मोदी सरकार आगामी बजट में राष्ट्रीय रोजगार नीति की घोषणा कर सकती है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और श्रम नीतियां भी शामिल होंगी, ताकि रोजगार सृजन का रोड मैप तैयार करने में आसानी हो। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय रोजगार नीति के जरिये देश के विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार का सृजन होगा। इस नीति को लाने का मकसद रोजगार सृजन की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।
मॉर्गन स्टेनली की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय सुधार का दौर जारी है, जिसके कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2017 के 6.4 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2018 में 7.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019 में 7.7 प्रतिशत पर पहुँच सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार बैंकों के बैलेंस शीट को साफ-सुथरा करने की कोशिश कर रही है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण फैसलों को पहले ही अमलीजामा पहनाया जा चुका है। किये जा रहे बुनियादी सुधारों की वजह से देश की वित्तीय प्रणाली मजबूत हो रही है और लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी का भरोसा हो रहा है। इससे लोग निवेश करने के लिये प्रोत्साहित हो रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, नोटबंदी और जीएसटी के कार्यान्वयन में तात्कालिक समस्याओं के बाद अब माँग में वृद्धि हो रही है। सरकारी प्रयासों की वजह से निजी पूँजीगत व्यय में सुधार आया है। उत्पादों की खपत और निर्यात में तेजी आ रही है, जिससे कंपनियों के राजस्व में भी वृद्धि हो रही है, जिसकी पुष्टि कंपनियों के सितंबर तिमाही के परिणाम से की जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि निजी उपभोग में बढ़ोतरी, सार्वजनिक निवेश में वृद्धि और संरचनात्मक सुधारों के कारण 2018 में भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत होगी, जबकि 2019 में यह बढ़कर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच जायेगी। संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (यूएनडीईएसए) ने वर्ल्ड इकोनोमिक सिचुएशन एंड प्रोस्पेक्ट 2018 नाम से एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि दक्षिण एशिया के लिए आर्थिक परिदृश्य बेहतर दिखाई दे रहा है। इस क्षेत्र में मौजूद कुछ चुनौतियों के बावजूद अल्पावधि एवं मध्यम अवधि के लिए यह स्थिर है और इसकी स्थिरता में सबसे बड़ा योगदान भारत का है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि निजी खपत में बढ़ोतरी और प्रभावशाली आर्थिक नीतियों से मजबूती मिलने के कारण दक्षिण एशिया में आर्थिक माहौल विकास के लिये स्थिर और अनुकूल है।
एचएसबीसी की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि नोटबंदी और जीएसटी सुधारों के कारण देश की जीडीपी वृद्धि दर तात्कालिक तौर पर कुछ प्रभावित हुई थी, लेकिन अब विकास की संभावना उत्साहजनक दिखाई दे रही है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक जीडीपी दर केवल तीन प्रतिशत है, लेकिन भारत की विकास दर में वृद्धि की रफ्तार को देखते हुए लगता है कि आगामी दशक में भारत जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा।
इस रिपोर्ट के अनुसार एक ओर भारत कुछ क्षेत्रों में थोड़ी धीमी वृद्धि का सामना कर रहा है तो दूसरी ओर बहुत से क्षेत्रों में सुधार के कारण तेजी से वृद्धि हो रही है। एचएसबीसी के अनुसार चालू वित्त वर्ष और आगामी वित्त वर्ष यानी 2017-18 और 2018-2019 दोनों ही भारत की आर्थिक दशा एवं दिशा को तय करने के लिये महत्वपूर्ण हैं।
नोमुरा के आर्थिक सलाहकार रॉबर्ट सुबारमण के मुताबिक भी तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे तेज गति से विकास करेगा। सुबारमण के अनुसार अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक संकट के दुष्परिणामों से अछूती है और आगामी वित्त वर्ष की पहली छमाही में यह 7.8 प्रतिशत और पूरे साल 7.5 प्रतिशत की दर से विकास करेगा। नोमुरा के अनुसार भारत वर्ष 2018 की पहली तिमाही में भी आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करेगा, क्योंकि भारत में चक्रीय सुधार की प्रक्रिया गतिमान है।
मौजूदा समय में रोजगार को लेकर विपक्षी दल हो-हल्ला मचा रहे हैं। इसलिए, असंगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन के वास्तविक आंकड़ें क्या हैं, को पता करने के लिये मोदी सरकार ने माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट ऐंड रीफाइनैंस एजेंसी (मुद्रा लोन) के तहत सृजित होने वाले रोजगार के आंकड़ों को जुटाने का काम श्रम ब्यूरो को सौंपा है। अभी देश में लगभग 90 प्रतिशत कामगार असगंठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। राजग सरकार की मुद्रा योजना के तहत स्व-रोजगार के लिए छोटे उद्यमियों को 10 लाख रुपये तक का कर्ज दिया जाता है। वित्त वर्ष 2016-17 में करीब 3.97 करोड़ कर्ज वितरित किये गये थे, जो पिछले साल के मुकाबले 13.8 प्रतिशत अधिक है। इनमें से 25 प्रतिशत कर्ज नये उद्यमियों को दिया गया है।
मोदी सरकार आगामी बजट में राष्ट्रीय रोजगार नीति की घोषणा कर सकती है, जिसमें आर्थिक, सामाजिक और श्रम नीतियां भी शामिल होंगी, ताकि रोजगार सृजन का रोड मैप तैयार करने में आसानी हो। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय रोजगार नीति के जरिये देश के विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार का सृजन होगा। इस नीति को लाने का मकसद रोजगार सृजन की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।
रोजगार नीति के अंतर्गत रोजगार सृजन हेतु प्रोत्साहन देने, सुधारात्मक कार्य करने एवं छोटे व मझोले उद्योगों को मदद देने की रूपरेखा तैयार की जायेगी। इस नीति की मदद से सरकार हर साल युवाओं के लिये एक करोड़ रोजगार मुहैया कराना चाहती है। सरकार यह भी चाहती है कि रोजगार संगठित क्षेत्र में सृजित हों, क्योंकि वर्तमान में 40 करोड़ कामगारों में से केवल 10 प्रतिशत ही संगठित क्षेत्र में रोजगार कर रहे हैं और असंगठित क्षेत्र में कामगारों को सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पा रही है।
कहा जा सकता है कि भले ही खुदरा व थोक दर एवं फेडरल रिजर्व की दर में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इनके प्रभाव अल्पकालिक रहेंगे। इनका भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई विशेष नकारात्मक प्रभाव नहीं रहेगा, क्योंकि मोदी सरकार बुनियादी क्षेत्रों को दुरुस्त करने के लिये प्रत्येक स्तर पर सुधार कर रही है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार किये जा चुके हैं और बैंकों की बैलेंस शीट को साफ-सुथरा करने का काम चल रहा है। इस क्रम में दिवालिया कानून को लागू किया गया है, जिसके सकारात्मक परिणाम जल्द ही दृष्टिगोचर होंगे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि वित्त वर्ष 2018-19 में भारत आसानी से 7.5 प्रतिशत की विकास दर को हासिल कर सकता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)