प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को परिवारवादी राजनीति से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठा चुके हैं। हाल ही में एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वंशवादी राजनीति एक बड़ा खतरा है और लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन। प्रधानमंत्री मोदी विकास की राजनीति के जरिए लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन को ठिकाने लगाने में जुटे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है।
मोदी सरकार ने देश में जिस ढंग से विकास की राजनीति शुरू की है उससे परिवार, जाति, धर्म, क्षेत्र जैसे संकीर्ण आधारों पर की जाने वाली वोट बैंक की राजनीति को जोर का झटका लगा है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी को विजय पर विजय मिल रही है तो परिवारवादी पार्टियां राजनीतिक सूर्यास्त की ओर अग्रसर हैं।
आजादी के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस परिवार केंद्रित पार्टी में बदल गई तो उसका असर समूचे देश पर पड़ा। कांग्रेस के परिवारवाद, निरंकुशता, भ्रष्टाचार के खिलाफ क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ। इन दलों ने कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया। दुर्भाग्यवश कांग्रेस पार्टी को पटखनी देने वाली अधिकांश पार्टियां अपने को कांग्रेसी संस्कृति से नहीं बचा पाईं और परिवारवाद की भेंट चढ़ गईं।
इसका नतीजा यह हुआ कि समाज व राष्ट्र के बजाए परिवार का विकास होने लगा। इसे समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार से समझा जा सकता है। एक समय मुलायम सिंह यादव परिवार से 45 लोग ऐसे थे जो किसी न किसी पद पर थे। उनके पूरे परिवार में 25 साल से अधिक आयु के हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने का मौका दिया गया। उनके पुत्र अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री भी बने।
इतना ही नहीं दबे-कुचले वर्गों की आवाज उठाने का दावा करने वाली पार्टियां भी परिवारवादी राजनीति करने लगीं। इसका ज्वलंत उदाहरण है उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती का परिवार। इससे भ्रष्टाचार, भाई–भतीजावाद, बंदरबाट को एक नया आयाम मिला।
परिवारवादी और वोट बैंक की राजनीति का दुष्परिणाम यह हुआ कि एक ओर राजनीतिक घरानों की कोठियां बनने लगीं तो आम जनता को बिजली, पानी, रसोई गैस, शौचालय, अस्पताल, सड़क, बैंक-बीमा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित होना पड़ा। इसी को देखते हुए 2014 में सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने जनता को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने का समयबद्ध कार्यक्रम तय किया। बिना किसी भेदभाव के सभी गरीबों तक बिजली, पानी, रसोई गैस, शौचालय, अस्पताल, सड़क, बैंक-बीमा जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाई गईं।
जो राजनीतिक दल चुनावों में बिजली-पानी का ख्वाब दिखाकर सत्ता हासिल करते थे अब उनके लिए चुनावी वायदे बचे ही नहीं। इसीलिए अब ये दल मुफ्तखोरी की राजनीति पर उतर आए हैं लेकिन जनता इनकी सच्चाई समझ चुकी है। यही कारण है चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाने और जाति, धर्म की दुहाई देने के बावजूद परिवारवादी राजनीति ढलान पर है।
मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को मिल रही लगातार सफलता का एक बड़ा श्रेय बिचौलिया विहीन वितरण व्यवस्था को है। पहले दिल्ली से चला एक रुपया लाभार्थियों तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसा रह जाता था लेकिन अब पूरे के पूरे सौ पैसे पहुंच रहे हैं और वह भी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में। प्रत्यक्ष नकदी हस्तारण (डीबीटी) के माध्यम से पिछले आठ वर्षों में मोदी सरकार ने 23 लाख करोड़ रुपये से अधिक धनराशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे हैं। आज केंद्र सरकार के 53 मंत्रालयों की 313 योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में जा रहा है।
मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विकास की राजनीति से एक ओर देश का चहुंमुखी विकास हो रहा है तो दूसरी ओर लोकतंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन कमजोर पड़ता जा रहा है। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)