1947 से ठीक 60 सालों के बाद भारत की जीडीपी 2007 में 1 ट्रिलियन डॉलर की हुई और 2014 में बढ़कर 2 ट्रिलियन डॉलर की हो गई और 2019 में 3 ट्रिलियन डॉलर की। 2014 में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई थी, जबकि 2019 में यानी सिर्फ 5 सालों के अंदर यह दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई. अभी अमेरिका में अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने की सालाना रफ़्तार 1.58 प्रतिशत है, जबकि चीन की 6.3 प्रतिशत, जापान की 1.3 प्रतिशत और जर्मनी की 0.2 प्रतिशत है.
स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त 2023 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए कहा कि भारत 2047 तक एक विकसित देश बन जायेगा. पुनः “द इंडियन इकनॉमी: ए रिव्यू” रिपोर्ट, जिसे सरकार ने अंतरिम बजट पेश करने से ठीक पहले पहले जारी किया था में भारतीय अर्थव्यवस्था के 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर और 2047 तक भारत के विकसित देश बनने की बात कही गई है.
यहाँ सवाल का उठाना लाजिमी है कि क्या सचमुच ऐसा मुमकिन है, क्योंकि अभी भी भारत एक विकासशील देश है और कई चुनौतियाँ का सामना कर रहा है, जिनमें देश में समावेशी विकास को सुनिश्चित करना, गरीबी का खात्मा, आधारभूत संरचना को और मजबूत बनाना, शिक्षा के स्तर में इजाफा, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी, सभी लोगों को आत्मनिर्भर बनाना आदि हैं. यहाँ हम यह विश्लेषण करेंगे कि कैसे 2027 में भारत की अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन डॉलर और 2030 में 7 ट्रिलियन डॉलर की बनेगी और कैसे 2047 तक भारत एक विकसित राष्ट्र बन पायेगा?
पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (आईएमएफ) के अनुसार भारत की जीडीपी वर्तमान मूल्य पर अभी 3.73 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि अमेरिका की जीडीपी वर्तमान मूल्य पर 26.9 ट्रिलियन डॉलर की है और यह दुनिया में पहले स्थान पर है, वहीं, वर्तमान मूल्य पर 17.8 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ चीन दूसरे स्थान पर है। इस क्रम में जर्मनी वर्तमान मूल्य पर 4.4 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ तीसरे और जापान वर्तमान मूल्य पर 4.2 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ चौथे स्थान पर है।
पीपीपी के अनुसार भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
किसी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को मापने के लिए परजेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) पैमाने का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह पैमाना बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं है। इस संकल्पना के तहत दो देशों के बीच उत्पादकता और इंसान के रहने की गुणवत्ता (लिविंग स्टैण्डर्ड) की तुलना करने के लिए दो या उससे अधिक देशों की सेवाओं व उत्पादों के साथ वहां की मुद्राओं की खरीद क्षमता के बीच तुलना की जाती है, जिससे व्यक्ति के खरीदने की क्षमता का पता चलता है। अगर भारत में एक व्यक्ति की 170 रुपए में हेयर कटिंग की जाती है और अमेरिका में 2 डॉलर में तो यहाँ 170 रुपए के समकक्ष 2 डॉलर हुआ अर्थात भारत और अमेरिका में एक समान सेवा की कीमत समान है।
इसी को परजेजिंग पावर पैरिटी कहते हैं. इसकी गणना में वस्तु या सेवा की कीमत की दर और विनिमय दर दोनों को ध्यान में रखा जाता है। पीपीपी के मामले में 2023 में भारत 13.119 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, जबकि चीन 30.3 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया में पहले स्थान पर था. वहीं, अमेरिका 25.4 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दूसरे स्थान पर था.
जीडीपी गणना का प्रकार और आधार
भारत में जीडीपी की गणना दो प्रकार से की जाती है। रियल और नॉमिनल। रियल जीडीपी की गणना का आधार वर्ष 2011-12 है और इस अवधि के दौरान वस्तुओं एवं सेवाओं की तात्कालिक कीमत के अनुसार वस्तु या सेवा का मूल्य आँका जाता है, जबकि नॉमिनल जीडीपी के तहत वर्तमान मूल्य पर वस्तु एवं सेवा का मूल्य आँका जाता है। आधार वर्ष की कीमत स्थिर होती है, क्योंकि वह बीते हुए कल की कीमत होती है, जबकि वर्तमान समय की कीमत में परिवर्तन संभव है।
मजबूत है भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में मुद्रास्फीति और बेरोजगारी दर काबू में है. साथ ही, प्रति व्यक्ति आय में मुसलसल वृद्धि हो रही है. इस आधार पर माना जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आगामी सालों में भी मजबूती बनी रहेगी. हाँ, जीडीपी के अनुपात में सरकारी कर्ज का प्रतिशत अधिक है, लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और अन्य कर व ग़ैर कर राजस्व संग्रह में आ रही तेजी से इस प्रतिशत में आने वाले सालों में कुछ कमी आ सकती है.
जर्मनी और जापान में विकास दर भारत से कम रहने का अनुमान
जर्मनी
जर्मनी में विकास भारत की तुलना में कम तेजी से होने का अनुमान है. वर्तमान मूल्य पर जर्मनी की अर्थव्यवस्था अभी दुनिया में तीसरे स्थान पर है। 2022 में इसका जीडीपी 4.03 ट्रिलियन डॉलर और 2023 में 4.12 ट्रिलियन डॉलर रहा था, जबकि इसके 2024 में 4.33 ट्रिलियन डॉलर, 2025 में 4.54 ट्रिलियन डॉलर, 2026 में 4.74 ट्रिलियन डॉलर और 2027 में 4.92 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान है। जर्मनी में मुद्रास्फीति 2022 में 8.5 प्रतिशत और 2023 में 7.2 प्रतिशत था, जबकि इसके 2024 में 3.5 प्रतिशत, 2025 में 2.67 प्रतिशत, 2026 में 2.0 प्रतिशत और 2027 में 2.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वहीं, जर्मनी में 2022 में बेरोजगारी दर 2.9 प्रतिशत और 2023 में 3.4 प्रतिशत था, जबकि इसके 2024 में 3.3 प्रतिशत, 2025 में 3.2 प्रतिशत और 2026 व 2027 में क्रमशः 3.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। सरकारी कर्ज का अनुपात जर्मनी में 2022 में 71.1 प्रतिशत और 2023 में 68.3 प्रतिशत था, जिसके 2024 में 65.6 प्रतिशत, 2025 में 63.1 प्रतिशत, 2026 में 61.0 प्रतिशत और 2027 में 59.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
जापान
जर्मनी की तरह जापान में भी विकास भारत की तुलना में कम तेजी से होने का अनुमान है. 2022 एवं 2023 में वर्तमान मूल्य पर जापान में जीडीपी क्रमशः 4.23 और 4.30 ट्रिलियन डॉलर रहा था और यह दुनिया में चौथे स्थान पर था. जापान का जीडीपी 2024 में 4.56 ट्रिलियन डॉलर, 2025 में 4.81 ट्रिलियन डॉलर, 2026 में 5.01 ट्रिलियन डॉलर और 2027 में 5.17 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान है. जापान में 2022 में मुद्रास्फीति दर 2.5 प्रतिशत और 2023 में 3.2 प्रतिशत रहा था, जबकि 2024 से 2027 तक इसके 1.0 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जापान में बेरोजगारी दर 2022 में 2.6 प्रतिशत था, जबकि 2023 में 2.4 प्रतिशत. वहीं, 2024 से 2027 तक इसके 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है. जापान में जीडीपी के अनुपात में सरकारी कर्ज 2022 में 263 प्रतिशत था, जबकि 2023 में यह 261 प्रतिशत. वहीं, इसके 2024 व 2025 में क्रमशः 260, पुनः 2026 व 2027 में क्रमशः 262 एवं 263 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
जर्मनी व जापान में कम है बेरोजगारी एवं मुद्रास्फीति दर
जर्मनी और जापान दोनों देशों में बेरोजगारी और मुद्रास्फीति दर कम है, लेकिन जीडीपी के संदर्भ में सरकारी कर्ज जर्मनी में ज्यादा है और जापान में यह बहुत ही ज्यादा है. इन दोनों देशों में बेरोजगारी दर के कम रहने और प्रति व्यक्ति आय के अधिक होने का मुख्य कारण वहां जनसंख्या का कम होना है, अन्यथा भारत में अर्थव्यवस्था के सभी प्रमुख मानक इन दोनों देशों से बहुत ही ज्यादा मजबूत हैं.
मुमकिन है 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
1947 से ठीक 60 सालों के बाद भारत की जीडीपी 2007 में 1 ट्रिलियन डॉलर की हुई और 2014 में बढ़कर 2 ट्रिलियन डॉलर की हो गई और 2019 में 3 ट्रिलियन डॉलर की। 2014 में भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई थी, जबकि 2019 में यानी सिर्फ 5 सालों के अंदर यह दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई. अभी अमेरिका में अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने की सालाना रफ़्तार 1.58 प्रतिशत है, जबकि चीन की 6.3 प्रतिशत, जापान की 1.3 प्रतिशत और जर्मनी की 0.2 प्रतिशत है. वहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार 7.2 प्रतिशत है. आगामी 3 सालों में बेरोजगारी दर, मुद्रास्फीति दर और जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान के आधार पर कहा जा सकता है, भारतीय अर्थव्यवस्था आसानी से 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की बन सकती है.
2030 में सात ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
“द इंडियन इकनॉमी: ए रिव्यू” रिपोर्ट में मोदी सरकार के पिछले 10 सालों के सफ़र को आर्थिक सुधारों के संदर्भ में बहुत ही अहम् बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा किये जा रहे आर्थिक सुधारों की वजह से ही आज भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकी है. रिपोर्ट के मुताबिक विरासत में मिली कमजोर अर्थव्यवस्था और कोरोना महामारी से उपजी चुनौतियों के बावजूद भारत आज आर्थिक दृष्टि से एक सशक्त देश है. देश में डिजिटल आधारभूत संरचना भी मजबूत है और अन्य बुनियादी क्षेत्र जैसे, सड़क, बिजली, रेल, हवाई परिवहन आदि भी.
वित्त वर्ष 2025 में नॉमिनल जीडीपी के 7 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी के 7.3 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने का अनुमान जताया गया है. इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट में यह भी संभावना जताई गई है कि भारत की जीडीपी 2030 तक 7 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने भी भारत के वित्तीय क्षेत्र में आई मजबूती और सरकार द्वारा किये गए हालिया संरचनात्मक सुधारों की वजह से सरकार के इस दावे की पुष्टि की है.
एस एंड पी ग्लोबल ने अपनी ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक 2024 की रिपोर्ट “न्यू रिस्क, न्यू प्लेबुक” में कहा कि भारत की नॉमिनल जीडीपी 2022 में 3.5 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2030 तक 7.3 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगी. इस अनुमान में कोई अतिरंजना भी नहीं है, क्योंकि अभी 6.3 प्रतिशत की दर से जीडीपी में वृद्धि अनुमान से इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है, लेकिन “द इंडियन इकनॉमी: ए रिव्यू” की रिपोर्ट और एस एंड पी ग्लोबल की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था 2030 तक 7 प्रतिशत से अधिक की दर से आगे बढ़ सकती है. अगर ऐसा होगा तो 2030 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 7 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक का होगा.
2047 तक विकसित देश बनने का सपना
कई आर्थिक चुनौतियों और कोरोना महामारी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था ने रिकवरी करने के मामले में दुनिया के विकसित देशों को पछाड़ दिया है और भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत होती जा रही है. आज घरेलू समस्याओं का समाधान करने में भी भारत सफल रहा है और जी-20 की अध्यक्षता करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताकत दिखाने में भी वह कामयाब रहा है और अब भारत आजादी के 100वें साल में एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
विकसित देश बनने की प्रक्रिया में भारत
सामाजिक पक्ष
भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 1947 में लगभग 40 वर्ष थी, जो अब बढ़कर लगभग 70 वर्ष हो गई है। भारत ने प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक तीनों स्तरों पर शिक्षा के नामांकन में उल्लेखनीय प्रगति की है। देश में साक्षरता दर अभी 74.04 प्रतिशत है, जबकि आजादी के समय यानी 1947 में यह महज 18 प्रतिशत थी. सामाजिक मोर्चे पर केवाईसी की लागत 2014 के पहले लगभग 1000 रुपए थी, जो डिजिटल पब्लिक आधारभूत संरचना में हुए तेज विकास के कारण घटकर 5 रुपए रह गई है। वर्ष 2021 में 78.6 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक खाता था, जबकि वित्त वर्ष 2015-16 में यह प्रतिशत महज 53 थी।
देश के कुल श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई है, जो वित्त वर्ष 2017-18 में सिर्फ 23.3 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2020-21 में उच्च शिक्षा में लड़कियों की सकल नामांकन अनुपात बढ़कर 27.9 प्रतिशत हो गई है, जो 2000-01 में केवल 6.7 प्रतिशत थी। इसतरह, 20 सालों में उच्च शिक्षा में लड़कियों के सकल अनुपात में 4 गुणा की बढ़ोतरी हुई है। सेकेंडरी शिक्षा में लड़कियों का नामांकन अनुपात वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 58.2 प्रतिशत हो गया है, जो वित्त वर्ष 2004-05 में सिर्फ 24.5 प्रतिशत था।
प्रति व्यक्ति आय
2023 में वर्तमान मूल्य पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत दुनिया में 140 वें स्थान पर था, जबकि पीपीपी की गणना पद्दति के संदर्भ में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 125 वें स्थान पर था. भारत को इन दोनों पैमानों में शीर्ष 10 देशों की सूची में आने में एक लंबा समय लग सकता है, क्योंकि जीडीपी के संदर्भ में भारत में प्रति व्यक्ति आय 2023 में 2612.50 अमेरिकी डॉलर है, जबकि अमेरिका में यह 80,412 अमेरिकी डॉलर है. एक अनुमान के अनुसार 2047 में भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर की हो जायेगी और इसकी आबादी लगभग 1.65 बिलियन होगी अर्थात उस समय भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग 18,181 अमेरिकी डॉलर होगी.
इस असमानता का मुख्य कारण भारत की बड़ी जनसंख्या और गरीबी है. समस्या के समाधान करने के लिए भारत को समावेशी विकास की संकल्पना को मूर्त देना होगा और लोगों को आत्मनिर्भर बनाकर गरीबी का समूल नाश करना होगा. इसलिए, यह कहना समीचीन होगा कि 2047 तक भारत में प्रति व्यक्ति आय एक बेहतर स्थिति में जरूर होगी, लेकिन तब भी, वह अनेक देशों से कम होगी, जिनमें विकासशील देश भी शामिल होंगे।
आर्थिक विकास
भारत जब आजाद हुआ था, तब भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 227 बिलियन डॉलर की थी और यह दुनिया की छठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था थी, जो वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़कर लगभग 3.73 ट्रिलियन डॉलर की हो गई। वर्ष 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में यह बहुत सफल नहीं रही। बाद की पंचवर्षीय योजनाओं का भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सका। हालाँकि, वर्ष 1961 से भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि दृष्टिगोचर होने लगा. वर्ष 1950 से वर्ष 1979 तक देश की जीडीपी औसतन 3.5 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही थी, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था में “हिंदू वृद्धि दर” कहा गया, जबकि वर्ष 1950 से वर्ष 2020 तक भारत की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 6.15 प्रतिशत की दर से आगे बढी.
वर्ष 2010 की पहली तिमाही में जीडीपी दर 11.40 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया, जबकि वर्ष 1979 की चौथी तिमाही में इसने 5.20 की सबसे कम वृद्धि दर्ज की. वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी वृद्धि दर 3.87 प्रतिशत थी, जो वित्त वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण घटकर माइनस 5.83 हो गया, वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर यह 9.05 प्रतिशत हो गया और वित्त वर्ष 2022 में घटकर 7 प्रतिशत हो गया और पुनः वित्त वर्ष 2023 में इसके 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है. वित्त वर्ष 1960 में प्रति व्यक्ति आय 83 अमेरिकी डॉलर थी, जो वित्त वर्ष 2001 में बढ़कर 450 अमेरिकी डॉलर हो गई. वित्त वर्ष 2011 में यह बढ़कर 1,450 अमेरिकी डॉलर हो गई. वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर 2,238 अमेरिकी डॉलर और वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 2612 अमेरिकी डॉलर हो गई.
आर्थिक सुधारों का आरंभ
वर्ष 1991 से भारत सरकार ने आर्थिक सुधार करना शुरू किया, जो आज भी जारी है। वर्ष 1991 में विदेश व्यापार, कर सुधार, विदेशी निवेश आदि क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अनेक उपाय किये गये, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिली। पुनः 2014 के बाद बैंकिंग और आर्थिक क्षेत्र में कई सुधार किये गए, जिससे अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है। इन सुधारों में सबसे महत्वपूर्ण है वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का आगाज.
शेयर बाजार
अस्सी के दशक में पहली बार, वर्ष वित्त वर्ष 1989-90 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) सूचकांक 1000 के अंक के स्तर को पार किया. वर्ष 2006 में बीएसई सूचकांक 10,000 अंक के स्तर को पार कर गया. फिर वित्त वर्ष 2014-15 में यह 30,000 अंक के स्तर को और वित्त वर्ष 2018-19 में 40000 अंक के स्तर को पार कर गया, जो वर्ष 2023 में रिकॉर्ड 70,000 अंक के स्तर को पार कर गया। निफ्टी सूचकांक भी वर्ष 2023 में रिकॉर्ड 21,000 अंक के स्तर को पार कर गया.
निष्कर्ष
“द इंडियन इकनॉमी: ए रिव्यू” रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में लगातार चौथे साल भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक रह सकती है, जबकि अभी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का विकास दर लगभग 3 प्रतिशत के आसपास है। हालांकि, भारत में वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान महंगाई दर के 5.5 प्रतिशत रहने के आसार हैं, लेकिन वित्त वर्ष 2024-25 में इसके 4 प्रतिशत के आसपास आने की संभावना है. जाहिर है, महंगाई के कम होने पर विकास की रफ़्तार में भी इजाफा होगा.
भारत में उद्योगीकरण, शिक्षा, आधारभूत संरचना, यंत्रीकरण, डिजिटलाइजेशन, स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में मुसलसल कार्य किया जा रहा है. यहाँ लोगों की जीवन प्रत्याशा, शिक्षा में सुधार, सामाजिक स्तर पर सौहाद्र कायम करने आदि के संदर्भ में तेजी से कार्य किया जा रहा है. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, पीएम् स्वनिधि, सेल्फ हेल्प ग्रूप आदि की मदद से देश में समावेशी विकास को बल मिल रहा है. बड़ी संख्या में लोग आत्म निर्भर हुए हैं.
इसी वजह से विगत वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल सके हैं. उम्मीद है कि आगामी 24 सालों में इन क्षेत्रों में बेहतरी लाने के लिए उल्लेखनीय कार्य करके 2027 में 5 ट्रिलियन डॉलर, 2030 में 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।