विगत तीन वर्षों से सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है भारत

समावेशी, टिकाऊ और मूल्य आधारित उद्यमी संस्कृति बनाने के लिए सरकार ने मुद्रा लोन देने की व्यवस्था की है। अब तक 9.18 करोड़ इकाइयों को मुद्रा ऋण बांटा जा चुका है, जिसमें से 80% ऋण महिलाओं उद्यमियों को स्वीकृत किये गये हैं। मुद्रा में रोज़गार पैदा करने की पर्याप्त क्षमता है और इसके आगाज के बाद से 1.68 करोड़ वृद्धिशील रोजगार पैदा हुए और कुल मिलाकर लगभग 5.5 करोड़ नौकरियां कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक राज्यों में सृजित हुईं।

भारत पिछले तीन सालों से सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। मुद्रास्फीति वर्ष 2014 से लगातार नीचे आ रही है और चालू वित्त वर्ष में भी यह चार प्रतिशत से ऊपर नहीं जायेगी। इस वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा दो प्रतिशत से कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है। वर्ष 2010 के बाद पहली बार इस साल सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बिक्री से प्राप्त राजस्व के 72,500 करोड़ रुपये से आगे निकलने की संभावना है।

अप्रैल से सितंबर के बीच पहली छमाही के दौरान केंद्र सरकार ने विनिवेश के जरिये 19,759 करोड़ रुपये जुटाये। सरकारी कंपनी ओएनजीसी द्वारा हिंदुस्तान पेट्रोलियम के अधिग्रहण करने से सरकार को  30,000 करोड़ रुपये से अधिक की राजस्व प्राप्ति होने का अनुमान है। सूचीबद्ध सरकारी कंपनियों के लिए आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ), ऑफर फॉर सेल (ओएफएस),  एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) और इक्विटी पुनर्खरीद के माध्यम से भी राजस्व जुटाने का लक्ष्य सरकार ने रखा है।    

राजकोषीय घाटे को चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.2 प्रतिशत के लक्ष्य के दायरे में रखने के लिये सरकार प्रतिबद्ध है। औद्योगिक एवं कारोबारी गतिविधियों में तेजी लाने के लिये इस साल सरकार द्वारा 11.47 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं, जबकि चालू वित्त वर्ष के लिये 21.46 लाख करोड़ रुपये कुल सरकारी खर्च का लक्ष्य रखा गया था। इस  वर्ष के दौरान 3.09 लाख करोड़ रूपये के पूंजी व्यय लक्ष्य के समक्ष अब तक 1.46 लाख करोड़ रूपये का खर्च किये जा चुके हैं। केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों ने 3.85 लाख करोड़ रुपये के उनके व्यय लक्ष्य से 1.37 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किये हैं। करीब 7 लाख करोड़ रूपये के निवेश से अगले पांच साल के दौरान 83,677 किलोमीटर सड़क निर्माण करने का लक्ष्य रखा गया है।  

देखा जाये तो वर्ष 2011-12 के बाद से ही बैंकिंग क्षेत्र में सुस्ती का रुख बना हुआ है, जिसके कारण बैंकों के बैलेंस शीट बेहतर नहीं हो पा रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज में सुधार लाने के लिए सरकार ने “इंद्रधनुष” नाम से एक सात आयामी योजना शुरू की है, जिसमें नियुक्तियां, बोर्ड ऑफ ब्यूरो, पूँजीकरण, तनावमुक्त माहौल का सृजन, सशक्तिकरण, जवाबदेही के ढांचे का निर्माण एवं सुशासन जैसे सुधारात्मक पहल शामिल हैं। इसके तहत सरकार ने 4  साल की अवधि में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूँजीकरण के लिए 70,000 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है।

भारतीय रिजर्व बैंक और कुछ अन्य एजेंसियों के अनुसार बेसल III के कार्यान्वयन के बाद बैंकिंग क्षेत्र को लगभग 1.1 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता है। इस कवायद को आगे बढ़ाते हुए 2 साल के भीतर बैंकिंग क्षेत्र में 2.11 लाख करोड़ रूपये पुनर्पूंजीकरण करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें बजट के माध्यम से बैंकों को 18,139 करोड़ रूपये दिया जायेगा। 1.35 लाख करोड़ रूपये का पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड जारी किया जायेगा और बची हुई राशि की व्यवस्था बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को कम करके एवं बाजार से जुटाया जायेगा, ताकि बैंक वैश्विक पूंजी पर्याप्तता एवं बासेल तृतीय के मापदण्डों का पूरी तरह से अनुपालन कर सकें।   

बैंकिंग क्षेत्र में पुनर्पूंजीकरण के आरंभ में “पैमाने की अर्थव्यवस्था” काम करती है अर्थात लागत के अनुसार लाभ होता है, जो उद्यमों के आकार, उत्पादन या परिचालन के पैमाने के कारण प्राप्त होती है। बैंक, जिन्हें पर्याप्त पुनर्पूंजीकरण हासिल होता है, वे अग्रिम व पूँजी में बढ़ोतरी और बैलेंस शीट को साफ-सुथरा कर पाते हैं, जबकि ठीक इसके विपरीत, बैंक जो पूँजी की कमी के सापेक्ष कम पुनर्पूंजीकरण प्राप्त करते हैं, वे उधार एवं जोखिम भारित संपत्तियों को कम करते हैं। उन्हें जमा एवं अंतर बैंक उधारी में गिरावट का भी सामना करना पड़ता है। इस तरह, अर्थशास्त्र के इस सिद्धांत के मुताबिक जो बैंक पूँजी की कमी से जूझ रहे हैं, उनके पुनर्पूंजीकरण के लिये तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।

स्टेट बैंक का उसके सहायक बैंकों के साथ सफल विलय से उत्साहित होकर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में वैश्विक आकार के बैंकों को बनाने के उद्देश्य से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के एकीकरण के प्रस्तावों की निगरानी के लिए वैकल्पिक तंत्र के गठन को मंजूरी दी है। वैकल्पिक तंत्र एकीकरण के लिए बैंकों के विलय प्रस्तावों को सैद्धांतिक मंजूरी देगी। वित्त मंत्रालय के अनुसार 3 से 4 या फिर उससे ज्यादा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय दूसरे चरण में किया जा सकता है।

सरकार एक ही समय दो समान रणनीति पर काम कर रही है। पहली रणनीति के तहत मजबूत बैंकों के बीच विलय की संभावना को तलाशा जा रहा है और दूसरी के तहत कमजोर बैंकों के पूँजी आधार और बैलेस शीट को छोटा किया जा सकता है। इसके आलोक में सरकार ने पहले से ही राज्य के स्वामित्व वाले उन बैंकों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) हस्ताक्षर करना शुरू कर दिया है, जिन्हें अच्छा प्रदर्शन करने के लिये पुनर्पूंजीकरण की जरूरत है। खराब प्रदर्शन करने वाले बैंकों को संपत्ति बेचने, गैर-लाभकारी शाखाओं को बंद करने, बैलेंस शीट को छोटा करने आदि के लिये कहा जा रहा है, ताकि बजटीय संसाधनों पर दबाव को कम किया जा सके।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार एमएसएमई क्षेत्र, 26.1 मिलियन उद्यमों में तकरीबन 59.7 मिलियन व्यक्तियों को रोजगार देता है। एक अनुमान के मुताबिक एमएसएमई क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र के लगभग 45% और देश के कुल निर्यात का लगभग 40% हिस्सा है। इसलिए, सरकार ने इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी है, ताकि देश में संतुलित, टिकाऊ, न्यायसंगत और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके।

समावेशी, टिकाऊ और मूल्य आधारित उद्यमी संस्कृति बनाने के लिए सरकार ने मुद्रा लोन देने की व्यवस्था की है। अब तक 9.18 करोड़ इकाइयों को मुद्रा ऋण बांटा जा चुका है, जिसमें से 80% ऋण महिलाओं उद्यमियों को स्वीकृत किये गये हैं। मुद्रा में रोज़गार पैदा करने की पर्याप्त क्षमता है और इसके आगाज के बाद से 1.68 करोड़ वृद्धिशील रोजगार पैदा हुए और कुल मिलाकर लगभग 5.5 करोड़ नौकरियां कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक राज्यों में सृजित हुईं।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 246 लाख परिवारों में से केवल 145 लाख (58.70%) परिवारों की ही बैंकिंग सेवा तक पहुंच थी। वर्ष 2012 के विश्व बैंक फिंडेक्स सर्वे के मुताबिक केवल 35% भारतीय वयस्कों की ही औपचारिक बैंक खाते तक पहुंच थी। स्थिति में सुधार हेतु 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) का शुभारंभ किया था, जो अब तक का वित्तीय समावेशन की दिशा में उठाया गया सबसे बड़ा कदम है।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में पीएमजेडीवाई योजना के तहत 30 करोड़ परिवारों का खाता खोला गया, जिसमें 66,000 करोड़ रुपये जमा हुए। पीएमजेडीवाई के जरिये बैंक वैसे लोगों को कर्ज दे रहा है, जिन्होंने पहले कभी भी कर्ज नहीं लिया था। इस पहल का लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना  है।  

कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था पुनः रफ्तार पकड़ने लगी है। दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत, बैंकों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने, उन्हें सशक्त बनाने के लिए उनके एकीकरण की संभावना को तलाशने आदि उपायों के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र में सुधार लाने की कोशिश की जा रही है। राजस्व वसूली की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को सशक्त बनाया जा रहा है। बुनियादी ढांचा को मजबूत बनाने के लिये सरकारी पूंजीगत खर्च में वृद्धि की गई है।

इन सुधारात्मक कार्यों को देखते हुए ही आईएमएफ ने भी हाल ही में कहा है कि भारत जल्द ही आठ प्रतिशत वृद्धि हासिल करेगा। इसके बरक्स जार्ज बर्नाड शॉ ने ठीक ही कहा है, “बिना बदलाव के विकास असंभव है, जो अपने विचारों में परिवर्तन नहीं कर सकता, वह कोई बदलाव भी नहीं ला सकता” अर्थात दृढ़ इच्छा शक्ति से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं और सफलता को हासिल करना आसान हो जाता है। सरकार जार्ज बर्नाड शॉ के इस कथन से पूरी तरह से सहमत दिखती है। इसलिये वह आर्थिक सुधार को जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाने के लिये प्रतिबद्ध है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार के इस पहल का भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)