विदेशी मुद्रा में इजाफा होना भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूती की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत है। अगर विदेशी मुद्रा भंडार में इसी तरह से बढ़ोतरी होती है तो निश्चित रूप से जल्द ही अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की पुष्टि विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष बोर्ज ब्रेंड भी करते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट नरेन्द्रमोदी डॉट इन पर लिखे एक ब्लॉग में कहा है कि दुनिया भर में भारत का कद बढ़ा है। भारत आगामी पांच वर्ष में पांच ट्रिलियन डॉलर और उसके बाद अगले 15 साल में 10 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है।
रिजर्व बैंक के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 11 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में 1.879 अरब डॉलर बढ़कर 439.712 अरब डॉलर हो गया। यह पिछले सप्ताह 4.24 अरब डॉलर बढ़कर 437.83 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। इस तरह विगत दो सप्ताह से विदेशी मुद्रा में बढ़ोतरी हो रही है। केन्द्रीय बैंक के अनुसार 11 अक्टूबर को विदेशी मुद्रा 2.269 अरब डॉलर बढ़कर 407.88 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
मुद्रा कोष के पास आरक्षित राशि में भी 70 लाख डॉलर की तेजी आयी और यह 3.623 अरब डॉलर पर पहुंच गई। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से विशेष आहरण अधिकार भी 20 लाख डॉलर बढ़कर 1.431 अरब डॉलर हो गया. अमूमन संकट के समय देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईआईएमएफ) से विदेशी मुद्रा लेते हैं, जिसे स्पेशल ड्राइंग राइट्स यानी एसडीआर कहते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं, जिनका इस्तेमाल जरूरत के समय देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। यह भंडार एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखे जाते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व या एफएक्स रिजर्व भी कहा जाता है। वैसे, विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंक नोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियों के साथ सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि को भी शामिल किया जाता है।
दुनिया के हर देश को आयात की जरूरतों को पूरा करने के लिये विदेशी मुद्रा भंडार रखना होता है, क्योंकि दूसरे देशों से आयात करने के लिये डॉलर, येन, यूरो जैसी मुद्राओं का स्टॉक होना जरूरी होता है। आम तौर पर निर्यातक जो विदेशी मुद्रा लाते हैं, वह बैंकों से रुपये की अदला-बदली के जरिेये विदेशी मु्द्रा भंडार का हिस्सा बन जाता है। शेयर बाजार में निवेश और विदेशी कंपनियों के भारत में निवेश भी विदेशी मुद्राओं में होते हैं, क्योंकि डॉलर, यूरो, येन रुपये से बदले जाते हैं, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी डॉलर का होता है। वैसे, दूसरी मुद्राओं जैसे, यूरो, येन आदि का भी इसमें अहम हिस्सा होता है। मुद्राओं के विनियम दर में कमी या वृद्धि होने से विदेशी मुद्रा भंडार का मूल्य भी घटता-बढ़ता है। देश में डॉलर की आवक ज्यादा होने पर विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है, लेकिन यदि डॉलर देश से बाहर जाता है तो इसमें गिरावट आती है।
शेयर बाजार में निवेश की आवाजाही से भी यह प्रभावित होता है। विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। रिजर्व बैंक की बैलेंस शीट में, घरेलू ऋण के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार शामिल होता है। विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सीधा मतलब है कि निर्यात या निवेश में तेजी आ रही है। इसके बढ़ने से घरेलू मुद्रा भी मजबूत बनी रहती है।
कहा जा सकता है कि विदेशी मुद्रा में इजाफा होना भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूती की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत है। अगर विदेशी मुद्रा भंडार में इसी तरह से बढ़ोतरी होती है तो निश्चित रूप से जल्द ही अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की पुष्टि विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष बोर्ज ब्रेंड भी करते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट नरेन्द्रमोदी डॉट इन पर लिखे एक ब्लॉग में कहा है कि दुनिया भर में भारत का कद बढ़ा है। भारत आगामी पांच वर्ष में पांच ट्रिलियन डॉलर और उसके बाद अगले 15 साल में 10 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है।