भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता तो जैसे समाप्त ही हो गई थी। परंतु, पिछले लगभग 10 वर्षों के दौरान भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता को पुनः पैदा करने के अथक प्रयास किये गए हैं, जिनमे सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है और भारत में अब पुनः बहुत बड़ी मात्रा में उद्यमों को स्थापित किया जा रहा है, जिससे भारतीय नागरिक अब धीरे-धीरे नौकरी मांगने वाले से नौकरी देने वाले बनते जा रहे हैं।
भारतीय प्राचीन ग्रंथो में ऐसे कई प्रमाण मिलते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि भारत सदैव ही आर्थिक रूप से सम्पन्न देश रहा है एवं भारत के समस्त नागरिकों के लिए रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध रहे हैं। मुद्रा स्फीति, आय की असमानता, बेरोजगारी एवं ऋण के भारी बोझ के तले दबे रहना जैसे शब्दों का तो प्राचीन भारत के आर्थिक इतिहास में वर्णन नहीं के बराबर मिलता है। भारत के समस्त नागरिकों की पर्याप्त मात्रा में आय होती थी जिससे वह अपने परिवार का आसानी से गुजर बसर कर पाते थे एवं समाज में समस्त नागरिक प्रसन्नता पूर्वक रहते थे।
दरअसल प्राचीन भारत के उस खंडकाल में नागरिकों में उद्यमशीलता अपने चरम पर थी। परिवार के जमे जमाए व्यवसाय पीढ़ी दर पीढ़ी सफलतापूर्वक आगे चलते रहते थे एवं परिवार के सदस्यों के आय अर्जन का मुख स्त्रोत बने रहते थे। इस दृष्टि से नागरिकों को सामान्यतः नौकरी के लिए परिवार के पारम्परिक व्यवसाय के बाहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। इस प्रकार उस खंडकाल में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न ही नहीं होती थी।
भारत पर आक्रांताओं के आक्रमण एवं इसके तुरंत बाद अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय नागरिकों की उद्यमशीलता को समाप्त कर उनमें नौकरी करने की भावना को विकसित किया गया क्योंकि अंग्रेजों को अपने शासन को सुचारू रूप से संचालन के लिए नौकरों की आवश्यकता थी। अंग्रेजों के शासनकाल में भारत की शिक्षा पद्धति को भी कुछ इस प्रकार से परिवर्तित किया गया कि भारतीय नागरिक अपनी पढ़ाई समाप्त करने के पश्चात अंग्रेजों के संस्थानों में केवल नौकरी कर सके। दीर्घकाल में इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय नागरिक केवल नौकरी को ही रोजगार का साधन मानने लगे और उन्हें यदि नौकरी नहीं मिल पाती तो वे अपने आप को बेरोजगार मानने लगे।
भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता तो जैसे समाप्त ही हो गई थी। परंतु, पिछले लगभग 10 वर्षों के दौरान भारतीय नागरिकों में उद्यमशीलता को पुनः पैदा करने के अथक प्रयास किये गए हैं, जिनमे सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है और भारत में अब पुनः बहुत बड़ी मात्रा में उद्यमों को स्थापित किया जा रहा है, जिससे भारतीय नागरिक अब धीरे-धीरे नौकरी मांगने वाले से नौकरी देने वाले बनते जा रहे हैं।
पिछले एक दशक के दौरान केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने भारतीय नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कई नई योजनाएं प्रारम्भ की हैं। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) प्रारम्भ की गई थी। इस योजना को प्रारम्भ करने का मुख्य उद्देश्य देश के युवाओं को सुरक्षित बेहतर आजीविका प्राप्त करने के लिए उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना था। वर्ष 2016 में स्टार्ट-अप इंडिया योजना देश में लागू की गई थी।
इस योजना को लागू करने का मुख्य उद्देश्य एक ऐसा तंत्र विकसित करना था, जो पूरे देश में उद्यमिता का पोषण और प्रचार करता हो। वर्ष 2016 में ही स्टैंड अप इंडिया योजना प्रारम्भ की गई थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और एससी/एसटी उधारकर्ताओं को 10 लाख रुपये तक के बैंक ऋण की सुविधा तथा ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए 1 करोड़ रु. तक का ऋण प्रदान करना था। इसके पूर्व, वर्ष 2014 में राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन की स्थापना ‘कौशल भारत’ एजेंडे को ‘मिशन मोड’ में चलाने के लिए की गई थी ताकि मौजूदा कौशल प्रशिक्षण पहलों को एकजुट किया जा सके और कौशल प्रयासों के पैमाने और गुणवत्ता को गति के साथ जोड़ा जा सके।
इन योजनाओं के साथ ही भारतीय नागरिकों और राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक कल्याण को सम्बोधित करने के लिए भारत सरकार द्वारा कई अन्य योजनाएं (पीएम गरीब कल्याण योजना, आयुषमान भारत, प्रसाद योजना, आदि) भी प्रारम्भ की गई हैं। सरकार के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे कुछ सांस्कृतिक संगठनों द्वारा भी भारत में रोजगार के अवसर निर्मित करने के उद्देश्य से कई अन्य सामाजिक संस्थाओं को साथ लेकर कुछ प्रयास प्रारम्भ किए गए।
संघ ने तो अपने कुछ आनुषांगिक संगठनों को यह जिम्मेदारी सौंपी कि वे इस क्षेत्र में विशेष प्रयास करें। इन सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संगठनों ने मिलकर समाज में विशेष रूप से युवा नागरिकों के उद्यमशीलता को पुनः विकसित करने के सफल प्रयास किए हैं एवं अब एक बार पुनः भारत में उद्यमों को बढ़ावा मिलता दिखाई दे रहा है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में कर्मचारी भविष्य निधि संस्थान में रजिस्टर हुए नए सदस्यों की संख्या वित्तीय वर्ष 2018-19 में 61 लाख थी जो वित्तीय वर्ष 1920-21 में 77 लाख, वित्तीय वर्ष 2021-22 में 122 लाख एवं वित्तीय वर्ष 2022-23 में बढ़कर 139 लाख हो गई है। इस संख्या में लगातार सुधार से आश्य यह है कि देश में युवाओं को फोर्मल रोजगार बड़ी संख्या में मिल रहे हैं। यहां इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इस दौरान विश्व के अन्य देशों में कई कम्पनियों में कर्मचारियों की छटनी की गई है।
इसी प्रकार पीरिओडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार जनवरी 2022 से भारत में बेरोजगारी की दर में लगातार कमी देखने को मिल रही है। जनवरी 2022 में देश में बेरोजगारी की दर 8.2 प्रतिशत थी जो अप्रेल-जून 2022 तिमाही में घटकर 7.6 प्रतिशत तो वहीं जुलाई-सितम्बर 2022 तिमाही में 7.2 प्रतिशत, अकटोबर-दिसम्बर 2022 तिमाही में 7.2 प्रतिशत से घटाकर जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में 6.8 प्रतिशत पर आ गई है। सीएमआईई द्वारा जारी एक अन्य जानकारी के अनुसार, भारत में बेरोजगारी की दर मार्च 2023 में घटकर 7.6 प्रतिशत हो गई है जो मार्च 2022 में 8 प्रतिशत एवं मार्च 2021 में 10 प्रतिशत थी।
शहरी क्षेत्रों में महिलाओं (15 वर्ष और उससे अधिक) में बेरोजगारी की दर जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में घटकर 9.2 प्रतिशत पर आ गई है, जो कि एक वर्ष पहिले इसी तिमाही में 10.1 प्रतिशत थी। वहीं, पुरुषों में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर इस वर्ष पहली तिमाही में कम होकर 6 प्रतिशत रही, जो एक वर्ष पूर्व 2022 की जनवरी-मार्च तिमाही में 7.7 प्रतिशत थी।
देश में राज्यवार बेरोजगारी का विश्लेषण करने पर ध्यान में आता है कि 10 प्रतिशत से अधिक बेरोजगारी की दर वाले राज्य हैं, हरियाणा में 37.4 प्रतिशत, राजस्थान में 28.5 प्रतिशत, दिल्ली में 20.8 प्रतिशत, बिहार में 19.1 प्रतिशत, झारखंड में 18 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 14.8 प्रतिशत, त्रिपुरा में 14.3 प्रतिशत एवं सिक्किम में 13.6 प्रतिशत है। जबकि 5 प्रतिशत के कम बेरोजगारी की दर वाले राज्य हैं ओड़िसा में 0.9 प्रतिशत, गुजरात में 2.3 प्रतिशत, कर्नाटक में 2.5 प्रतिशत, मेघालय में 2.7 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 3.1 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 3.2 प्रतिशत, छतीसगढ़ में 3.4 प्रतिशत, तेलंगाना में 4.1 प्रतिशत, उत्तराखंड में 4.2 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 4.3 प्रतिशत, तमिलनाडु में 4.7 प्रतिशत, आसाम में 4.7 प्रतिशत एवं पुडुचेरी में 4.7 प्रतिशत।
विशेष रूप से मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश राज्य, जो कुछ वर्ष पूर्व तक बीमारु राज्य की श्रेणी में शामिल थे, में बेरोजगारी की दर में अतुलनीय रूप से कमी दृष्टिगोचर हुई है।
जनवरी-मार्च 2023 की अवधि में देश में 45.2 फीसदी नागरिकों को रोजगार मिला हुआ है जो इससे पहले की तिमाही में 44.7 फीसदी पर था। उल्लेखनीय है कि पिछले एक दशक के दौरान भारत ने आर्थिक मोर्चे पर एक बड़ी छलांग लगाई है।
स्पष्ट है कि सरकार ने अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचकर उसे भी संबल प्रदान करने की तमाम कोशिशें की हैं। जिसके परिणामस्वरूप, भारत में अगस्त 2023 माह में 46.21 करोड़ नागरिकों को रोजगार मिला हुआ था जबकि अगस्त 2022 में 43.02 करोड़ नागरिकों को ही रोजगार प्राप्त था, इस प्रकार एक वर्ष के दौरान 3.19 करोड़ नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)