वन्य प्राणियों के पर्याप्त संख्या में वजूद में बने रहने से जो इकोलॉजी विकसित होती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित होता है, वह प्रकृति के संतुलन, री-प्रोडक्शन और जैव विविधता के लिए मील का पत्थर है। यह गर्व की बात है कि हमारे देश ने यह मील का पत्थर छू लिया है।
देश के लिए फिर एक गौरव का प्रसंग सामने आया है। हमारे देश में अब 3 हजार से अधिक बाघ हैं जो कि स्वस्थ व सकुशल हैं। यह नवीनतम आंकड़ा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जारी किया है। मोदी बीते रविवार (9 अप्रैल, 2023) को कर्नाटक के मैसूर में थे। यहां उन्होंने टाइगर प्रोजेक्ट के 50 वर्ष पूरे होने पर इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस (IBCA) का शुभारंभ किया। यहां उन्होंने प्रोजेक्ट से जुड़ा एक स्मारक सिक्का भी जारी किया। इसके बाद बाघों की नई गणना रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार भारत में अब बाघों की संख्या बढ़कर 3 हजार 167 हो गई है।
यह प्रसंग वन्य प्रेमियों के लिए तो हर्ष का विषय है ही, देश के अन्य कई आयामों के लिए भी महत्वपूर्ण है। प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए गर्व की बात है। भारत ने आजादी के 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं और यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि आज पूरे विश्व में बाघों की आबादी का 75 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत में है।
बिग कैट्स एलायंस विश्व की सात प्रमुख बड़ी बिल्लियों यानि बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता के संरक्षण एवं सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा। देश में 2014 के बाद से इन सातों जीवों की आबादी बढ़ी है। इनमें बाघों की आबादी 33 प्रतिशत बढ़कर 2018 में 2,967 पर पहुंच गई, जबकि 2014 में यह 2,226 थी। बाघों की अंतिम गणना 2018 में हुई थी। गौरतलब है कि पीएम मोदी ने वर्ष 2019 में कुछ वैश्विक नेताओं से इस पहल का आह्वान किया था। इसका ध्येय एशिया में इन जीवों के अवैध शिकार और व्यापार पर रोक लगाया जाना था।
देखा जाए तो बाघों की संख्या बढ़ना देश की जैव विविधता, वन विरासत के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही वैश्विक मोर्चे पर एक जैव विविधता से समृद्ध राष्ट्र के तौर पर नई पहचान भी लेकर आया है। यह भी एक संयोग ही है कि भारत की डॉक्युमेंट्री एलिफेंट व्हिसपर्स को ऑस्कर पुरस्कार मिला जिसके बाद से समूचे विश्व की निगाहें भारत की वन्य जीव संपदा की ओर बरबस ही मुड़ गईं।
गर्व के पल साझा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हम सभी महत्वपूर्ण पड़ाव के साक्षी बन रहे हैं। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर को 50 वर्ष हो गए हैं। भारत ने न केवल टाइगर को बचाया है, बल्कि उसे पनपने का एक अच्छा ईको सिस्टम दिया है। टाइगर रिजर्व वाले कुछ देशों में बाघों की आबादी या तो स्थिर है या घट रही है लेकिन भारत में यह बढ़ रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत अब जैव विविधता की दिशा में बहुत आगे जा चुका है। आज बाघ की आबादी 3 हजार पार हो गई है। वर्ष 2018 व 2019 में जारी बाघों की गणना में 2967 पाई गई थी। इससे पहले 2006 में यह संख्या 1411 थी।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने चीता प्रोजेक्ट का भी उल्लेख किया और बताया कि किस प्रकार से विलुप्त घेाषित हो चुके चीतों की देश में 70 साल बाद वापसी सफलतापूर्वक कराई गई है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में बने कूनो नेशनल पार्क में चीतों के 4 शावकों का भी जन्म हुआ है और इसके बाद इनका भी कुनबा बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, एशियाई हाथियों की भी संख्या में भारत सबसे आगे है। वर्तमान में देश में 30 हजार एशियाई हाथी हैं।
अब सवाल यह उठता है कि बाघों की संख्या घटने या बढ़ने का देश की प्रगति एवं उन्नयन से क्या संबंध है। ऊपरी तौर पर यह केवल एक वन्य प्राणी की संतति से अधिक मालूम नहीं पड़ता। लेकिन यदि हम इसमें थोड़ा पीछे अतीत में झांककर देखें तो इसके निहितार्थ भी मालूम होंगे। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर कोई नया नहीं है। लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि इसकी आवश्यक्ता क्यों पड़ी।
असल में, किसी समय देश में बाघों की तादाद 35 से 40 हजार के बीच थी लेकिन फिर बाद में निरंतर होने वाले शिकार और तस्करी के चलते बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट आ गई। इसके चलते बाघों के संरक्षण के लिए बकायदा मुहिम की शुरुआत वर्ष 1973 में की गई। उस समय देश में बाघों की संख्या बहुत कम थी। प्रोजेक्ट के शुरुआती दौर में मानस, पलामू, सिमलीपाल, कॉर्बेट, रणथंभौर, कान्हा, मेलघाट, बांदीपुर और सुंदरबेन समेत 8 टाइगर रिजर्व का खाका तैयार किया। शिकारियों पर नजर रखी गई। बाघों को शिकार करने के लिए जानवरों को खुला छोड़ा गया। प्रोजेक्ट टाइगर के बाद इस संख्या में धीरे-धीरे इजाफा हुआ।
प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि अब यह प्रोजेक्ट कुल सीमा 75,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैल गया है। बाघों की संख्या तीन हजार से ज्यादा हो गई है। 1980 के दशक में देश में 15 टाइगर रिजर्व थे। अब कुल 54 टाइगर रिजर्व हैं। 2014 में 2,226 और 2018 में 2,967 बाघ थे। और अब 2023 में यह संख्या 3 हजार पार हो गई है। इस बात के दो अर्थ हैं।
पहली बात तो यह कि बाघों का कुनबा बढ़ रहा है। दूसरी बात यह है कि बाघों के शिकार पर अंकुश लग गया है। इसके चलते संख्या भी बढ़ी है और संरक्षण भी हुआ है। अब यदि इसे भारत में नेचर और क्रिएचर के बीच के अद्भुत संबंधों के परिमार्जन का यह शिखर काल कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वन्य प्राणियों के पर्याप्त संख्या में वजूद में बने रहने से जो इकोलॉजी विकसित होती है, जो पारिस्थितिक तंत्र निर्मित होता है, वह प्रकृति के संतुलन, री-प्रोडक्शन और जैव विविधता के लिए मील का पत्थर है। यह गर्व की बात है कि हमारे देश ने यह मील का पत्थर छू लिया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)