कोई चीज़ स्वदेशी है इतने मात्र से ही वह ग्राहीय नही होती हैं। विदेशी होने मात्र से त्याज्य और स्वदेशी होने मात्र से ग्राहीय ऐसा दीनदयाल जी नहीं मानते हैं।छुआछूत भी स्वदेशी है, लेकिन वह ग्राहीय तो नहीं है। इसलिए जो स्वदेशी है उसे युगानुकूल यानी युग के तर्क के अनुकूल बनाना और जो विदेशी है उसको देशानुकूल बनाना चाहिए। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति और इसके दर्शन का एक ऐसा नाम है जिसने जनसंघ के मंच से भारत को एकात्म मानववाद के दर्शन के साथ-साथ अर्थायाम् के रहस्य और राष्ट्र जीवन की दिशा को प्रदर्शित करने का सकारात्मक प्रयास किया है। उनके ये विचार और राज-व्यवस्था के पैमाने भारत की किसी भी सरकार के लिए अपनाना यहां की प्रजा के लिए एक सुखद व हितकर हो सकता है। यद्यपि भारतीय जनता पार्टी के उदय के साथ पं. दीनदयाल के विचारों का विकल्प गांधी को तलाश लिया गया, लेकिन अब एक बार फिर पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों पर राष्ट्र जीवन की दिशा तय की जा रही है और इसका सबसे जीता जागता उदाहरण हमें इस बार के बजट में देखने को मिला है, जिसमें पंण्डित दीनदयाल उपाध्याय के ग्रामोत्थान और अन्त्योदय के सिद्धान्तों पर अमल किया गया है जिससे यह बजट पूर्णतः किसान, कृषि और ग़रीबों के लिए माना जा रहा है। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को आत्मसात करने वाले ‘एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान’ के अध्यक्षडॉ. महेश चन्द्र शर्मा के साथ दीनदयाल जी के विचारों की इस बजट से प्रसंगिकता का साझा विश्लेषण कर रहे हैं अमित राजपूत-
•इस बजट को आप पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के कितने नज़दीक देखते हैं?
मैं समझता हूँ कि दीनदयाल उपाध्याय जी ने भारत की राजनीति और अर्थनीति के लिए जो दिशा दी है, उस दिशा की ओर जाने वाला यह देश का पहला बजट है, क्योंकि भारत की अर्थनीति ग्रामाधारित है और ग्रामाधारित अर्थनीति की रीढ़ है कृषि। मैं समझता हूं कि कृषि पर जितना फोकस इस बार किया गया है उतना पहले कभी भी नहीं किया गया है। भारत की कृषि ही है जो देश को रोजगार प्रदान करती है। श्रीमान् नानजी देशमुख ने दीनदयाल जी के विचारों को एक नारे में व्यक्त किया है और वह उद्घोष है- ‘हर खेत को पानी-हर हाथ को काम’। दीनदयाल जी ये मानते हैं कि देश के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है शिक्षा, सुरक्षा और स्वावलम्बन।
•दीनदयाल जी के आर्थिक विचारों का केंद्र विकेंद्रीकरण है। बजट में घोषित तमाम योजनाओं को अन्तिम पंक्ति तक ले जाने के लिए आपको ये लगता है कि सरकारइसके लिए कोई ख़ास तरह की तैयारियाँ भी करेगी या फिर यह पूर्व की भांति हवा-हवाई ही होगा?
जहां तक मैं समझता हूं दीनदयाल जी विकेन्द्रीकृत व्यवस्था की ही बात करते हैं जिसको जनपदीय स्तर पर विकेन्द्रीकृत होना है। जब तक वह व्यवस्था नहीं आती है तब तक आज की सरकार को आज की व्यवस्था में ही काम करना होगा और इसके लिए सामान्यतः श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस बात का बार-बार आग्रह किया है कि हमारा जो फेडरेशन है वह कॉपरेटिव फेडरेशन है और इसलिए देश की सारी संस्थाएं जिसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, पंचायतें सब मिलकर काम करती हैं। विकेन्द्रीकरण को ये सब संस्थाएं मिलकर ही ला सकती हैं, केवल केन्द्र सरकार ये काम नहीं कर सकती। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि इस बजट की जो भावना है उस भावना के अनुकूल देश की सभी निकायें काम करेंगी।
•बजट पेश होते ही लोगों की दृष्टि कृषि की ओर मुड़ गई है।क्या इस बजट से कृषि में क्रान्ति आएगी?
क्या आएगा यह तो भविष्य कोईतय नहीं कर सकता है, पर इस बजट की ही यदि चलेगी तो कृषि में इतना सुधार होगा जो आज तक कभी नहीं हुआ।
• देश का युवा खेती की ओर कैसे उन्मुख हो सकता है?
खेती जब लाभप्रद होगी, खेती जब सम्मानजनक होगी तो युवा उस तरफ अवश्य झुकेगा। जो बजट की मंशा है समाज को भी अपनी मानसिकता उस तरफ करनी होगी, क्योंकि सम्मान तो समाज देता है और इसलिए यदि खेती की व्यवस्था को समाज सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगा तो युवा उस ओर नहीं झुकेगा।
• कोई किसान सर उठाकर ये कब कह पाएगा कि हाँ, मैं किसान हूँ?
वह कह पाएगा क्योंकि जिस प्रकार से इस बजट में कृषि को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है उसी प्रकार से यदि व्यवस्थाकृषि अभिकेन्द्रित रहेगी तो किसान जो आज लाचार दिखता है वह कल स्वाभिमानी हो जाएगा।
• अब तक देश में एक भी कृषि नीति नहीं बनाई गई है। क्या यह सरकार देश को कृषि नीति दे पाएगी?
सरकार को कृषि नीति देना चाहिए, अब सरकार इस दिशा में किस ढंग से काम कर रही है, वह इस बारे में किस तरह से क्या सोचती है ये तो सरकार ही बेहतर बता पाएगी, लेकिन मुझे कृषि और किसानों के लिए सरकार की मंशा सही दिशा में जान पड़ती है।
• बजट के बरक्स विपक्ष अपने पारम्परिक रवैये में नहीं दिखा। इस बात को आप किस तरह से देखते हैं?
ऐसा है कि सत्ता हो चाहे विपक्ष आख़िर दोनो देश के लिए काम करते हैं और इसलिए यदि देश आज सर्वानुमति व सर्वसम्मति से चलता है तो यह हमारे लोकतंत्र का शुभ लक्षण है इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सरकार की दमदार नीतियां और विपक्ष की समझ से ही शायद ऐसा देखने को मिल रहा है।
•डिजिटल इण्डिया, सुपर फ़ास्ट ट्रेन, मेक इन इण्डिया और स्मार्ट सिटी जैसे भारी निवेश यानी एक तरह से कहे तो एफ़डीआईके द्वारा प्रधानमंत्री जी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में विकेंद्रीकरण की कितनी सम्भवनाएं हैं?
जितने भी आपने नाम लिए हैं मैं समझता हूं कि इन सबका सम्बन्ध विकेन्द्रीकरण से नहीं है, इनका सम्बन्ध आधुनिकीकरण से है। देश में पहले आधुनिकीकरण आये और फिर वह विकेन्द्रित हों इसकी ज़रूरत है। मैं समझता हूं कि नई पीढ़ी इन विषयों में अधिक प्रतिभासम्पन्न है और वह ज़रूर प्रधानमंत्री जी के आह्वान को उचित प्रतिक्रिया देगी।
•दीनदयाल जी ने स्व-साधन स्व-उत्पादन और स्व-उपभोग के द्वारा स्वाभिमान की बात की है, लेकिन विदेशी पूंजी और विदेशी तकनीक से यह कैसे सम्भव है?
दीनदयाल जी का एक वाक्य है और वह यह है कि कोई चीज़ स्वदेशी है इतने मात्र से ही वह ग्राहीय नही होती हैं। छुआछूत भी स्वदेशी है, लेकिन वह ग्राहीय तो नहीं है। इसलिए जो स्वदेशी है उसे युगानुकूल यानी युग के तर्क के अनुकूल बनाना और जो विदेशी है उसको देशानुकूल बनाना चाहिए। विदेशी होने मात्र से त्याज्य और स्वदेशी होने मात्र से ग्राहीय ऐसा दीनदयाल जी नहीं मानते हैं। जब हम बात करते हैं मेक-इन-इण्डिया की तो उसका अर्थ ही यह है कि जो विदेशी पूंजी आएगी तो वह भारतानुकूल होकरही यहां पर काम करेगी।
•गांधी जी पर कितनी गोलियां चलीथीं इस तथ्य कोडॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी उजागर करवाने की बात कर रहे हैं, तो क्या दीनदयाल जी के रहस्यमयी असामयिक मृत्यु की जाँच कराएगी वर्तमान सरकार?
दीनदयाल जी अब नहीं हैं। कोई जांच या कोई सरकार अब उनको वापस नहीं ला सकती है।बड़ा रहस्य है उनकी मृत्यु और उसको यदि कोई खोज सके तो ये उनका काम है जो रहस्यों को खोजा करते हैं। मेरी अपेक्षा है कि लोग दीनदयाल जी के विचारों को जाने और उनको माने। इसलिए देश में एक निकाय है जिसका काम है रहस्यों को जानना वह अपना काम करे।
•क्या यह कहा जा सकता है कि पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के साथ बीजेपी की जनसंघ में वैचारिक घर वापसी हो रही है?
जनता पार्टी से बीजेपी का निकलना एक ऐतिहासिक राजनैतिक प्रकिया के तहत वो हो गया है।बीजेपी अब एकात्म मानववाद और दीनदयाल जी कोआधिकारिक रूप से अपनी विचारधारा मानता है। इसके अलावा घर वापसी तो उनकी हुआ करती है जो कभी घर से बाहर गए हों।भारतीय जनता पार्टी दीनदयाल जी के विचारों से परे ही कब हुई है। बीजेपी आरम्भ से ही पं. दीनदयाल जी के विचारों को ग्रहण करती आयी है और अब लोगों को लगता है कि इसका कुछ नाम देना ज़रूर लगता है तो वह देते रहें।
प्रवक्ता.कॉम से साभार