निश्चित ही आतंरिक सुरक्षा के मसले पर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता। वर्तमान सरकार का शुरू से यही रुख दिखाई दे रहा है जो कि उचित भी है। उम्मीद है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, एनएसए अजीत डोभाल ओर रक्षा मंत्री अरुण जेटली की यह संतुलित रुख रखने की नीति जो अभी तक कारगर रही है, आगे भी हितकारी रहेगी और डोकलाम के मसले पर भारत चीन को उसकी गलती का अहसास कराएगा।
डोलाम सीमा पर भारत व चीन के बीच तनाव दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। इसी सप्ताह चीन ने लगातार अलग-अलग माध्यमों से भारत को धमकी देकर डोलाम से अपनी सेना हटाने के लिए कहा और चीन के कथित रक्षा विशेषज्ञ भी जंग की धमकी देने से बाज नहीं आए। इन सब तनावपूर्ण स्थितियों के बीच एक अहम सूचना यह सामने आई है कि भारत ने चीन की परवाह न करते हुए सेना हटाने की बजाय उल्टे और सेना बढ़ा दी है। सेना का अलर्ट अभी जारी है। भारतीय सेना ने चीन से सटी अपनी पूर्वी सीमा पर सैन्य तैयारी में इजाफा किया है। सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश में सैनिकों की संख्या बढ़ने के बाद निश्चित ही चीन को करारा जवाब मिलेगा और उसे यह सन्देश जाएगा कि भारत उसकी गीदड़ भभकियों से घबराने वाली नहीं है।
असल में डोलाम पठार पर जब से चीन ने सिक्किम व भूटान की सीमा पर निर्माण कार्य शुरू किया, तभी उसने सीमा का अतिक्रमण कर दिया था। इसके बाद भारत ने वहां अपनी सेना की तैनाती कर दी तो बौखलाए हुए चीन ने सेना हटाने को कहा। इस बात पर चीन तभी से अड़ा हुआ है। जाहिर है, राष्ट्रों के बीच पनपे इस तनाव के बीच रक्षा मंत्रियों के परस्पर विरोधी बयान भी सामने आए। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि आखिर चीन को भारत की सेना की तैनाती से क्या अड़चन है। जहां एक ओर चीन के कथित रक्षा विशेषज्ञ और वहां का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स लगातार जंग की धमकी दे रहा है, ऐसे में भारत एक सीधा और स्पष्ट रूख अपनाए हुए है और भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी पिछले दिनों राज्यसभा में कह चुकी हैं कि जंग उपाय नहीं है, तो फिर चीन किस बात से भयाक्रांत नज़र आ रहा है।
आखिर ऐसा क्यों है कि चीन बार-बार भारत से उसकी सेना पीछे हटाने को कह रहा है। जहां तक स्थल की बात है, वहां पर दोनों देशों के सैनिक महज 300 फीट की दूरी पर ही एक दूसरे के सामने हैं। दोनों देश वर्तमान में परमाणु शक्ति से संपन्न राष्ट्र हैं। दोनों सक्षम हैं। लेकिन मामला संवेदनशील है और ऐसे में दोनों ओर से की जा रही बयानबाजी मायने रखती है।
इस पूरे मसले पर यदि कुछ गौर करने लायक बात है तो वह है दोनों राष्ट्रों की नीयत। निश्चित ही भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए सैन्य तैनाती बढ़ाई, लेकिन चीन को आखिर किस बात का डर है जो वह अड़ियल रवैया अपनाए हुए है ? यह पूरे विश्व के सामने स्पष्ट हो चुका है कि भारत ने अपनी सेना इसलिए भेजी थी ताकि वहां चीन अपना अवैधानिक निर्माण न कर सके। इसके मूल में भूटान समझौता था। लेकिन पूरे विश्व के सामने सुरक्षा की दुहाई देने वाला चीन स्वयं ही डोलाम पठार पर सड़क का निर्माण करके आखिर क्या संदेश देना चाहता है ?
चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस एहतियात कि भूटान व पूर्वोत्तर राज्यों पर कहीं खतरा ना आ जाए तथा भारत को रणनीतिक नुकसान न उठाना पड़े, के चलते ही भारत ने अपनी सेना तैनात की है तो इसमें क्या बुराई है। यह तो देश की रक्षा के सम्बन्ध में की गई एक उचित कार्यवाही है। हालांकि अभी सीमा पर जो हालात हैं, वे ना युद्ध के हैं ना ही शांति के, दोनों के बीच की स्थिति है। उधर, चीन के इरादे नेक नहीं हैं, इसी के चलते वह इस बात पर अड़ा हुआ है कि वह डोलाम मामले पर समझौता नहीं करेगा। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के विश्लेषकों ने कहा है कि डोलाम में जारी तनातनी को खत्म करने के लिए चीन कोई समझौता नहीं करेगा।
चीन का दावा है कि वह अपने इलाके में सड़क निर्माण कर रहा था और भारत को तुरंत इस इलाके से अपने सैनिक वापस बुला लेने चाहिए। जबकि, भूटान का कहना है कि डोकलाम उसका क्षेत्र है। लेकिन, चीन कहता है इस इलाके को लेकर थिंपू का बीजिंग से कोई विवाद नहीं है। हालांकि चीन के एक सेना विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन के लोग भारत के इस कदम से आक्रोशित है, ऐसे में यदि दोनों राष्ट्रों को आपसी संबंध बनाए रखना है तो इसके लिए भारत को ही पहल करना होगी और बेशर्त पीछे हटना होगा।
इस पूरे मामले में यह जानना अहम होगा कि इस पर अमेरिका का क्या रूख रहा है। डोलाम सीमा पर तनाव को लेकर अमेरिकी सांसद ने कहा है कि चीन ने जो कदम उठाया है, वह अपने आप में उकसाने वाला है। हालांकि अमेरिका ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। इस तनाव को बढ़ाने में चीन का सरकारी मीडिया लगातार काम कर रहा है।
बीते हफ्ते अखबार चाइना डेली ने लगभग धमकी भरे अंदाज में लिखा कि यदि भारत ने डोलाम से अपनी सेना वापस नहीं बुलाई तो इसके बाद होने वाले नुकसान के लिए वह खुद जिम्मेदार होगा। चूंकि चीन कुछ भी सुनने व मानने को राजी नहीं है, इसलिए लगातार धमकियां दे रहा है। भारत ने भी उसकी इस हरकत का सटीक जवाब देते हुए अपनी सेना को पूरी ताकत से तैनात किया हुआ है। बीती रात वहां अलर्ट भी जारी किया जा चुका है। डोलाम से अपनी सेना हटाना तो दूर, भारत ने पुरजोर ढंग से जवाब देते हुए अपनी सेना वहां और बढ़ा दी है।
निश्चित ही आतंरिक सुरक्षा के मसले पर कोई भी समझौता नहीं किया जा सकता। वर्तमान सरकार का शुरू से यही रुख दिखाई दे रहा है जो कि उचित भी है। उम्मीद है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, एनएसए अजीत डोभाल ओर रक्षा मंत्री अरुण जेटली की यह संतुलित रुख रखने की नीति जो अभी तक कारगर रही है, आगे भी हितकारी रहेगी और डोकलाम के मसले पर भारत चीन को उसकी गलती का अहसास कराएगा।
बहरहाल, भारत की तरफ से अब अपने हर कदम का माकूल जवाब मिलने से चीन को इतना तो अंदाज़ा तो हो ही गया होगा कि ये 1962 का भारत नहीं है, ये 2017 का भारत है जो कि किसी भी हाल में दब नहीं सकता। स्थिति ये है कि आज अगर चीन ने जंग छेड़ी तो ये उसके लिए बेहद घातक कदम होगा। उसे हर हाल में भारत से कहीं अधिक क्षति उठानी पड़ेगी। इस बात को चीन समझता है, इसलिए फिलहाल वो सिर्फ गीदड़ भभकियां ही दे सकता है, युद्ध करने के बारे में नहीं सोच सकता। ऐसे में, चीन भले कुछ भी कहता रहे, पर देर-सबेर डोलाम से उसे ही अपने कदम पीछे खींचने पड़ेंगे क्योंकि आगे बढ़ने की गलती उसीने की है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)