राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सालाना आधार पर 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा और वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रहा, जो पूर्व के अनुमानों के अनुरूप है और यह विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन से बहुत ही ज्यादा बेहतर है।
महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने हालिया मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 0.50 प्रतिशत का इजाफा किया है। इसके पहले मई के प्रथम सप्ताह में केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दर में 0.40 की बढ़ोतरी की गई थी। रेपो दर में ताजा बढ़ोतरी के साथ यह बढ़कर 4.90 प्रतिशत पर पहुँच गया है। रेपो दर में वृद्धि के बाद बैंक उधारी दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने 15 जून को उधारी दर में 20 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा को 5 से 6 प्रतिशत के बीच रखा है। अमेरिका में यह सीमा 2 प्रतिशत है, लेकिन वहाँ मई महीने में महंगाई 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई, जो दिसंबर 1981 के बाद सबसे अधिक है। अमेरिका में 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 3.2 प्रतिशत पर पहुंच गया है।
महंगाई पर काबू पाने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दर में 75 आधार अंक की बढ़ोतरी की है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने भी 16 जून को ब्याज दर में 1.25 प्रतिशत की वृद्धि की है, जो विगत 13 वर्षों में सबसे अधिक है। यूरो जोन में महंगाई दर 40 साल के रिकॉर्ड को तोड़कर 8 प्रतिशत से ऊपर के स्तर पर पहुँच गई है।
रेपो दर के बढ़ने या घटने का सीधा असर महंगाई और ऋण दर पर पड़ता है। रेपो दर बढ़ने से ऋण दर में इजाफा होता है, वहीं, महंगाई में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि रेपो दर बढ़ने से बैंक महंगी दर पर कर्ज देते हैं, जिससे लोगों के पास पैसों की कमी हो जाती है। कम आय और उत्पादों की ज्यादा कीमत होने की वजह से मांग में कमी आती है और जब किसी उत्पाद की मांग में कमी आती है तो उसकी कीमत में भी कमी आती है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने ताजा मौद्रिक समीक्षा में कहा है कि आगामी तिमाहियों में महंगाई दर 6 प्रतिशत से ऊपर रह सकती है। केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए महंगाई के अनुमान को 5.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया गया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर के अनुसार वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में महंगाई 7.4 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.2 प्रतिशत और अंतिम तिमाही में 5.8 प्रतिशत रह सकती है।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए मई महीने में केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी। सरकार का मानना था कि आवाजाही पर खर्च कुछ कम होने से जरूरी उत्पादों की कीमत में आंशिक कमी आयेगी और आमजन को कुछ राहत मिलेगी, क्योंकि अभी लोगों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा दैनिक जरूरतों को पूरा करने में निकल जा रहा है।
दुनिया में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। रूस में 12 प्रतिशत, 12 प्रतिशत सऊदी अरब में और 18 प्रतिशत अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन होता है। भारत 85 प्रतिशत तेल का आयात करता है। भारत ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से करता है, लेकिन कुछ प्रतिशत तेल का आयात इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस आदि देशों से भी करता है।
रूस प्राकृतिक गैस की वैश्विक मांग का 10 प्रतिशत उत्पादन करता है। रूस 40 प्रतिशत तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है। घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी होने पर सीएनजी की कीमत भारत में लगभग 5 रुपये प्रति किलो बढ़ जाती है। यूक्रेन, विश्व का सबसे बड़ा परिष्कृत सूरजमुखी तेल का भी निर्यातक है। दूसरे स्थान पर रूस है। भारत भी इन दोनों देशों से सूरजमुखी तेल का आयात करता है। यूक्रेन से भारत खाद भी बड़ी मात्रा में ख़रीदता है। यूक्रेन न्यूक्लियर रिएक्टर व बॉयलर के मामले में भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। रूस पैलेडियम का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जिसका इस्तेमाल बहुत सारे कीमती उत्पादों के निर्माण में होता है।
वैश्विक स्तर पर मौजूदा उच्च महंगाई दर के घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों कारण जिम्मेदार हैं, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कारण ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। भू-राजनैतिक संकट का अभी भी समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। रूस और यूक्रेन अभी भी अपने-अपने ईगो पर अड़े हुए हैं। इस वजह से वैश्विक स्तर महंगाई बढ़ रही है और दुनिया मुद्रास्फीतिजनित मंदी की गिरफ्त में आ रही है।
हालांकि, वर्तमान माहौल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से मजबूत हुई है। देश में मई में खुदरा मुद्रास्फीति नरम होकर 7.04 प्रतिशत रही। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई दर पर काबू करने के लिए संयुक्त रूप से तालमेल के साथ काम कर रहे हैं और इस साल मानसून के अच्छे रहने के आसार हैं। इससे उम्मीद है कि महंगाई के मोर्चे पर जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सालाना आधार पर 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा और वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रहा, जो पूर्व के अनुमानों के अनुरूप है और यह विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन से बहुत ही ज्यादा बेहतर है।
बता दें कि महामारी की वजह से वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत पर सीमित रही थी। जीडीपी का ऐसा प्रदर्शन तब है, जब कारोबार और परिवहन क्षेत्र में अभी और भी सुधार होना बाकी है। अगर इन क्षेत्रों में सुधार गतिविधियों में तेजी आती है तो जीडीपी के आंकड़ों में और भी बेहतरी आयेगी। एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि अनुमान में 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है साथ ही साथ इसके 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)