14 ऐसी महत्वपूर्ण रक्षा तकनीकों को भारत में तैयार करने में सफलता मिली है, जिन्हें अभी तक विदेशों से आयात किया जा रहा था। रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से इनके आयात में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है। दूसरे, इससे हर साल भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि आज दुनिया भर में भारत में बनी बुलेटप्रूफ जैकेट की मांग है। भारत 100 से ज्यादा देशों को राष्ट्रीय मानक की बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्यात कर रहा है। फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की आपूर्ति के लिए 375 मिलियन डॉलर का समझौता हुआ।
इंडोनेशिया भी ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिए बातचीत कर रहा है। कई देशों के साथ तेजस को लेकर वार्ता चल रही है। मोदी सरकार 2047 तक 20 भारतीय रक्षा निर्माण कंपनियों को दुनिया के शीर्ष 100 रक्षा उद्यमों में शामिल करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)