लंबे समय की उपेक्षा के बाद अब भारत भी सेमीकंडक्टर विनिर्माण में कदम बढ़ा रहा है। वेदांत ग्रुप और ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के बीच सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए समझौता हुआ है जिसमें सेमीकंडक्टर निर्माण पर 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। यह निर्माण गुजरात के अहमदाबाद में होगा।
वर्ष 2014 से पहले 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से होने वाला प्रधानमंत्री का संबोधन प्राय: रस्मी होता था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा को उलट दिया। अब प्रधानमंत्री हर साल लाल किले की प्राचीर से होने वाले अपने संबोधन में देश के विकास का समयबद्ध कार्यक्रम घोषित करते हैं और सबसे बड़ी बात है कि ये सभी कार्यक्रम समय से पहले पूरा हो जाते हैं।
चाहे देश के हर गांव तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य हो या हर घर तक रसोई गैस। इस साल लाल किले की प्राचीर से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सदी को टिकेड युग अर्थात टेक्नोलॉजी युग नाम देते हुए सेमीकंडक्टर (माइक्रोचिप) निर्माण का उल्लेख किया तभी तय हो गया था कि आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में कुछ बड़ा होने वाला है।
सेमीकंडक्टर के भारी-भरकम आयात को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके घरेलू विनिर्माण संबंधी आधारभूत ढांचा बनाने की कवायद में जुटे रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी बाधा थे कांग्रेसी संस्कृति में पले-बढ़े आयातक। आयातकों की शक्तिशाली लॉबी कोई न कोई बाधा खड़ी करती रही है जिससे घरेलू विनिर्माण की कवायद थम जाती थी। लेकिन कोरोना महामारी ने घरेलू सेमीकंडक्टर विनिर्माण को एक नया आयाम दे दिया।
कोविड 19 महामारी और लॉकडाउन के कारण वैश्विक स्तर पर चिप संकट पैदा हो गया है। इससे दुनिया भर में मोबाइल-लैपटॉप से लेकर गाड़ियों तक का विनिर्माण धीमा पड़ गया। इस दौरान सेमीकंडक्टर के घरेलू विनिर्माण की मांग एक बार फिर उठी।
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत में दुनिया की लगभग सभी दिग्गज कंपनियों के सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप डिजाइन और अनुसंधान केंद्र हैं लेकिन चिप बनाने वाली एक भी फैब्रिकेशन प्लांट नहीं है। चिप मुख्यतः: ताइवान, चीन, अमेरिका, दक्षिण कोरिया में बनते हैं। भारत में सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की सबसे कमजोर कड़ी यही है और यह कमजोर कड़ी विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी पड़ती है। देश में पेट्रोल व सोने के बाद सबसे ज्यादा आयात इलेक्ट्रॉनिक्स का होता है।
फरवरी 2021 से अप्रैल 2022 के बीच भारत ने 550 अरब डॉलर का आयात किया जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों की हिस्सेदारी 62.7 अरब डॉलर की थी। इसमें से 15 अरब डॉलर अर्थात सवा लाख करोड़ रुपये का आयात सिर्फ सेमीकंडक्टर का हुआ। उल्लेखनीय है कि सेमीकंडक्टर या माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल मोबाइल फोन से लेकर कार, एटीएम, इलेक्ट्रानिक्स सामानों में किया जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जिस दौर में हम प्रवेश कर रहे हैं उसमें सेमीकंडक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका है।
लंबे समय की उपेक्षा के बाद अब भारत भी सेमीकंडक्टर विनिर्माण में कदम बढ़ा रहा है। वेदांत ग्रुप और ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के बीच सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए समझौता हुआ है जिसमें सेमीकंडक्टर निर्माण पर 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। यह निर्माण गुजरात के अहमदाबाद में होगा।
अगले दो साल में इस यूनिट से सेमीकंडक्टर का उत्पादन होने लगेगा। इसके लिए सरकार की ओर से उत्पादन के लिए प्रोत्साहन अर्थात प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव (पीएलआई) की घोषणा की गई है। इस परियोजना पर भारत सरकार 50 प्रतिशत खर्च वहन करेगी। उल्लेखनीय है कि इलेक्ट्रानिक्स क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए भारत सरकार ने 76000 करोड़ रुपये की पीएलआई योजना प्रस्तुत की है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने भी यमुना प्राधिकरण सेक्टर 10 में 1000 एकड़ में सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर विकसित कर रही है। यहां 700 एकड़ में सेमीकंडक्टर विनिर्माण इकाइयां लगाई जाएंगी जबकि 300 एकड़ में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर विकसित किए जाएंगे।
सेमीकंडक्टर निर्माण होने से भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात घटेगा और इससे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के लिए नया इको सिस्टम तैयार होगा। इस प्रकार अब भारत चिप टेकर से चिप मेकर बनने जा रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)