जे. के. त्रिपाठी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दो वर्ष पूर्ण होने पर विभिन्न क्षेत्रों में आकलन प्रारंभ हो गए हैं। आइये देखें कि विदेश नीति के मोर्चे पर इस सरकार का कार्य कैसा रहा है। पड़ोसी देशों की बात करें तो मोदी सरकार ने पिछली सरकारों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। श्रीलंका और बांगलादेश से रिश्तों में बहुत सुधार आया है। बांगलादेश के साथ विवादित सीमा समझौता एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है, वहीं श्रीलंका के साथ पुरानी कटुता और संदेह में कमी आई है। नेपाल और मालदीव के साथ आई खटास को काफी हद तक कम कर दिया गया है। पाकिस्तान के साथ संबंध यथावत रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री ने राजनयिक शिष्टाचार से आगे जाकर अपनी मित्रता की प्रतिबद्धता के संकेत दिए हैं। वैसे भी पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में इतनी जल्दी किसी नाटकीय परिवर्तन की आशा नहीं करनी चाहिए। म्यांमार ने अपनी सीमा में भारतीय सुरक्षा बलों को अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति देकर बढ़ती मित्रता के संकेत दे दिए हैं। संक्षेप में ‘पड़ोसी पहले’ की मोदी की नीति काफी सफल रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी की विदेश नीति को पर्याप्त सफलता मिली है। सं.रा.सं. में अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रखने में मोदी दोनों वर्ष सफल रहे हैं। भारत की यह मांग कि संयुक्त राष्ट्रसंघ में सुधार एक सहमति से बने टेक्स्ट के आधार पर हो, स्वीकार की गई। ब्रिक्स के तहत बने विकास बैंक के पहले प्रमुख भारतीय हैं। जी-20, सार्क, शंघाई सहयोग संगठन में भारत की भूमिका और महत्व दोनों ही बढ़े हैं। अफ्रीकी देशों का शिखर सम्मेलन सफलता से आयोजित कर भारत ने अफ्रीका का विश्वास जीतने की ओर बड़ी पहल की है और अफ्रीकी देशों को भी विस्तारवादी चीन की तुलना में सहयोगवादी भारत की ओर झुकना अच्छा लग रहा है। द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने की दिशा में सरकार के प्रयास सराहनीय रहे हैं। सं.रा. अमेरिका के साथ संबंधों की एक नई ऊंचाई हासिल की गई है। विगत दो वर्षों में विदेशों में भारत की छवि अधिक उज्ज्वल हुई है। प्रवासी भारतीय भी अब अपने को भारत से ज्यादा जुड़ा महसूस कर रहे हैं। ध्यान रहे कि इनमें से कई उन देशों की विदेश नीति और व्यापार नीति को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं जहां वे रह रहे हैं।
(लेखक अनेक देशों में भारत के राजदूत रहे हैं, यह लेख पांचजन्य में २९ मई के अंक में प्रकाशित हुआ था )