बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानियों का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उसके आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। इसलिए पिछले 6 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने लगातार बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु ईमानदार प्रयास किए हैं।
केंद्र सरकार के प्रयासों से भारतीय बैंकों के ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हो रही है। 31 मार्च 2018 को भारतीय बैंकों में ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियां 10.36 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर थीं, जो 30 सितम्बर 2020 को घटकर 8.08 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर आ गईं हैं। पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने बैकों के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए लगातार कई क़दम उठाए हैं। अब स्पष्टतः इन क़दमों के अच्छे परिणाम देखने में आ रहे हैं।
दरअसल, बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानियों का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उसके आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। इसलिए पिछले 6 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने लगातार बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु ईमानदार प्रयास किए हैं।
ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई है। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई है। साथ ही, केंद्र सरकार ने इंद्रधनुष योजना को लागू करते हुए, पिछले 5 वर्षों के दौरान, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को 3.16 लाख करोड़ रुपए की पूंजी उपलब्ध करायी है।
अब वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकारी क्षेत्र के बैकों को 20,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध करायी जाएगी। सरकारी क्षेत्र की बैंकों में दबाव में आई आस्तियों के लिए विशेष आस्ती प्रबंधन कम्पनियों की स्थापना किए जाने की भी योजना है। इससे इन बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में और अधिक कमी की जा सकेगी।
साथ ही, दिनांक 30 अगस्त 2019 को देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की थी। सरकारी क्षेत्र के बैकों की, समेकन के माध्यम से, क्षमता अनवरोधित (अनलाक) करने के उद्देश्य से ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की गई थी।
इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज़ से एक ही प्लैट्फ़ॉर्म पर हों, इन बैंकों की संस्कृति एक ही हो तथा इन बैंकों के व्यवसाय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो। वर्ष 2017 में देश में सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक थे लेकिन इनके आपस में विलय के बाद अब केवल 12 सरकारी क्षेत्र के बैंक रह जाएंगे।
इनमें से 6 बैंक वैश्विक स्तर के बैंक होंगे, 2 बैंक राष्ट्रीय स्तर के होंगे एवं 4 बैंकों की मज़बूत उपस्थिति मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्तर की होगी। इस प्रकार देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगली पीढ़ी के बैंकों का रूप दिया जा रहा है। यह भी सोचा गया था कि इस विलय के बाद इन सरकारी क्षेत्र के बैंकों का बड़ा हुआ आकार, इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि करेगा। इन बैंकों की राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत उपस्थिति के साथ ही इनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंच होगी।
विलय के बाद इन बैंकों की परिचालन लागत में कमी होगी जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा ऋणों की लागत में भी सुधार आएगा। इन बैंकों के जोखिम लेने की क्षमता में वृद्धि होगी। इन बैंकों का, बैंकिंग व्यवसाय हेतु, नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष ज़ोर रहेगा जिससे इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होगा। इन बैंकों की बाज़ार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता भी बढ़ेगी।
इस प्रकार, उक्त वर्णित उठाए गए क़दमों का परिणाम अब भारतीय बैंकों के ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में हो रही कमी के रूप में देखने में आ रहा है, जिसके चलते देश की आर्थिक गतिविधियों में भी लगातार सुधार होता जा रहा है एवं इसके परिणामस्वरूप साल दर साल के आधार पर दिसम्बर 2020 में बैकों के ग़ैर-खाद्य ऋण में 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
कृषि क्षेत्र एवं सहायक गतिविधियों के लिए तो 9.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 5.3 प्रतिशत ही थी। उद्योग क्षेत्र के लिए भी 1.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है, मध्यम उद्योग क्षेत्र के लिए ऋणों में वृद्धि दर्ज 15.3 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में केवल 2.5 प्रतिशत की रही थी। साथ ही, सूक्ष्म एवं छोटे उद्योगों के लिए ऋणों में वृद्धि दर 1.2 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष 0.1 प्रतिशत की रही थी। सेवा क्षेत्र के लिए भी ऋणों में वृद्धि दर्ज 8.8 प्रतिशत की रही है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 6.2 प्रतिशत रही थी।
समस्त अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ऋणों में भी अंततः वृद्धि दर गति प्राप्त करती दिख रही है। इन ऋणों में अप्रेल 2020 से 15 जनवरी 2021 के बीच 2.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी अवधि में पिछले वर्ष यह 2.4 प्रतिशत की रही थी। नवम्बर 2020 के बाद से बैंकों ने 3 लाख करोड़ रुपए के ऋण प्रदान किए हैं क्योंकि अब ऋणों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। यह वृद्धि अब सभी क्षेत्रों यथा मकान, वाहन, पर्सनल ऋण आदि क्षेत्रों में भी दिखाई दे रही है।
केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत योजना के अंतर्गत प्रारम्भ की गई आकस्मिक ऋण गारंटी योजना का भी इस ऋण वृद्धि में विशेष योगदान रहा है। यह योजना 15 मार्च 2021 तक जारी रहेगी। इस प्रकार, उम्मीद की जा रही है कि बैंकों में ऋण वृद्धि दर भी लगातार तेज़ होगी। 8 जनवरी 2021 तक केंद्र सरकार ने 3 लाख करोड़ रुपए में से 71.3 प्रतिशत हिस्से के ऋणों पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों को इस योजना के अंतर्गत प्रदान किए गये ऋणों पर गारंटी प्रदान कर दी है।
बैकों द्वारा उद्योग जगत को आसानी से प्रदान किए जा रहे ऋणों के चलते अब मासिक एसबीआई मिश्रित इंडेक्स भी जनवरी 2021 में बढ़कर 59.6 के स्तर पर आ गया है जो औद्योगिक उत्पादन में प्रखर वृद्धि दर दर्शाता है। दिसम्बर 2020 में यह 58.2 के स्तर पर था एवं जनवरी 2020 में यह 49.21 के स्तर पर था।
वहीं वार्षिक एसबीआई मिश्रित इंडेक्स भी जून 2020 माह से लगातार आगे बढ़ रहा है। यह जनवरी 2021 में 53.8 था जो औद्योगिक उत्पादन में सामान्य वृद्धि दर दर्शाता है। दिसम्बर 2020 में यह 53.5 के स्तर पर था और जनवरी 2020 में 49.7 के स्तर पर था।
माह जनवरी 2021 में बिजली की खपत भी पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10.2 प्रतिशत से बढ़ी है। जो दर्शाता है कि देश का औद्योगिक क्षेत्र भी अब बिजली का अधिकतम उपयोग कर रहा है।
एक और अच्छी ख़बर यह आई है कि भारत से लगातार आयात की तुलना में निर्यात भी तेज़ गति से बढ़ रहे हैं। माह जनवरी 2021 में भी निर्यात, 5.37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए, बढ़कर 2724 करोड़ अमेरिकी डॉलर के हो गए हैं। जबकि आयात, 2 प्रतिशत के साथ, बढ़कर 4200 करोड़ अमेरिकी डॉलर के हो गए हैं।
निर्यात में वृद्धि दर मुख्यतः फ़ार्मा एवं इंजीनीयरिंग क्षेत्रों में हुए निर्यात में तेज़ वृद्धि दर के चलते रही है। फ़ार्मा क्षेत्र से निर्यात में वृद्धि 16.4 प्रतिशत की रही है और यह 29.3 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गए हैं। जबकि इंजीनीयरिंग क्षेत्र से निर्यात में वृद्धि दर 19 प्रतिशत की रही है और यह 116 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गए हैं।
भारत में किए जा रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी नवम्बर 2020 में 81 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 1015 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गए हैं। जबकि नवम्बर 2019 में यह 5600 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे थे। इक्विटी में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 850 करोड़ अमेरिकी डॉलर के हो गए हैं, जो नवम्बर 2019 में केवल 280 करोड़ अमेरिकी डॉलर के ही थे, इस प्रकार 70 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।
कुल मिलाकर, अप्रेल 2020 से नवम्बर 2020 तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़कर 5837 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 4767 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर रहे थे। इस वर्ष यह पिछले वर्ष की तुलना में 22 प्रतिशत से अधिक हैं।
आर्थिक गतिविधियों में लगातार हो रहे सुधार के कारण अब माह जनवरी 2021 में वस्तु एवं सेवा कर की वसूली बढ़कर 120,000 करोड़ रुपए की हो गई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुई वसूली से 8 प्रतिशत अधिक है। यह अभी तक वस्तु एवं सेवा कर का सबसे अधिक संग्रहण है जो एक रिकार्ड है।
(लेखक बैंकिंग क्षेत्र से सेवानिवृत्त हैं। आर्थिक विषयों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)