भारत-आस्ट्रेलिया ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, सीमा पार संगठित अपराध से निपटने में सहयोग, विमानन सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और औषधि इत्यादि क्षेत्रों में एकदूसरे का सहयोग करने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर द्विपक्षीय संबंधों को नए आयाम देने के साथ आपसी कारोबार एवं भू-सामरिक साझेदारी की नींव रख दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की केमेस्ट्री देखते ही बनी जब दोनों ने सांस्कृतिक संबंधों को सारगर्भित करते हुए समवेत रुप से अक्षरधाम मंदिर प्रांगण में स्थित स्वामी नारायण की मूर्ति का जलाभिषेक किया।
पिछले दिनों आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों को नयी सुगंधियों से भर दिया। दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, सीमा पार संगठित अपराध से निपटने में सहयोग, विमानन सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और औषधि इत्यादि क्षेत्रों में एकदूसरे का सहयोग करने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर द्विपक्षीय संबंधों को नए आयाम देने के साथ आपसी कारोबार एवं भू-सामरिक साझेदारी की नींव रख दी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की केमेस्ट्री देखते ही बनी जब दोनों ने सांस्कृतिक संबंधों को सारगर्भित करते हुए समवेत रुप से अक्षरधाम मंदिर प्रांगण में स्थित स्वामी नारायण की मूर्ति का जलाभिषेक किया।
यह रेखांकित करता है कि दोनों देश सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान जैसे साझा मूल्यों और विरासत के संबंध में एकमत हैं। भारत और आस्ट्रेलिया दो बहुसांस्कृतिक एवं बहुलतावादी लोकतांत्रिक देश हैं। विश्व स्तर पर भू-सामरिक एवं भू-आर्थिक संदर्भों में दोनों देशों की अहम भूमिका रही है। परपरांगत लगाव और द्विपक्षीय विवादास्पद मुद्दों के अभाव में दोनों देशों ने सुरक्षा एवं विश्व व्यवस्था के संदर्भ में समय-समय पर निर्णायक भूमिका निभाई है। आतंकवाद के मसले पर दोनों देशों का नजरिया एक है और अच्छी बात यह है कि दोनों ने अपने संयुक्त घोषणापत्र में स्पष्ट रुप से आतंकियों को समर्थन या प्रश्रय देने वालों की निंदा की है और उनकी पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकल्प व्यक्त किया है।
पिछले दिनों आस्ट्रेलियाई संसद द्वारा भारत को यूरेनियम निर्यात करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच घनिष्ठता और बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि प्रारंभ में आस्ट्रेलिया नई दिल्ली को यूरेनियम बेचने से साफ इंकार कर दिया था। उसका तर्क था कि वह ऐसे देशों को यूरेनियम नहीं बेचेगा जिसने एनपीटी पर हस्ताक्षर न किया हो। लेकिन, भारत के साथ सामरिक भागीदारी की अभिलाषा ने उसे अपना फैसला बदलने को मजबूर कर दिया। दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु समझौते को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अब आने वाले दिनों में भारत को आस्ट्रेलिया से पर्याप्त यूरेनियम हासिल हो सकेगा जिससे कि भारत की ऊर्जा संबंधी ज़रूरतें आसानी से पूरी हो सकें।
उम्मीद थी कि आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की मौजुदा यात्रा में एफटीए पर मुहर लग जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हालांकि अच्छी बात है कि दोनों देशों ने एफटीए को ठंडे बस्ते में डालने के बजाय इस पर सहमति बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों की बात करें तो आस्ट्रेलिया सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता पाने के भारतीय दावे का पहले ही पूर्ण समर्थन कर चुका है। इसके अलावा वह ‘एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग संगठन’ में वर्ष 2010 में सदस्यता निरोध समाप्त हो जाने पर भारत को सदस्यता प्रदान किए जाने का समर्थन किया। स्वच्छ विकास एवं जलवायु पर एशिया प्रशांत भागीदारी के अंतर्गत दो दर्जन से अधिक संयुक्त आस्ट्रेलिया-भारत परियोजनाएं महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में भी भारतीय सुझावों का समर्थन कर चुका है। बेहतर होगा कि अब दोनों देश आतंकवाद से मिलकर लड़ने के संकल्प को मूर्त रुप देने के अलावा सीमा पार की कई गैर-सैन्य समस्याओं मसलन नशीले पदार्थों की तस्करी, दस्युता, समुद्री संचार की स्वतंत्रता, लघु शस्त्रों के निर्यात, विश्व व्यापार संगठन के प्रतिबंधों के संदर्भ में एक समान रणनीति तैयार करें ताकि इसे रोका जा सके। इससे दोनों देशों का सामरिक व आर्थिक हित सधेगा और शांति को बढ़ावा मिलेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि मैल्कम टर्नबुल की भारत यात्रा से दोनों देश विकास एवं आपसी सहयोग की इबारत गढेंगे और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामरिक व सांस्कृतिक संबंधों को भी नई ऊंचाई देंगे।
(लेखक स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)