अगस्त, 2020 के पहले पखवाड़े में वर्ष 2019 के समान अवधि के मुकाबले ढुलाई से कमाई ज्यादा रही है। मुंबई में रोज यात्रा करने वालों की संख्या में भी जून महीने से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। खास करके ऑफिस जाने और ऑफिस से लौटने के समय में। नई दिल्ली में भी यातायात सामान्य स्तर के 68 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
धीरे-धीरे लॉकडाउन को अनलॉक किया जा रहा है। आर्थिक गतिविधियों के शुरू होने से अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ संकेतक सकारात्मक परिदृश्य की ओर इशारा कर रहे हैं। उदहारण के तौर पर रेलवे की ढुलाई से कमाई में इजाफा हो रहा है।
अगस्त, 2020 के पहले पखवाड़े में वर्ष 2019 के समान अवधि के मुकाबले ढुलाई से कमाई ज्यादा रही है। मुंबई में रोज यात्रा करने वालों की संख्या में भी जून महीने से उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। खास करके ऑफिस जाने और ऑफिस से लौटने के समय में। नई दिल्ली में भी यातायात सामान्य स्तर के 68 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
ताजा आंकड़ों के अनुसार कार्यस्थलों पर लोगों की मौजूदगी तकरीबन 70 प्रतिशत हो गई है, जो कमोबेश सामान्य दिनों के मुताबिक है। हालांकि, पार्क, खुदरा दुकानों, शापिंग माल आदि में लोगों की मौजूदगी अभी भी 50 प्रतिशत से कम है, लेकिन जल्द ही इसमें बढोतरी होने की उम्मीद है। सिनेमाघरों पर अभी भी प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन इसके खुलने से इसपर निर्भर उद्योगों की गतिविधियों में तेजी आयेगी।
बिजली उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है। आंकड़ों से पता चलता है कि बिजली उत्पादन 2019 के स्तर को प्राप्त कर चुका है। हालाँकि, लॉकडाउन की शुरुआती दिनों में इसमें लगभग 30 प्रतिशत की कमी आई थी। उद्योग और दफ्तर पूरी तरह से बंद हो गये थे, जिससे बिजली की जरूरत कम हो गई थी।
कोरोना महामारी के दौरान डिजिटल भुगतान, उद्योग जगत एवं आम लोगों के लिये “आपदा में अवसर” साबित हुए हैं। नोटबंदी में भी डिजिटल भुगतान को इतनी रफ्तार नहीं मिली थी, जितनी इस महामारी के कारण पिछले 5 महीनों में मिली है। सूक्ष्म, छोटे व मझोले उद्यमियों का रुझान ऑनलाइन भुगतान की ओर तेजी से बढ़ रहा है, अब बड़े भुगतान भी ऑनलाइन किये जाने लगे हैं।
महामारी के दौरान ग्राहक खुद डिजिटल भुगतान के उपयोग की वकालत करने लगे हैं। फोनपे से कोरोना महामारी में बड़ी संख्या में नये ग्राहक जुड़े हैं। व्हाट्सऐप भी डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में आने के लिये तैयार है।
एक अनुमान के अनुसार जल्द ही, इसकी सेवायें देश में शुरू हो सकती है। शहरी क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान की दिशा में सहज बदलाव हुआ है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी इस दिशा में बहुत काम करने की जरुरत है। माना जा रहा है कि यूपीआई पर ऋण सुविधा शुरू होने के बाद ग्रामीण इलाकों में डिजिटल भुगतान में तेजी आयेगी, क्योंकि इसके जरिये छोटी-मोटी जरूरतों के लिये ऋण लेना आसान होगा।
इसमें दो राय नहीं है कि कोरोना महामारी के दौरान मजदूरों एवं कामगारों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई है, लेकिन उद्योगों के मालिकों को भी मजदूरों एवं कामगारों के महत्व का पता चल गया है। वे जान गये हैं कि उनके बिना उद्योग-धंधों को नहीं चलाया जा सकता है।
लॉकडाउन को अनलॉक करने की प्रक्रिया में मजदूरों एवं कामगारों को काम पर वापिस बुलाने के लिये शिद्दत से प्रयास किये जा रहे हैं। विनिर्माण क्षेत्र में मजदूरों एवं कामगारों का भरोसा जीतने के लिये कार्य क्षेत्रों में फेस रीडर, रेटिना स्कैनर और स्वाइप कार्ड से उपस्थिति दर्ज करने वाली बायोमेट्रिक प्रणाली आदि का इंतजाम किया जा रहा है।
श्रमिकों को अपने कार्यस्थल पर ही भोजन करने की अनुमति दी गई है। उद्योगों के मालिकों को इस बात का अहसास हो गया है कि मजदूरों एवं कामगारों के साथ स्वस्थ संबंध बनाने से ही उनके उद्योग चल पायेंगे। मारुति सुजूकी अपनी इन-हाउस मोबाइल ऐप के जरिये करीब 50,000 कर्मचारियों की रियल टाइम आधार पर निगरानी कर रही है, जिसमें स्वाद, गंध तथा कोरोना वायरस के अन्य संभावित लक्षणों को पहचानने की क्षमता है।
आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार बढ़ने से लघु वित्त बैंक एवं अन्य बैंकों के पास ऋण की किस्तें आने लगी हैं। ऋण की किस्तें जमा करने वालों में कमजोर तबके के लोग अधिक हैं। वे लोग खुद ही ऋण की क़िस्त एवं ब्याज चुका रहे हैं, ताकि चक्रवृधि ब्याज लगने से उनपर ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पड़े। वे जान गये हैं कि मॉरेटोरियम कर्ज माफी नहीं है। समय पर ऋण की क़िस्त एवं ब्याज का भुगतान नहीं करने पर उन्हीं को नुकसान होगा।
ऋण की करीब 90 प्रतिशत की अदायगी लॉकडाउन की वजह से मार्च महीने से बंद थी, लेकिन जुलाई महीने से ऋण के किस्तों एवं ब्याज का भुगतान कर्जदार करने लगे हैं। मौजूदा माहौल में उम्मीद है कि अगस्त महीने में मॉरेटोरियम की अवधि खत्म होने के बाद ऋण की किस्तें आने में और भी तेजी आयेगी।
अभी आम लोग नये ऋण लेने से बच रहे हैं। वे समझ गये हैं ज्यादा ऋण लेने से उनकी ही मुश्किलें बढ़ेगीं। अधिकांश ऋणी ईमानदार हैं। अगर बैंक उनकी परेशानी समझेंगें तो ऋण की वसूली भी होगी। शुरू में लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने मॉरेटोरियम की सुविधा ली थी, लेकिन अब इसमें करीब 50 प्रतिशत की कमी आई है। जिनके पास पैसे हैं या जो फिर से काम करने लगे हैं वे ऋण की किस्तों एवं ब्याज की अदायगी प्राथमिकता से कर रहे हैं।
कहा जा सकता है कि लॉकडाउन को आहिस्ता-आहिस्ता अनलॉक करने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रहे है। लोग काम पर वापिस लौटने लगे हैं। बदले माहौल में आमलोग बचत की महत्ता समझ गये हैं। इसलिये, लोग फिजूलखर्ची से बच रहे हैं।
जिन्होंने बैंक से ऋण ले रखा है वे ऋण की किस्तों एवं ब्याज को सबसे पहले चुकाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिये लोग डिजिटल भुगतान पर जोर दे रहे हैं। इन सब के साथ-साथ अधिकांश लोग अपने स्वास्थ को बेहतर रखने के लिये कोरोना वायरस से बचने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं, जो अर्थव्यवस्था के लिये सकारात्मक संकेत है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)