जीडीपी में वृद्धि के साथ-साथ निवेश और खपत में भी तेजी देखी जा रही है। वर्ष 2023 की पहली तिमाही में निवेश दर में 18.3 प्रतिशत और खपत में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। निवेश में वृद्धि का मुख्य कारण सरकार की “उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन” (पीएलआई) योजना है। इस योजना की वजह से कोरोना काल में कारोबारियों को मुश्किल दौर से बाहर निकलने में विशेष मदद मिली थी।
वर्ष 2023 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े तमाम अर्थशास्त्रियों, भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के पूर्वानुमान से बेहतर हैं। दिसंबर 2022 में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में जीडीपी के 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था, लेकिन यह 6.1 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में भी सुधार दर्ज किया गया है। पहले वित्त वर्ष 2022-23 में एमपीसी ने जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था, जो वास्तविकता में 7.2 प्रतिशत रही।
आलोच्य तिमाही में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत, होटल उद्योग में 9.1 प्रतिशत और निर्माण क्षेत्र में 10.4 प्रतिशत वृद्धि दर दर्ज की गई है। देखा जाये तो इन तीन क्षेत्रों ने जीडीपी की वृद्धि दर को बेहतर करने में विशेष योगदान दिया।
जीडीपी में वृद्धि के साथ-साथ निवेश और खपत में भी तेजी देखी जा रही है। वर्ष 2023 की पहली तिमाही में निवेश दर में 18.3 प्रतिशत और खपत में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। निवेश में वृद्धि का मुख्य कारण सरकार की “उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन” (पीएलआई) योजना है। इस योजना की वजह से कोरोना काल में कारोबारियों को मुश्किल दौर से बाहर निकलने में विशेष मदद मिली थी।
महंगाई की वजह से भी जीडीपी वृद्धि दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के पहले महीने अप्रैल में खुदरा महंगाई दर घटकर 4.70 प्रतिशत दर्ज की गई, जो मार्च 2023 में 5.66 प्रतिशत थी। महंगाई में लगातार तीसरे महीने गिरावट दर्ज की गई है और यह 18 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है। महंगाई में कमी आने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। लोग खर्च करने लगे हैं, जिससे खपत में वृद्धि हो रही है।
वित्त वर्ष 2023 में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 17.33 लाख करोड़ रुपये रहा, जो जीडीपी का 6.4 प्रतिशत है। यह 17.55 लाख करोड़ रूपये के संशोधित लक्ष्य से 22,188 करोड़ रूपये कम रहा है। पहले राजकोषीय घाटा के लक्ष्य को 16.61 लाख करोड़ रूपये रखा गया था, जिसे बाद में बढ़ा दिया गया था।
अर्थव्यवस्था में सुधार आने की कई वजह है। वर्ष 2022 के दौरान वाहन, जिसमें निजी और यात्री दोनों प्रकार के वाहन शामिल हैं, के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई थी। इस अवधि में हवाई और रेल यात्रा में तेजी आई है। स्टील और सीमेंट क्षेत्र भी मजबूत हुआ है। बैंकिंग क्षेत्र में लगातार सुधार आ रहा है। एक तरफ बैंकों का एनपीए कम हो रहा है तो दूसरी ओर उनके मुनाफ़े में तेजी आ रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग सभी सरकारी और निजी बैंकों ने मुनाफ़े में जबर्दस्त वृद्धि दर्ज की है।
कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र में 1.3 प्रतिशत की दर से ही वृद्धि हुई, लेकिन कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4 प्रतिशत रही। उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों की वृद्धि दर भी इस अवधि में विनिर्माण क्षेत्र से बेहतर रही।
विगत 4 सालों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में 19 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि इस अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में 13 प्रतिशत की। हालाँकि, कृषि क्षेत्र में मजबूत वृद्धि होने के बावजूद ग्रामीण मांग में कमी दर्ज हुई है, जिसका कारण कोरोना महामारी से ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति का कुछ ज्यादा ख़राब होना हो सकता है। बावजूद इसके, वित्त वर्ष 2022-23 की मार्च तिमाही में कृषि का आकार विनिर्माण से 25 प्रतिशत ज्यादा हो गया, जो वर्तमान मूल्य पर आकार में पहले समान हुआ करते थे
वित्त वर्ष 2023 में भारत के निर्यात में 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज होने से व्यापार घाटे में 61 प्रतिशत की कमी आई, जिससे यह 26.3 अरब डॉलर से घटकर 10.1 अरब डॉलर रह गया।
देखा जाये तो वित्त वर्ष 2023 की अंतिम तिमाही में इस वजह से भी जीडीपी वृद्धि दर तेज रही। इसने इस कालखंड में आर्थिक वृद्धि में लगभग 1.5 प्रतिशत का योगदान दिया। वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में रूपये के मूल्य में भी स्थिरता बनी रही, जिससे महंगाई से राहत मिली और जरुरी उत्पादों के आयात में आसानी हुई।
मई, 2023 में 1,57,090 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह हुआ, जबकि मई 2022 में 1,40,885 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह हुआ था। इस तरह, वर्ष दर वर्ष के आधार पर जीएसटी संग्रह में 12 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, अप्रैल 2023 में 1.87 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह हुआ था।
कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार आ रहा है। जीडीपी, निवेश, खपत और महंगाई के ताजा आंकड़े बेहद ही सकारात्मक हैं। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में तेजी आना बेहद ही सुखद है। खेती-किसानी के हालात बेहतर होने से रोजगार के अवसरों में भी तेजी आयेगी और ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होगी। इससे देश के समावेशी विकास की संकल्पना को भी बल मिलेगा।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)