देश में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए टीका जैसा हथियार अचानक से विकसित नहीं हो गया। इसे विकसित करने के लिए सरकार शुरू से ही योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही थी। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2020 के अप्रैल महीने में, जब कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या महज कुछ हजार थी, सरकार ने कोरोना वायरस के टीका को विकसित करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन कर दिया था। सरकार पिछले साल से ही टीका निर्माताओं को टीका विकसित करने के लिए हर स्तर पर सहायता उपलब्ध करवाती रही है। तब जाके आज यह टीकाकरण अभियान चल पा रहा है।
लगभग 100 वर्षों के बाद फिर से एक बड़ी महामारी का सामना हमारा देश कर रहा है। इसके पहले वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू ने दुनिया भर में तबाही मचाई थी। इस फ्लू से वर्ष 1918 में दुनियाभर के 50 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हुए थे और करोड़ों लोगों की मौत हुई थी। सिर्फ भारत में इस फ्लू से 1 करोड़ से अधिक लोगों की मौत हुई थी। मौत के ये आंकड़े प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों व नागरिकों की कुल संख्या से ज्यादा थे।
कोरोना महामारी स्पेनिश फ्लू से ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि बीते 100 सालों में इंसानों ने तकनीक के मामले में अभूतपूर्व प्रगति की है। बावजूद इसके, इस महामारी पर इंसान 1 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी काबू नहीं पा सका है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने बहुत ही कम समय में कोरोना वायरस का टीका का ईजाद कर लिया है।
भारत के वैज्ञानिकों ने भी इस बीमारी का स्वदेशी टीका विकसित करने में सफलता पाई है। आज देश में कोरोना वायरस के स्वदेशी एवं विदेशी टीकाओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, जबकि पूर्व में; देश में इतने कम समय में बीमारियों की टीकाएँ विकसित नहीं हो पाती थीं। उदाहरण के तौर पर पोलियो, स्मालपॉक्स, हेपिटाइटिस बी आदि बीमारियों के टीकाओं को विकसित करने में वैज्ञानिकों को कई साल लग गए थे।
कोरोना वायरस बहुरुपिया है और बहुत तेजी से अपने रूप को बदल रहा है। बहुत ही कम समय में इस वायरस के कई नये रूप देखने को मिले हैं। इसी वजह से देश और दुनिया के डाक्टरों और वैज्ञानिकों को यह वायरस चकमा देने में सफल हो रहा है। इस वायरस की टीका बाजार में आ गई है, लेकिन इसे हराने वाली किसी कारगर दवा की खोज अभी तक नहीं की जा सकी है। इसलिए, आज टीका ही संजीवनी है।
देश में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए टीका जैसा हथियार अचानक से विकसित नहीं हो गया। इसे विकसित करने के लिए सरकार शुरू से ही योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2020 के अप्रैल महीने में, जब कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या महज कुछ हजार थी, सरकार ने कोरोना वायरस के टीका को विकसित करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन कर दिया था।
सरकार पिछले साल से ही टीका निर्माताओं को टीका विकसित करने के लिए हर स्तर पर सहायता उपलब्ध करवाती रही है। सरकार नैदानिक परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) के लिए भी टीका निर्माताओं की मदद करती रही है। सरकार ने अनुसंधान के लिए भी टीका निर्माताओं को सहायता उपलब्ध करवाई है।
टीकाओं के उत्पादन और टीकाकरण की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए भी सरकार लगातार कोशिश कर रही है। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के माध्यम से भी कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं। कुछ और टीकाओं का परीक्षण भी देश में अग्रिम चरण पर है। देश में टीकाओं की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए दूसरे देशों की कंपनियों से भी केंद्र सरकार टीका खरीद रही है।
महामारी के तीसरे चरण में बच्चों पर कोरोना वायरस के द्वारा हमला करने की बात कही जा रही है। इसलिए, बच्चों के लिए 2 टीकाओं को जल्द से जल्द विकसित करने के लिए उसके नैदानिक परीक्षण में तेजी लाई गई है। देश में “नेज़ल” टीका को विकसित करने के लिए भी गहन अनुसंधान किया जा रहा है। इस टीका को सिरिंज की जगह नाक में स्प्रे करके दिया जायेगा। अगर यह टीका बाजार में जल्दी आता है तो देश से कोरोना वायरस का सफाया करने में थोड़ी आसानी हो जायेगी।
सरकार ने देश में टीकाकरण की जो रूप-रेखा तैयार की थी, वह बिलकुल सही थी। सरकार ने देश में चरणबद्ध तरीके से टीकाकरण करना तय किया था, जिसके तहत पहले बुजुर्गों और स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण किया जाना था। यह तय किया गया था कि जिन लोगों को कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा खतरा है, उन्हें टीकाकरण में प्राथमिकता दिया जाये। देश में टीकाकरण की प्रक्रिया सुचारु रूप से चल भी रही थी। लक्षित समूह के लोग अपनी बारी आने पर टीका लगवा रहे थे।
इस योजना को तैयार करने में राज्य सरकारों के सुझावों को भी शामिल किया गया था। सरकार की यह योजना दूरदर्शिता पूर्ण थी, क्योंकि अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्यकर्मी आमजन के जीवन की रक्षा कर रहे थे। अगर स्वास्थ्यकर्मियों को पहले टीका नहीं दिया गया होता तो कोरोना वायरस की दूसरी लहर से मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा होती। इसके अलावा, कोरोना वायरस की पहली लहर में 45 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले लोग ज्यादा संक्रमित हुए थे। इसलिए, उनके जीवन की रक्षा करना सरकार का प्राथमिक लक्ष्य था।
कोरोना महामारी के बीच में भी विपक्ष के लोगों के द्वारा यह कहा गया कि केंद्र सरकार योजनाबद्ध तरीके से महामारी का सामना नहीं कर रही है। अठारह साल से अधिक उम्र वाले लोगों का भी टीकाकरण करना चाहिए। यह भी कहा गया कि राज्य सरकारों को टीकाकरण के मामले में निर्णय लेने, टीका खरीदने, टीका देने के लक्षित समहू को चिह्नित करने आदि की छूट दी जाये, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है।
इस क्रम में जब केंद्र सरकार ने टीकाओं को खरीदने और लॉकडाउन लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया तो देशभर में अव्यवस्था फैलने लगी। लक्षित समूह की संख्या में भारी इजाफा होने की वजह से टीकाओं के मांग और आपूर्ति में भारी अंतर आ गया, जिसकी वजह से टीकाकरण में गतिरोध आ गया। हालांकि, अब फिर से टीकाकरण की प्रक्रिया में तेजी आने लगी है। कई राज्यों में लापरवाही की वजह से टीकाओं की बर्बादी भी हुई। लॉकडाउन लगाने के निर्णय लेने में भी राज्य सरकारों द्वारा गलतियाँ की गईं, जिसकी वजह से भी कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।
कई राज्य सरकारें टीका खरीद पाने में पूरी तरह से असफल रहे। इस वजह से टीकाकरण की प्रक्रिया के केंद्रीयकरण की मांग फिर से की जाने लगी। अठारह साल से चौवालीस साल वालों को मुफ्त में टीकाकरण की मांग भी उठाई गई। तदुपरांत, केंद्र सरकार ने टीकाकरण का केंद्रीकरण पुनश्च कर दिया और 21 जून से 18 साल से अधिक उम्र वाले सभी लोगों का मुफ्त में टीकाकरण शुरू हुआ है।
हालाँकि, अगर कोई निजी अस्तपताल में पैसे देकर टीका लगवाना चाहता है तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र होगा। अभी टीकाओं के 75 प्रतिशत की खरीददारी केंद्र सरकार कर रही है और उसके बाद उसका वितरण राज्यों के बीच कर रही है। निजी अस्तपतालों को 25 प्रतिशत टीका खरीदने की छुट दी गई है, लेकिन निजी अस्तपताल टीका की वास्तविक कीमत के ऊपर अधिकतम 150 रुपए ही सेवा शुल्क के रूप में नागरिकों से ले सकते हैं।
भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर है। हमारे देश में 130 करोड़ से अधिक लोग निवास करते हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या का टीकाकरण तुरत-फुरत में करना आसान नहीं है। हालाँकि, कम जनसंख्या वाले विकसित देश भी अपने सभी नागरिकों का शत-प्रतिशत टीकाकरण नहीं कर सके हैं। इतनी बड़ी महामारी को नियंत्रण करना आसान नहीं है। इस महामारी से लड़ने वाले उपायों को अमलीजामा पहनाने में कठिनाई का आना स्वाभाविक है। इसलिए, आज जरूरत इस बात की है कि देशवासी मिलकर इस लड़ाई में पूरे मन से शामिल हों।
यह लड़ाई सिर्फ सरकार की या एक इंसान की नहीं है। इसलिए, सभी लोग कोरोना से बचाव के सभी मानदंडों का अनुपालन करें। जिन्होंने अपना टीकाकरण करवा लिया वे भी ढिलाई नहीं बरतें। उनके द्वारा भी कोरोना मानदंडों का अनुपालन करना उतना ही जरुरी है, जितना टीका नहीं लेने वालों के लिए। सरकार के प्रयास सही दिशा में हैं, नागरिक भी अपना दायित्व निभाएं। मिलकर ही इस महामारी से लड़ा जा सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)