मोबाइल के भारी-भरकम आयात को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में डिजिटल इंडिया रोडमैप जारी किया था। इसका परिणाम यह हुआ कि 2014-15 में जहां देश में मोबाइल हैंडसेट की 80 प्रतिशत मांग आयात से पूरी हो रही थी वहीं 2018-19 में यह आंकड़ा घटकर मात्र छह प्रतिशत रह गया। स्पष्ट है वह दिन दूर नहीं जब भारत का मोबाइल हैंडसेट आयात शून्य स्तर पर पहुंच जाएगा।
वोट बैंक की राजनीति करने वाली पिछली कांग्रेसी सरकारों ने भारत में नवोन्मेषी संस्कृति के विकास की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। उनका पूरा जोर दान-दक्षिणा वाली योजनाओं पर रहता था ताकि वोट बैंक की राजनीति चलती रहे। इस स्थिति को बदलने के लिए मोदी सरकार ने शोध व विकास संस्थानों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र से देश को इनोवेशन हब में बदलने का आह्वान किया है।
सरकार अनुसंधान व विकास के जरिए देश की समस्याओं का टिकाऊ समाधान ढूंढ़ रही है। मोदी सरकार के प्रयासों का परिणाम यह हुआ है कि ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैकिंग में सुधार आया है। वर्ष 2019 में भारत इस सूची में पांच अंकों की छलांग लगाकर 52वें स्थान पर पहुंच गया। पिछले वर्ष भारत 57वें स्थान पर था। अब इनोवेशन के मामले में भारत मध्य और दक्षिण एशिया में अग्रणी स्थान पर आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को दुनिया के शीर्ष 25 देशों में शामिल करने का लक्ष्य रखा है।
मेक इन इंडिया मुहिम और इनोवेशन संस्कृति को बढ़ावा देने का ही नतीजा है कि देश में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। 2014-15 में जहां 31.2 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं का उत्पादन हुआ था, वहीं 2018-19 में यह बढ़कर 65.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया। उल्लेखनीय है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की मांग का सिर्फ एक–तिहाई ही घरेलू उतपादन से पूरा कर पाता है। शेष मांग आयात के जरिए पूरी होती है। देश के कुल आयात में इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के आयात की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है।
इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के विनिर्माण में आई तेजी को मोबाइल के जरिए समझा जा सकता है। 2018-19 में पहली बार भारत का मोबाइल फोन हैंडसेट निर्यात आयात के मुकाबले अधिक रहा है। इस दौरान जहां 10,000 करोड़ रूपये का मोबाइल हैंडसेट आयात किया गया वहीं 11,200 करोड़ रूपये का निर्यात किया गया। यह सुनहरे भ्ंविष्य के लिए छोटी लेकिन शानदार शुरूआत है।
2014-15 में देश में मोबाइल हैंडसेट की 80 प्रतिशत मांग आयात से पूरी हो रही थी जबकि 2018-19 में यह आंकड़ा घटकर मात्र छह प्रतिशत रह गया। स्पष्ट है, वह दिन दूर नहीं जब भारत का मोबाइल हैंडसेट आयात शून्य स्तर पर पहुंच जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मोबाइल के भारी-भरकम आयात को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में डिजिटल इंडिया रोडमैप जारी किया था। इसके तहत 2020 तक नेट शून्य आयात का लक्ष्य रखा गया था। इसके साथ-साथ सरकार ने 2025 तक 100 करोड़ मोबाइल हैंडसेट निर्माण का लक्ष्य रखा है। इसमें से 60 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का निर्यात किया जाएगा और इसका मूल्य सात लाख करोड़ रूपये होगा।
इंडियन सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के अनुसार 2014-15 में मात्र 5.8 करोड़ मोबाइल हैंडसेट का उत्पादन हुआ था जिसका मूल्य 18,900 करोड़ रूपये था। इसके विपरीत 2018-19 में 29 करोड़ मोबाइल फोन हैंडसेट का उत्पादन हुआ जिनका मूल्य 1.81 लाख करोड़ रूपये है। भारत में उपलब्ध अवसर का लाभ उठाने के लिए दुनिया की अग्रणी मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियां चीन के बजाए भारत में अपनी विनिर्माण इकाइयां लगा रही हैं।
इतना ही नहीं सरकार ऐसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का खाका तैयार कर रही है जो चीन को छोड़कर अन्य देशों में निवेश की तलाश में हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण अमेरिकी कंपनियों को चीन में कारोबार करने में परेशानी हो रही है। मोदी सरकार इस मौके का फायदा उठाने के लिए हर संभव उपाय कर रही है।
स्पष्ट है, जैसे-जैसे मेक इन इंडिया मुहिम और इनोवेशन संस्कृति जोर पकड़ती जाएगी वैसे-वैसे देश में इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्ट्रिक वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा और आयात पर निर्भरता घटती जाएगी। इसका दूरगामी प्रभाव व्यापार घाटे में कमी, रोजगार सृजन, गरीबी-बेकारी में कमी आदि के रूप में सामने आएगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)