मोदी सरकार देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में जुटी है। इससे न सिर्फ लाखों करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी बल्कि सैन्य उपकरणों के बहुत बड़े बाजार में भागीदारी का मौका भी मिलेगा।
भारत में अस्त्र-शस्त्र निर्माण की सुदीर्घ परंपरा रही है। हमारी रक्षा उत्पादन इकाइयां (आर्डनेंस फैक्ट्रियां) दुनिया की शाक्तिशाली संस्थाओं में गिनी जाती थीं। विश्व युद्धों के दौरान भारत की आर्डनेंस फैक्ट्रियों का बोलबाला था। दुर्भाग्यवश आजादी के बाद इन फैक्ट्रियों को अपग्रेड नहीं किया गया। भ्रष्ट नेताओं ने इन फैक्ट्रियों में तकनीकी विशेषज्ञों की जगह अपने चहेते अधिकारियों-कर्मचारियों की नियुक्ति कर इन्हें खोखला बना दिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि भारत धीरे-धीरे अपनी सामरिक जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर होता गया। आगे चलकर सत्ता पक्ष से जुड़े आयातकों-बिचौलियों की ताकतवर लॉबी का प्रादुर्भाव हुआ जिसने घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनने ही नहीं दी। रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार के नित नए मामले उजागर होने का असर रक्षा तैयारियों पर भी पड़ा। समय से आधुनिक हथियार व तकनीक न मिलने से सेना का आधुनिकीकरण कार्य प्रभावित हुआ।
आयात पर अत्यधिक निर्भरता, सैन्य तैयारियों पर प्रतिकूल असर आदि को देखते हुए मोदी सरकार ने घरेलू रक्षा निर्माण को बढ़ावा देने की नीति अपनाई। सबसे पहले सरकार ने 41 आर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड की जगह सात अलग-अलग रक्षा कंपनियां स्थापित की। अब ये कंपनियां कार्पोरेट इकाइयों की भांति पेशेवर तरीके से काम करेंगी। आजादी के बाद पहली रक्षा क्षेत्र में बड़े सुधार हुए और सरकार ने अटकाने-लटकाने वाली नीतियों की जगह सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया।
देश को रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने 2018-19 के बजट में दो डिफेंस कॉरिडोर बनाने की घोषणा की थी। ये कॉरिडोर तमिलनाडु के पांच जिलों (चेन्नई, होसूर, कोयंबटूर, सलेम, त्रिचिरापल्ली) और उत्तर प्रदेश के छह जिलों (आगरा, अलीगढ़, लखनऊ, कानपुर, झांसी, चित्रकूट) में बनाए जा रहे हैं।
डिफेंस कॉरिडोर एक रूट होता है जिसमें कई शहर शामिल होते हैं। इन शहरों में सेना के काम में आने वाले सामानों के निर्माण के लिए इकाइयां विकसित की जाती हैं जहां कई कंपनियां हिस्सा लेती हैं। इस कॉरिडोर में सार्वजनिक, निजी और एमएसएमई इकाइयां विनिर्माण करेंगी। इतना ही नहीं सैन्य उत्पादन से जुड़ी इकाइयां भी अपनी यूनिट लगा सकेंगी।
डिफेंस कॉरिडोर में बुलेट प्रूफ जैकेट, ड्रोन, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, तोप और उसके गोले, मिसाइल, विभिन्न तरह की बंदूकें आदि बनाएं जाएंगे। अंतरराट्रीय स्तर की रक्षा सामग्री और हथियारों का उत्पादन होने के साथ–साथ इन कॉरिडोर के कारण क्षेत्रीय उद्योगों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही उद्योग रक्षा उत्पादन के लिए ग्लोबल सप्लाई चेन का साथ भी जुड़ सकेंगे।
घरेलू रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अगस्त 2020 में 101 सामानों की सूची जारी की थी, जिनका आयात 2024 तक बंद कर दिया जाएगा। इसमें वाहक विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियां, क्रूज मिसाइल और सोना सिस्टम शामिल हैं। मई 2021 में सरकार ने दूसरी सूची जारी की जिसमें 108 हथियारों और विभिन्न रक्षा प्रणालियों के आयात पर रोक लगा दी गई। इनमें अगली पीढ़ी के कोर्वेट, हवाई पूर्व चेतावनी प्रणाली, टैंक इंजन और राडार शामिल हैं।
दिसंबर 2021 में सरकार ने 351 रक्षा उपरकणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इनमें कई उप प्रणालियां और रक्षा उत्पादन के घटक शामिल हैं। यह कदम भारत को सैन्य प्लेटफॉर्म और उपकरणों के उत्पादन का केंद्र बनाने के लक्ष्य के तहत उठाया गया है। इसके साथ ही सरकार ने 2500 वस्तुओं की एक और सूची जारी की है जिनका पहले ही स्वदेशीकरण किया जा चुका है।
मोदी सरकार ने 2025 तक 25 अरब डॉलर का रक्षा उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसमें 35000 करोड़ रूपये का एयरोस्पेस और रक्षा सामग्री व सेवाओं का निर्यात शामिल है। घरेलू रक्षा उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सितंबर 2020 में रक्षा क्षेत्र में 74 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है। 74 प्रतिशत से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत होगी।
समग्रत: मोदी सरकार देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में जुटी है। इससे न सिर्फ लाखों करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा की बचत होगी बल्कि सैन्य उपकरणों के बहुत बड़े बाजार में भागीदारी का मौका भी मिलेगा। इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आयातकों-बिचौलियों की ताकतवर लॉबी को भुगतना पड़ेगा।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)