भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2030 के पूर्व भारत अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आर्थिक क्षेत्र में भारत के विकास की कहानी को केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में लगातार किए जा रहे सुधारों की सफल कहानी भी कहा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, भारत के बढ़ते महत्व के चलते विभिन्न देश एवं वैश्विक संस्थान भारत की आवाज को अब गम्भीरता से लेने लगे हैं।
वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, भारत आज अपने स्वर्णिम काल में प्रवेश कर गया है। जनसंख्या की दृष्टि से भी भारत आज विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है और भारत को वैश्विक स्तर पर सबसे युवा देश कहा जा रहा है। जबकि, भारत की तुलना में विश्व के कई अन्य विकसित देशों जैसे, जापान, जर्मनी, चीन, अमेरिका, फ्रान्स, इटली, ब्रिटेन, आदि में बुजुर्ग आबादी की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
इतिहास का यह खंडकाल भारत के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण काल कहा जा सकता है क्योंकि एक तो भारत पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है तो वहीं भविष्य को लेकर भी भारत के आर्थिक विकास के सम्बंध में लगभग समस्त वित्तीय संस्थान भव्य सम्भावनाएं व्यक्त करते हुए केवल यह दशक ही नहीं बल्कि यह शताब्दी ही भारत की बता रहे हैं।
1980 के दशक के मध्य, वर्ष 1985 में, भारत विश्व की 10 सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, अमेरिका, सोवियत यूनियन, जापान, पश्चिमी जर्मनी, फ्रान्स, यूनाइटेड किंगडम, इटली, कनाडा, चीन और भारत। परंतु अगले दो दशकों से भी अधिक समय तक भारत उक्त सूची में से बाहर हो गया। फिर वर्ष 2014 आते आते भारत एक बार पुनः विश्व की 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया। इसके बाद से तो भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज रफ्तार पकड़ ली है और वर्ष 2022 में भारत विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
अब तो भरपूर सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2030 के पूर्व भारत अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आर्थिक क्षेत्र में भारत के विकास की कहानी को केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्र में लगातार किए जा रहे सुधारों की सफल कहानी भी कहा जा सकता है। वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में, भारत के बढ़ते महत्व के चलते विभिन्न देश एवं वैश्विक संस्थान भारत की आवाज को अब गम्भीरता से लेने लगे हैं।
भारतीय सनातन संस्कृति, परम्पराओं एवं मर्यादाओं का पालन करते हुए भारत ने आर्थिक क्षेत्र में अतुलनीय प्रगति की है। आज भारत, विश्व की सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पिछले 9 वर्षों के दौरान 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ा है।
वैश्विक स्तर पर जहां सकल घरेलू उत्पाद 3 से 3.5 प्रतिशत के बीच बढ़ रहा है वहीं भारत में यह 7 प्रतिशत से अधिक की गति से आगे बढ़ रहा है और यह आर्थिक विकास दर आगे आने वाले लम्बे समय तक बने रहने की भरपूर सम्भावना है क्योंकि भारत के पास बहुत बड़ी मात्रा में युवा, सक्षम एवं शिक्षित आबादी है, जो भारत के लिए एक ‘पावर हाउस’ बनकर उभर रही है।
भारत के पास मजबूत बैंकिंग व्यवस्था है, जो उद्यमियों को पूंजी उपलब्ध कराने में हमेशा आगे रहती है। सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित निजी क्षेत्र के बैंकों में भी गैरनिष्पादन कारी आस्तियों को बहुत कम स्तर पर लाया गया है एवं इन लगभग सभी बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी बैंकों के समतुल्य पहुंच गया है।
भारत में हाल ही के समय में आधारभूत ढांचा खड़ा करने के लिए अभूतपूर्व कार्य सम्पन्न हुआ है। सड़क मार्ग, रेल यातायात, समुद्रीय मार्ग से यातायात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। आधारभूत ढांचा में हुए जबरदस्त सुधार के चलते कई बहुराष्ट्रीय विदेशी कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयां भारत में स्थापित करने की ओर लालायित हो रही हैं। परिवहन सम्बंधी आधारभूत ढांचे के साथ ही संचार सम्बंधी आधारभूत ढांचे में भी अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर है।
आज इंटरनेट की सुविधाएं भारत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच गई हैं एवं ग्रामों में निवासरत नागरिकों के पास भी स्मार्ट फोन उपलब्ध हैं जिसके चलते सूचनाओं एवं जानकारी का आदान प्रदान तुरंत हो पा रहा है एवं इससे देश के दूर दराज इलाकों में भी आर्थिक व्यवहार करने में बहुत आसानी हो गई है। जनधन योजना के अंतर्गत 50 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले गए हैं एवं इन खातों में आज 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा हो गई है, जो देश के गरीब नागरिकों की ओर से भारत के आर्थिक विकास में उनके योगदान के रूप में देखी जा सकती है।
बुनियादी ढांचे को विकसित करने के अलावा नागरिकों को घरेलू स्तर की सामान्य सुविधाएं जैसे शौचालय, पीने का पानी, खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन एवं बिजली आदि की सुविधाएं भी सफलता पूर्वक उपलब्ध कराई जा रही हैं।
भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी धाक पूरे विश्व में ही जमाई है। इस क्षेत्र में भारत पूरे विश्व के लिए एक पावर हाउस की भूमिका अदा करता हुआ दिखाई दे रहा है। अब तो स्टार्ट अप के क्षेत्र में भी भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आ गया है। भारतीय युवाओं ने इन क्षेत्रों में अपना लोहा वैश्विक स्तर पर मनवा लिया है।
भारत डिजिटल आधारभूत ढांचे को विकसित करने में भी सफल रहा है, जिससे देश की विशाल आबादी को प्रदान की जाने वाली तमाम सेवाओं का डिजिटलीकरण करने में आसानी हुई है, जैसे मनी ट्रांसफर, कैश ट्रांसफर आदि। भारतीय अर्थव्यवस्था में डिजिटल व्यवहारों का प्रतिशत बहुत बढ़ा है। इससे दूर दराज के क्षेत्रों में निवास कर रहे नागरिकों को प्रदान की जा रही सरकारी सुविधाओं को डिजिटल ढांचें के माध्यम से पहुंचाने में बहुत आसानी हुई है।
भारत की देखा देखी वैश्विक स्तर पर अन्य देशों के नागरिकों को भी विभिन सेवाओं के डिजिटलीकरण का महत्व समझ में आया है। आज भारत टेक्नॉलाजी की दुनिया के कुछ सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। एपल, गूगल एवं एमेजोन जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत में अपनी गतिविधियां बढ़ाने की बात कही है।
बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही भारत के नागरिकों की रोजगार के लिए अब कृषि क्षेत्र पर निर्भरता धीरे धीरे कम हो रही है। अब सेवा के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने लगे हैं एवं साथ ही विनिर्माण इकाईयों के स्थापित होने से उद्योग के क्षेत्र में भी रोजगार के नए अवसर निर्मित होने लगे हैं। युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना अब सरकार के लिए एक प्राथमिक कार्य की श्रेणी में आ गया है। भारतीय डॉक्टर, इंजीनीयर एवं प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल किये हुए युवाओं की विकसित देशों में भारी मांग है एवं इसके कारण कई भारतीय युवा अब रोजगार के लिए इन देशों की ओर भी रूख करने लगे है।
फिर भी आज कुल मिलाकर 42.9 प्रतिशत नागरिक कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते हैं, 31.1 प्रतिशत नागरिक सेवा क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते हैं, (9.4 प्रतिशत नागरिक पब्लिक सेवा क्षेत्र में), 13.5 प्रतिशत नागरिक निर्माण (कन्स्ट्रक्शन) क्षेत्र में एवं 11.7 प्रतिशत नागरिक विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करते हैं।
आज जब विश्व के कई देश आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में कई गम्भीर समस्याओं से जूझ रहे हैं और वे इन समस्याओं को हल करने में अपने आप को सक्षम नहीं पा रहे हैं, इन गम्भीर परिस्थितियों के बीच भारतीय सनातन संस्कृति एवं परम्पराएं इन देशों के लिए आशा की किरण के रूप में दिखाई दे रही है। भारत ने न केवल आर्थिक क्षेत्र में विभिन्न गम्भीर समस्याओं को हल करने में सफलता पाई है बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी सनातन संस्कृति एवं परम्पराओं का अनुपालन करते हुए कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं को भी सफलतापूर्वक हल किया है।
विकसित देशों में पूंजीवाद को अपनाने के चलते इन देशों के नागरिकों में व्यक्तिवाद की भावना पनपी है, जिसके कारण भोगवाद अपने चरम स्तर पर पहुंच गया है एवं हर व्यक्ति में “मैं और मेरा” की भावना बलवती हुई है। समाज तो बहुत दूर हो ही गया है परंतु संयुक्त परिवार की परम्परा भी टूट गई है एवं व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों की सहायता करने को भी तैयार नहीं है। परिवार के बुजुर्ग सदस्य सरकार की सहायता पर निर्भर हैं। सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न हो गया है।
इन देशों में दंपतियों के बीच तलाक की संख्या ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गई है। बहुत भारी संख्या में नन्हें बच्चे केवल अपनी माता की देखरेख में ही बड़े हो रहे हैं और उन्हें अपने पिता के बारे में तो जैसे जानकारी ही नहीं है। इससे इन बच्चों के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ रहा है एवं वे समाज में आसानी से गलत राह पर चल पड़े हैं। कुल मिलाकर इन देशों में नागरिकों में हिंसा की प्रवृति बढ़ती जा रही है।
इसके ठीक विपरीत भारतीय सनातन संस्कृति एवं संस्कारों के अनुसार, भारतीय नागरिकों में “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना का संचार इनके बचपन में ही किया जाता है जिससे भारतीय नागरिकों में “सर्वे भवंतु सुखिन:” के विचार प्रतिपादित होने लगते हैं। बचपन में ही भारतीय नागरिकों को पर्वत, नदियों, पेड़, पौधों, समस्त प्राणियों का आदर एवं पूजा करना सिखाया जाता है, जिससे भारतीय नागरिक अन्य देशों में जाकर शांतिप्रिय तरीके से प्रकृति एवं इन देशों में समस्त प्राणियों का सम्मान करते दिखाई देते हैं और इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विकास में अपना भरपूर योगदान देते हैं।
आज, विश्व में 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष अथवा प्रधानमंत्री भारतीय मूल के नागरिक ही बन गए हैं। इसके अलावा, कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी भारतीय मूल के नागरिक बन गए हैं। अतः आज विश्व के कई देश अपनी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के हल हेतु भारतीय सनातन संस्कृति एवं परम्पराओं की ओर आशाभारी नजरों से देख रहे हैं।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)