वैसे तत्व आज बढ़ रहे हैं जो निजी स्वार्थ के लिए देश के दामन पर भी दाग लगाने में कसर नहीं छोड़ते। ऐसे गलत तत्वों से सावधान रहते हुए अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आजादी के बाद अबतक का हमारा सफर उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए यहाँ तक पहुँचा है और अब जरूरत है कि देश को दुनिया के शीर्ष पर पहुँचाने के लिए हम सब मिलकर प्रयास करें। राष्ट्र-गौरव की भावना, भारतीय संस्कृति और युवा आबादी हमारी असल ताकत हैं, जिसे पहचानने की जरूरत है। यही ताकतें हमें विश्व शक्ति के मुकाम तक पहुंचाएंगी।
भारत आज़ादी के 71वें वर्ष का जश्न मना रहा है। मेहनत, हिम्मत, संकल्प, जिद और लाखों लोगों के बलिदान के बाद हमारे शहीदों ने एक स्वतंत्र हिंदुस्तान का सपना साकार किया, लेकिन आज़ादी के साथ ही हमें देश के विभाजन का भी दंश झेलना पड़ा। विभाजन के समय 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए। विभाजन के दौरान और बाद में 72 लाख हिन्दुओं और सिखों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा, वहीं इतनी ही मुसलमानों की आबादी भारत से पाकिस्तान चली गई।
एक तरफ पंजाब का विभाजन हुआ, वहीं दूसरी तरह बंगाल का भी दोफाड़ हो गया। भारत के लिए आगे का सफ़र आसान नहीं था। दुनिया के इतिहास में करोड़ों लोगों को एक साथ अपना घर-द्वार छोड़ना पड़ा, काश ऐसा नहीं होता तो संपूर्ण भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा देश होता। खैर, भारत ने उन्नति की राह पर अपना कदम तो धरा लेकिन जिस रफ़्तार से हमें आगे बढ़ना था, शायद हम उस मुकाम पर नहीं पहुँच पाए। प्रगति की राह पर आगे बढ़ने और आसमान को छूने की कसक अभी बाकी है। आज आजाद भारत की फिजा में सांस लेने का मतलब बहुत कुछ है, जहाँ आपको अप्रच्छन्न स्वतंत्रता मिली हुई है, लोकतंत्र की सौगात अपने आप में एक नायाब तोहफा है। मगर, यहाँ से अभी और लम्बा सफर तय करना है।
आज़ादी के 70 साल बाद आज जिन्हें लगता है कि सब कुछ उन्हें किसी थाल में सजा-सजाया मिल गया, उनके लिए आज़ादी का मतलब समझना भी ज़रूरी है। आज़ादी के साथ ज़िम्मेदारी आती है और एक जिम्मेदार नागरिक ही देश-निर्माण का मुकम्मल निर्वाह कर सकता है। इतिहास पढ़ने और समझने के साथ-साथ उसकी बातों को आत्मसात करना भी ज़रूरी है।
सबसे पहले तो हम इस देश की संकल्पना पर गौर फरमाते हैं, जिसे हम आज भारतीय गणतंत्र कहते हैं, जिसका अपना एक सविधान है। भारत की अपनी संप्रभुता है, अपना कानून है। अपनी हजारों सालों की संस्कृति है, विविध भाषाएँ हैं। देश की एक संसद हैं। निष्पक्ष न्यायपालिका है। मीडिया है। हम भारत के करोड़ों लोग हैं, जो देश के कानून और मर्यादा को प्रतिस्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
राष्ट्र-गौरव होना भी ज़रूरी
1990 के दशक के बाद जिन युवाओं का जन्म हुआ, उन्होंने खुलेपन का दौर देखा, उन्होंने खुली सड़कें देखीं। रफ़्तार में चलती ट्रेनें देखीं, विदेशी मॉडल्स की कारें देखीं, मेक्डोनाल्ड, पिज़्ज़ा हट और तमाम विदेशी फ़ूड के आउटलेट्स देखे। मगर, उदारवाद के इस दौर में नेशनल प्राइड या राष्ट्रीय गौरव विकसित करने की संस्कृति वैसे बन नहीं पाई जैसे होनी चाहिए थी।
आज उनलोगों की इस देश में कमी नहीं जो राष्ट्र गान और राष्ट्र-ध्वज को लेकर भी प्रश्न उठाने में अपनी शेखी समझते हैं। आज एक ऐसा भी गिरोह काम करता है, जो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाकर प्रगतिशील बनने का स्वांग रचने में ही अपनी सफलता मानता है। उसके पीछे मीडिया की भी अच्छी खासी ज़मात है।
इन लोगों को बताना चाहिए कि आखिर जब भारत ही नहीं होगा तो आप प्रगतिशील बनेंगे कैसे और आज़ादी की बात करेंगे कैसे? आज अमेरिका जैसे देश में में लोग अमेरिकन प्राइड की बात करते हैं। वहां के चुनावों में लोगों ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ के स्लोगन को लोग सर माथे पर रखते हैं। यह हमारे यहाँ देशविरोधी बातें करने वाले तत्वों के लिए सबक है।
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों में आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस है। वहाँ किसी दल का नेता जाति या धर्म को आधार बनाकर किसी आतंकी को बचाने की वकालत नहीं करता। उनके लिए देश पहले हैं, पार्टी और विचारधारा बाद में। इस संस्कृति और विचारधारा को विकसित होने में दशकों लगे। हमारे युवाओं, चाहे वो किसी धरम से ताल्लुक रखते हों, को यह समझना होगा। हालांकि भारत में वर्तमान सरकार आतंक के खिलाफ इसी तरह की नीति पर चल रही है और उसमें सबको साथ लेने की कोशिश भी कर रही है। इस बात को प्रधानमंत्री ने आज लाल किले की प्राचीर से दिए अपने भाषण में रेखांकित भी किया।
लाल किले की प्राचीर से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : आज भारत की साख विश्व में बढ़ रही है, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया हमारे साथ है। हवाला कारोबार होता है तो दुनिया हमें जानकारी दे रही है, हम विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर का विकास, उन्नति और उसके सपनों को पूरा करना हमारा संकल्प है, फिर से इसे स्वर्ग बनाना है। कश्मीर के अंदर बयानबाजी भी होती है, लोग एक दूसरे को गाली भी देते हैं। कश्मीर में जो कुछ भी घटनाएं घटती हैं, मुठ्ठी भर अलगाववादियों के कारण होती हैं। लेकिन ये समस्या ना गाली से सुलझेगी ना ही गोली से सुलझेगी, ये समस्या सुलझेगी तो सिर्फ हर कश्मीरी को गले लगाने से सुलझेगी।
आज भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है और आने वाले समय में भी यही स्थिति रहने की संभावना है। प्रधानमंत्री मोदी भी अक्सर अपने वक्तव्यों में देश की इसी युवा शक्ति का उल्लेख करते रहे हैं। उन्होंने आज भी अपने वक्तव्य में देश की युवा शक्ति का महत्व बताया। प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से इस विषय को उठाते हुए कहा :
युवाओं के लिए 2018 एक महत्वपूर्ण वर्ष : हम सभी को उस बात को लेकर आगे चलना चाहिए कि आने वाले 2018 की 1 जनवरी सामान्य नहीं होगी। 21वीं शताब्दी में जन्मे नौजवानों के लिए यह वर्ष काफी महत्वपूर्ण वर्ष है। अब युवा 18 साल के हो गए हैं, जो कि देश को आगे बढ़ाएंगे। मेरे प्यारे देशवासियों, जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से सवाल पूछे थे। तब कृष्ण ने कहा था कि जैसा मन का भाव होता है, वैसा ही परिणाम आता है। अगर मन का विश्वास पक्का होगा, तो हम उज्जवल भारत बना पाएंगे। हम पहले निराशा से पले-बढ़े हैं, अब हमें इसे छोड़ना होगा। ‘चलता है’ का जमाना चला गया है, अब आवाज उठती है कि बदल रहा है, बदल सकता है, यही विश्वास सभी देशवासियों में होना चाहिए।
बचाना होगा अपनी संस्कृति
जब आप अपने देश की संस्कृति और अपने देश की मिट्टी को नहीं बचाते हैं, तब समझिये कि संकट के काले बादल छा गए। वैसे तत्व आज बढ़ रहे हैं जो निजी स्वार्थ के लिए देश के दामन पर भी दाग लगाने में कसर नहीं छोड़ते। ऐसे गलत तत्वों से सावधान रहते हुए अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। आजादी के बाद अबतक का हमारा सफर उबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए यहाँ तक पहुँचा है और अब जरूरत है कि देश को दुनिया के शीर्ष पर पहुँचाने के लिए हम सब मिलकर प्रयास करें। यही हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)