कोरोना वायरस का प्रकोप कम होने से अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर तेजी से सुधार हो रहा है। राजस्व में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे राजकोषीय घाटा में कमी आ रही है साथ ही साथ सरकारी खर्च में वृद्धि हो रही है, जिससे विविध उत्पादों व वस्तुओं की मांग में तेजी आ रही है और लोगों को भी फिर से रोजगार मिलने लगे हैं। मजदूर और कामगार अपने काम पर लौट चुके हैं और कारखानों में उनकी पूरी क्षमता से काम हो रहा है। कारोबार भी वापिस पटरी पर लौट रहा है और काम मिलने से आमजन अपना जीवन निर्वाह खुद से करने लगे हैं।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीबों को नवंबर महीने तक मुफ्त राशन दिया जा रहा है। सरकार ने अब इस योजना को फिलहाल बंद करने का फैसला किया है, क्योंकि रोजगार के परिदृश्य पहले से बेहतर हुए हैं और असंगठित क्षेत्र में भी लोगों को फिर से काम मिलने लगा है। इस योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को 5 किलो गेहूं या चावल के साथ एक किलो चना हर महीने राशन की दुकानों के माध्यम से दिया जा रहा है।
आमजन को दो वक्त भोजन मिल सके, इसके लिए इस योजना को मार्च, 2020 में शुरू किया गया था। बहरहाल, सरकार द्वारा इस योजना को बंद करने के फैसले पर कुछ सवाल उठाए जा रहे। हालाँकि, इसे तार्किक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि जरुरत पड़ने पर सरकार ने इस योजना को शुरू किया था और आगे भी आवश्यकता के अनुसार इस इस योजना को सरकार पुनः शुरू कर सकती है।
खाद्य तेल की कीमतों में 7 रूपये से 20 रूपये तक की गिरावट हाल ही में आई है, जिसका कारण सरकार द्वारा सोयाबीन और सूरजमुखी के कच्चे तेल पर लगे शुल्क को कम करना है। पहले इन तेलों पर 2.5 प्रतिशत की शुल्क लगाई जा रही थी। सोयाबीन और सूरजमुखी के कच्चे तेल पर कृषि सेस को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। सोयाबीन और सूरजमुखी के परिष्कृत तेल पर से भी शुल्क को कम कर 17.5 प्रतिशत कर दिया गया है।
इस साल सोयाबीन और मूंगफली की बंपर फसल हुई है, जबकि सरसों की उल्लेखनीय बुवाई हुई है। वैश्विक स्तर पर भी खाने के तेल की आपूर्ति की स्थिति में सुधार आ रहा है, क्योंकि खाद्य तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भी गिरावट आ रही है। बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 60 प्रतिशत से ज्यादा तेल विदेशों से आयात करता है। खाद्य तेल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में आयात शुल्क में भी कटौती की थी।
विगत कुछ महीनों से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के संग्रहण में कोरोना महामारी के बावजूद उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने से राजकोषीय घाटे में कमी आ रही है और सरकार इसकी वजह से सरकारी खर्च में इजाफा कर रही है।
केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कम करने के बाद 16 राज्यों जैसे, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक, असम, मणिपुर, त्रिपुरा आदि ने भी वैट की दरों में कटौती की है। बता दें कि वैट राज्य सरकारों द्वारा पेट्रोल और डीजल पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का कर है। उत्पाद और वैट कर में कटौती करने से पेट्रोल की कीमत कुछ राज्यों में 8 से 9 रुपए कम हुए हैं और डीजल की कीमत लगभग 17 रुपए कम हुई है।
एक अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कटौती करने से चालू वित्त वर्ष के बचे हुए 5 महीनों में सरकार को लगभग 55 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा। हालाँकि, जानकारों के अनुसार उत्पाद शुल्क में केंद्र सरकार द्वारा कटौती करने के बाद भी सरकार की कमाई पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि कोरोना काल में जब पेट्रोल और डीजल की खपत कम हो गई थी, तब उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की गई थी। अब पेट्रोल और डीजल की खपत कोरोना से पहले के स्तर पर पहुंच गई है। खपत बढ़ने से राजस्व में भी वृद्धि हुई है।
हालाँकि, उत्पाद शुल्क से होने वाले राजस्व पर सरकार केवल निर्भर नहीं है। अर्थव्यवस्था के दूसरे घटकों से भी सरकार की कमाई होती है। बीते कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर सुधार हो रहा है।
पेट्रोल और डीजल की कीमत आमजन को कई तरह से प्रभावित करती है। उदाहरण के तौर पर, जिन लोगों की खुद की गाड़ियाँ हैं, उनका महीने का बजट पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमत की वजह से गड़बड़ हो जाता है। सार्वजनिक परिवहन की लागत भी बढ़ जाती है, जिसके कारण आवागमन का किराया बढ़ जाता है।
इसके अलावा, जो कंपनियां पर्यटन क्षेत्र से जुड़ी हैं, या लॉजिस्टिक्स या परिवहन के कारोबार में हैं, वे भी किराए में वृद्धि कर देते हैं, जिसका सीधा असर आम आदमी के बजट पर पड़ता है। ऐसे में पेट्रोल और डीजल की कीमत में कमी आने से महंगाई में कुछ कमी आने का अनुमान है। कीमतें घटने से किसानों को भी फायदा होगा, क्योंकि कुछ दिनों बाद रबी फसल की बुआई की जाने वाली है।
देखा जाये तो बहुत हद तक तेल की कीमत को नियंत्रित करना सरकार के हाथ में नहीं है। जब भी मांग और आपूर्ति में असंतुलन आयेगा, तेल की कीमत में तेजी आयेगी। तेल की बढ़ी कीमत का एक दूसरा बड़ा कारण इस क्षेत्र में निवेश की कमी का होना है। इस कमी को दूर करने के लिए सरकार अक्षय उर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।
शुरू में हर तीन महीने पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बदलाव हुआ करता था, लेकिन 15 जून 2017 से हर रोज तेल की कीमतों को उनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर निर्धारित किया जाता है। कच्चे तेल की कुल खपत का 85 प्रतिशत भारत सरकार आयात करती है। तदुपरांत, इसे भारतीय तेल निगम (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) जैसी कंपनियों की रिफाइनरी तक पहुँचाया जाता है। वहां, कच्चे तेल को परिष्कृत किया जाता है और उसके बाद उसे पेट्रोल पंपों तक पहुँचाया जाता है।
बेशक, कोरोना वायरस का प्रकोप कम होने से अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर तेजी से सुधार हो रहा है। राजस्व में भी बढ़ोतरी हो रही है, जिससे राजकोषीय घाटा में कमी आ रही है साथ ही साथ सरकारी खर्च में वृद्धि हो रही है, जिससे विविध उत्पादों व वस्तुओं की मांग में तेजी आ रही है और लोगों को भी फिर से रोजगार मिलने लगे हैं।
मजदूर और कामगार अपने काम पर लौट चुके हैं और कारखानों में उनकी पूरी क्षमता से काम हो रहा है। कारोबार भी वापिस पटरी पर लौट रहा है और काम मिलने से आमजन अपना जीवन निर्वाह खुद से करने लगे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)