भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी मानकों में सुधार हो रहा है, जिसकी पुष्टि मेटल, स्टील, सीमेंट, वित्त क्षेत्र के क्रेडिट अनुपात में 20 बीपीएस या उससे अधिक के सुधार से भी होती है। इससे यह भी पता चलता है कि अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए कारोबारी और आम लोग अब बैंक से उधारी लेने लगे हैं।
तालाबंदी के खुलने से और कोरोना वायरस का टीकाकरण अभियान शुरू होने से कारोबारियों और उद्योग जगत में महामारी का डर कम हुआ है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में लगातार तेजी आ रही है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हुआ और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में संकुचन पहली तिमाही के 23.9 प्रतिशत की तुलना में सुधरकर 7.5 प्रतिशत रह गया, जो भारतीय रिजर्व बैंक के 8.6 प्रतिशत नकारात्मक अनुमान से बेहतर था।
कोरोना काल में कृषि क्षेत्र में हो रहे निरंतर विकास से अर्थव्यवस्था को सहारा मिला हुआ है। तालाबंदी के दौरान यही वह क्षेत्र था, जिसमें विकास का पहिया लगातार घूमता रहा। वित्त वर्ष 2021 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में 3.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2020 में इस क्षेत्र में 4.00 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।
इस तरह, तालाबंदी के बावजूद, कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में चालू वित्त वर्ष में महज 0.6 प्रतिशत कम विकास होने का अनुमान है, जो कोरोना संकट को देखते हुए एक बड़ी उपलब्धि है।
वित्त वर्ष 2021 में 8.8 प्रतिशत की दर से सेवा क्षेत्र में ऋणात्मक वृद्धि होने का अनुमान है, लेकिन यह पहले के अनुमान से बेहतर है। सेवा क्षेत्र में चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 11.4 प्रतिशत नकारात्मक गिरावट दर्ज की गई, जबकि पहली तिमाही में यह गिरावट 20.6 प्रतिशत नकारात्मक रही थी। व्यापार, होटल, परिवहन, संचार आदि क्षेत्रों में भी आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं, जोकि कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित थे।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र का आकार राशि में 17.19 लाख करोड़ रूपये का रहा, जबकि पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में राशि में इसका आकार 17.35 लाख करोड़ रुपये रहा था. इस तरह, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सेवा क्षेत्र का राशि में आकार पिछले वर्ष की तीसरी तिमाही से सिर्फ 15 हजार करोड़ रूपये कम है। सेवा क्षेत्र में सुधार से पता चलता है कि अब जन-जीवन सामान्य हो रहा है।
जीएसटी संग्रह में बीते महीनों में तेजी आई है। उत्पाद शुल्क भी बजटीय अनुमान का 74 प्रतिशत है, जिससे राजस्व संग्रह के मोर्चे पर सरकार को बड़ी राहत मिली है। आगामी महीनों में भी इसमें सुधार आने का अनुमान है।
कोरोना महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। आंकड़ों से पता चलता है कि 150 सालों में यह चौथी बड़ी वैश्विक मंदी है। हालांकि, वित्त वर्ष 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4.00 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, लेकिन वित्त वर्ष 2022 में यह कम होकर 3.8 प्रतिशत के आसपास रह सकती है। हालांकि, वैश्विक अर्थव्यवस्था के मुक़ाबले भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज गति से सुधार हो रहा है।
इतना ही नहीं, भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी मानकों में सुधार हो रहा है, जिसकी पुष्टि मेटल, स्टील, सीमेंट, वित्त क्षेत्र के क्रेडिट अनुपात में 20 बीपीएस या उससे अधिक के सुधार से भी होती है। इससे यह भी पता चलता है कि अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए कारोबारी और आम लोग अब बैंक से उधारी लेने लगे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार भी बैंकों का ऋण चालू वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 3.2 प्रतिशत बढ़कर 107.05 लाख करोड़ रूपये पर पहुँच गया, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में बैंकों का ऋण 2.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा था। चालू वित्त वर्ष के 9 महीनों में बैंकों का जमा भी 8.5 प्रतिशत बढ़कर 147.27 लाख करोड़ रूपये पर पहुँच गया, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में बैंकों की जमा में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
बहरहाल, बैंकों में जमा बढ़ने से बैंकों की पूंजी की कमी कम हो रही है, वहीं ऋण में वृद्धि होना इस बात का सूचक है कि विविध उत्पादों के मांग और आपूर्ति में तेजी आ रही है। यह सब संकेत भारतीय अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने की ओर ही इशारा कर रहे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)