यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि जब चीनी सेना करीब एक साल से सीमा पर गतिरोध बढ़ा रही थी तब जो राहुल गांधी बहुत मुखर थे, वे अब चीनी सेना के पीछे लौट जाने पर इसे राष्ट्र की जीत नहीं बता रहे। ना ही वे इस पर कोई सकारात्मक टिप्पणी दे रहे हैं या ऐसा बयान जारी कर रहे हैं जिससे राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के प्रति उनकी निष्ठा या प्रतिबद्धता प्रकट होती हो। ऐसा लगता है जैसे चीन की सेना के मुंह की खाकर लौट जाने की उन्होंने अपेक्षा ना की होगी और ऐसा होते देखकर उन्हें कहीं ना कहीं निराशा हाथ लगी है।
इस सप्ताह भारत और चीन को लेकर लगातार और अलग-अलग खबरें समाचार माध्यमों से सामने आती रहीं हैं। खास बात यह है कि ये खबरें भारत के पक्ष में रहीं और भारत का आत्मविश्वास बढ़ाने वाली रहीं। अव्वल तो चीन ने पैंगोंग झील क्षेत्र से अपने तंबू आदि हटा लिये। यानी वह पीछे हट गया। सैटेलाइट तस्वीरों में यह साफ देखा गया।
दूसरा यह कि आखिर चीन ने अब जाकर स्वीकार किया कि पिछले साल जून में लद्दाख की गलवन घाटी में हुई झड़प में उसके सैनिक भारतीय सेना के हाथों मारे गए। इन सूचनाओं से कम से कम इतना तो पता चलता ही है कि भारत अब बदल रहा है और चीन की आंखों में आंखें डालकर ना केवल उसका मुकाबला कर रहा है, बल्कि उसे अलग-अलग मोर्चों पर धूल भी चटा रहा है।
हां, यह बात अलग है कि चीन अपनी फितरत से बाज नहीं आ सकता, सो वह हार को भी सीधे स्वीकार न करते हुए इसमें भी पतली गली निकाल रहा है ताकि विश्व के सामने उसकी छीछालेदर ना हो। जिस गलवन घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच जून 2020 में हिंसक झड़प हुई थी, उसमें भारतीय सैनिकों ने चीन के करीब 45 सैनिक मार गिराए थे। वह भी बिना शस्त्र के।
और चीन ने इस बात को अब जाकर फरवरी 2021 में यानी 8 महीनों बाद स्वीकारा है लेकिन यहां भी झूठ बोल दिया। चीन ने उसके मारे गए सैनिकों की संख्या 4 ही बताई है, जबकि भारतीय सेना ने उसके 40 से अधिक सैनिक मारे थे। यह झड़प 15 और 16 जून की रात हुई थी।
चीनी सैनिक हथियार लेकर भारतीय सीमा में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें भारतीय सैनिकों ने रोकने की कोशिश की तो दोनों पक्षों में हिंसक झड़प हो गई। इस झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल समेत 20 सैनिक शहीद हुए थे।
चीन के भी 40 से अधिक जवानों की मौत हुई थी। तब चीन की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था। इसके पहले तक दोनों ही देश एक-दूसरे पर अपने इलाकों के अतिक्रमण करने का आरोप लगाते रहे हैं। यदि पराजय का खौफ ऐसा होता है जो दुनिया के सामने झूठ बोलने पर मजबूर करता है तो यह खौफ अच्छा ही है।
इसके चलते गत 9 माह से एलएसी पर भारत और चीन के बीच चल रहा तनाव अब कम हो रहा है। भारतीय सेना के सूत्रों के अनुसार पूर्वी लद्दाख में स्थित पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों से भारत और चीन के सेना की वापसी की प्रक्रिया पूरी हो गई है।
इसके बाद भारतीय सैनिक भी निचले स्थानों पर आ गए हैं। लद्दाख में भले स्थिति सामान्य हो रही है, लेकिन शत्रु पर भारत की नजर अभी भी लगातार बनी हुई है। भविष्य की तैयारियों में भी भारतीय सेना पीछे नहीं है। सेना ने लद्दाख में तीन के-9 वज्र तोपों की तैनाती भी की है।
भारत और चीन के बीच पिछले कुछ महीनों से तनाव की खबरें थीं लेकिन अब इसका पटाक्षेप हो रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए निश्चित ही यह चर्चा का विषय है। इससे भी अधिक गौर करने योग्य यह बात है कि इस पूरे मामले में भारत की कूटनीतिक जीत परिलक्षित हुई है।
पिछले साल जब लद्दाख की गलवन घाटी में भारतीय और चीनी सेना के बीच तनाव ने हिंसक झड़प का रूप ले लिया तो लगा था कि यह प्रकरण जल्दी समाप्त नहीं होगा। हालांकि उसके बाद सरकार ने चीन के मोबाइल ऐप्स पर सिलसिलेवार प्रतिबंध लगाकर उसकी आर्थिक कमर तोड़ी और विश्व को कड़ा संदेश भी दिया। इसके बाद चीनी उत्पादों के बहिष्कार का क्रम शुरू हुआ जो दीवाली जैसे बड़े पर्व पर प्रभावी दिखाई दिया।
अभी यह सब चल ही रहा था कि चीन की सेना ने पैंगोंग झील के उत्तरी भाग पर घुसपैठ करना शुरू कर दिया था। इस तरह की संवेदनशील घटनाओं पर विपक्ष ने बेसिर पैर की बयानबाजी शुरू कर दी। पिछले कुछ दिनों में मीडिया के माध्यमों में राहुल गांधी को यह कहते सुना गया होगा कि चीनी सेना ने अमुक स्थान कब्जा लिया या केंद्र सरकार ने सरेंडर करते हुए फलां भूमि दे दी। इस तरह के बयानों को देश की जनता तो दूर, अब तो स्वयं कांग्रेस के नेता भी गंभीरता से नहीं लेते होंगे।
यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि जब चीनी सेना करीब एक साल से सीमा पर गतिरोध बढ़ा रही थी तब जो राहुल गांधी बहुत मुखर थे, वे अब चीनी सेना के पीछे लौट जाने पर इसे राष्ट्र की जीत नहीं बता रहे। ना ही वे इस पर कोई सकारात्मक टिप्पणी दे रहे हैं या ऐसा बयान जारी कर रहे हैं जिससे राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के प्रति उनकी निष्ठा या प्रतिबद्धता प्रकट होती हो। ऐसा लगता है जैसे चीन की सेना के मुंह की खाकर लौट जाने की उन्होंने अपेक्षा ना की होगी और ऐसा होते देखकर उन्हें कहीं ना कहीं निराशा हाथ लगी है।
यदि वे थोड़ा बहुत अध्ययन करते होंगे तो उन्हें पता होना चाहिये कि भारत एवं चीन के बीच जो समझौता हुआ उसके अनुसार यह सहमति दोनों सेनाओं के बीच बनी है और चीन को फिंगर ऐट के आगे स्थित सिरीजाप चौकी पर अपनी सेना को लेकर जाना है। इसी प्रकार भारत को धन सिंह थापा चौकी तक लौटना है। लेकिन समझौते के इतर जो बात यहां उल्लेखनीय है वह यह है कि चीन ने फिंगर फोर क्षेत्र में अपने निर्माण को हटाना आरंभ किया और यही भारत की डिप्लोमेटिक जीत है।
पैंगोंग झील का यह जो इलाका है, वहां सात से आठ किलोमीटर के दायरे में दोनों देशों की सेनाओं के बीच पहले भी कई बार झड़प हो चुकी है। हालांकि अब चूंकि चीन ने अपनी सेना वहां से लौटा दी है इसलिए फिंगर फोर इलाके में चीनी सैनिकों की संख्या घटी है।
यह वही क्षेत्र है जहां गत वर्ष भारत एवं चीन के बीच हुए तनाव के चलते चीन ने अपनी नावों को तैनात कर दिया था। हालांकि ये सब सामरिक एवं वार्तागत मामले हैं लेकिन इनसे फूटकर मोटे तौर पर जो बात सामने आती है, वह यह है कि बेहद मजबूती से केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले से निपटा है। घुसपैठ करना चीन की फितरत है और यह कोई नई बात नहीं है।
दशकों से चीन यही करता आया है लेकिन इधर, भारत में सरकार सदा समान नहीं रही। इस देश की जनता ने घुटने टेकने वाली सरकार भी देखी और अब ललकारने वाली सरकार का भी रवैया देखने को मिल रहा है।
ऐसे में जब राहुल गांधी यह बोलते हैं कि केंद्र सरकार ने चीन को जमीन दे दी तो उनकी अज्ञानता पर सिवाय हंसने के कुछ नहीं किया जा सकता। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे वे जवाहरलाल नेहरू के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं, बस उस कृत्य और इस टिप्पणी के बीच 60 साल का फासला है।
बहरहाल, चीनी सेना पैंगोंग झील के उत्तरी तट से लौट गई है, यह तथ्य ही अपने आप में शांति देने वाला है। इससे पहले भी वास्तविक नियंत्रण (एलएसी) पर दोनों देशों के मध्य तकरीबन दस माह तक तनाव एवं सैन्य गतिरोध रहा। पैंगोंग झील के उत्तरी तट पर टकराव तब शुरू हुआ जब चीनी सैनिकों ने पिछले साल मई में झील के अंदर और तट पर घुसपैठ कर ली। धीरे-धीरे यह टकराव और क्षेत्रों में फैल गया।
झील के दक्षिणी तट पर भारत ने चीन के मुकाबले पहाड़ों पर अपनी सामरिक स्थिति काफी मजबूत कर ली है। बस यही बात चीन को बहुत अखर रही है। और अब चूंकि भारतीय सेना के साहस और सरकार की दृढ़ता के परिणामस्वरूप चीन पीछे हट गया है, ऐसे में विपक्षियों के पास सिवाय खींसे निपोरने के कुछ बचा नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)