आज पाकिस्तान विश्व बिरादरी में लगभग अलग-थलग पड़ चुका है। उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वो सहयोग में भी और कटौती की बात कर रहा। अगर आज यह स्थिति बन सकी है, तो इसके पीछे और कुछ नहीं मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति का ही प्रभाव है।
पाकिस्तान को जब भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों से अपना पक्ष रखने का अवसर मिलता है, तो वो वैश्विक समस्याओं के निदान में अपना सहयोग या सुझाव देने की बजाय सिर्फ भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाने और कश्मीर समस्या का वितंडा खड़ा करने तक ही सिमटकर रह जाता है। पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की पुरजोर कोशिश करता आ रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से लेकर सेना प्रमुख तक ने द्विपक्षीय कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सैकड़ो बार उछालने की कोशिश की है, लेकिन हर बार उन्हें हार या फटकार ही मिलती आ रही है।
दुर्भाग्यवश एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा के अंतर्राष्ट्रीय मंच से पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी द्वारा पाकिस्तान की इस परंपरा को जारी रखा गया। जिस तरह शाहिद खाकान अब्बासी ने कश्मीर राग गाया और आतंक जैसी वैश्विक समस्या पर स्वयं को पीड़ित की भूमिका में परिभाषित किया, वो बेहद हास्यास्पद है। लेकिन, भारत का पक्ष रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में गयीं भारतीय राजनयिक इनाम गंभीर ने पाक के उन कश्मीर आधारित आरोपों का न केवल खंडन करते हुए कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताया, बल्कि शाहिद खाकान अब्बासी पर जमकर पटलवार भी किया।
इस अवसर पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान द्वारा आतंक को पोषण देने का कच्चा-चिट्ठा खोलते हुए उसका नया नाम “टेररिस्तान” रख दिया। पाकिस्तान को एकदम सीधे तौर पर टेररिस्तान कहना भारत का कूटनीतिक रूप से एक एक बेहद सख्त और खुला रुख है। अबतक भारत की तरफ से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को इशारों-इशारों में ही आतंक का पोषक बताया जाता रहा था, लेकिन ये एकदम खुला और आक्रामक बयान है।
यह भी उल्लेखनीय होगा कि भारत के अलावा अफगानिस्तान और बांग्लादेश के द्वारा भी पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए उसपर विश्व में आतंक के माध्यम से अशांति फैलाने का आरोप लगाया गया। जाहिर है, अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं। इतना ही नहीं, चीन को अपना खास दोस्त और बड़ा हितैषी समझने वाले पाकिस्तान को तब और बड़ा झटका लगा, जब चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तेक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली। दूसरी ओर भारत के दृष्टिकोण से एक और मजबूत पक्ष यह रहा कि जब यूएन महासभा में बहस जारी थी, तब बलूचिस्तान और सिंध के लोग भी संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के सामने पाक के अत्याचार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। यह पाकिस्तान की पोल खोलने वाला था।
इस पूरे प्रकरण को देखते हुए स्पष्ट है कि आज पाकिस्तान विश्व बिरादरी में लगभग अलग-थलग पड़ चुका है। उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वो सहयोग में भी और कटौती की बात कर रहा। अगर आज यह स्थिति बन सकी है, तो इसके पीछे और कुछ नहीं मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति का ही प्रभाव है।
(लेखक द इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया के छात्र हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)