तीसरी तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता का भी असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार देखा जा रहा है। अक्टूबर महीने में कारों, दोपहिया और तिपहिया के साथ-साथ ट्रैक्टरों की बिक्री भी बढ़ी है, जो लोगों की आय में वृद्धि को दर्शाता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत निवेशकों का पसंदीदा गंतव्य बना हुआ है और 2020-21 की पहली छमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सालाना आधार पर 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
वर्ष 2020 के आखिरी मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को 4 प्रतिशत पर यथावत रखा गया। रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत और स्थायी सीमांत सुविधा (एमएसएफ) व बैंक दर को भी 4.25 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया। मौद्रिक नीति समिति के सभी सदस्यों ने मुद्रास्फीति के उच्च स्तर को देखते हुए नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में निर्णय किया।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर तीसरी तिमाही में 0.1 प्रतिशत के साथ सकारात्मक दायरे में लौट आयेगी ऐसी उम्मीद जताई जा रही, जबकि चौथी तिमाही में इसमें 0.7 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति तीसरी तिमाही में 6.8 प्रतिशत, चौथी तिमाही में 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है। वैसे, भारतीय रिजर्व बैंक ने सर्दियों में महंगाई दर में कमी आने की उम्मीद जताई है, जिसका कारण रबी के फसलों का उत्पादन बंपर होने का अनुमान है। रबी की बुआई का रकबा बढ़ने से 2020-21 में कृषि उत्पादन में इजाफा होगा, जिससे श्रमिकों की मांग भी बढ़ेगी।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कॉर्पोरेट आय में इजाफा से पता चलता है कि मांग में सुधार हो रहा है, जिससे मुनाफे में भी बढ़ोतरी हो रही है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में मांग में सुधार हो रहा है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि वित्तीय बाजार व्यवस्थित तरीके से काम कर रहे हैं। केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि वाणिज्यिक व सहकारी बैंक 2019-20 का मुनाफा अपने पास ही रखेंगे और वित्त वर्ष के लिये लाभांश का भुगतान नहीं करेंगे। ऐसा करने से बैंक की पूंजी में बढ़ोत्तरी होगी और वे ज्यादा से ज्यादा ऋण वितरण का कार्य कर सकेंगे।
आरटीजीएस प्रणाली आगामी कुछ दिनों में सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे काम करने लगेगी। कार्ड से संपर्करहित लेन-देन की सीमा जनवरी 2021 से 2000 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये कर दी जायेगी। केंद्रीय बैंक की इस पहल से कारोबारियों को कारोबार करने में सुविधा होगी। शिकायतों के निपटारे में विलंब होने पर ग्राहकों को मुआवजा देने की व्यवस्था करने की बात भी मौद्रिक समीक्षा में कही गई है। इस व्यवस्था से ग्राहकों का विश्वास बैंकिंग प्रणाली पर बढ़ेगा।
तीसरी तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता का भी असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि देश में आर्थिक गतिविधियों में सुधार देखा जा रहा है। अक्टूबर महीने में कारों, दोपहिया और तिपहिया के साथ-साथ ट्रैक्टरों की बिक्री भी बढ़ी है, जो लोगों की आय में वृद्घि को दर्शाता है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत निवेशकों का पसंदीदा गंतव्य बना हुआ है और 2020-21 की पहली छमाही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सालाना आधार पर 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में अक्टूबर महीने के लिये क्षेत्रवार ऋण वृद्धि का आंकड़ा जारी किया है, जिसके अनुसार उद्योग को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में ऋण वृद्धि दर में इजाफा हुआ है। सबसे अधिक ऋण वृद्धि वैयक्तिक ऋण क्षेत्र में हुआ है। फरवरी 2020 में 348 बिलियन के ऋण वृद्धि से ज्यादा ऋण वृद्धि अक्टूबर महीने में हुई है। गृह, वाहन और दूसरे वैयक्तिक ऋण की भी मांग बढ़ रही है।
उपभोक्ता टिकाऊ ऋण क्षेत्र में सितंबर महीने तक नकारात्मक वृद्धि हुई थी, इसमें भी अक्टूबर महीने में 22844 करोड़ रूपये की वृद्धि हुई है। खाद्य तेल, पैकेजिंग, एफएमसीजी, फार्मा, सीमेंट, स्टील, कंज्यूमर ड्यूरेबल आदि क्षेत्रों में भी तेज वृद्धि हुई है।
सभी अनुसूचित व्यावसायिक बैंक की वृद्धिशील ऋण वृद्धि नवंबर महीने में सकारात्मक रही है। इसमें वाईटीडी के आधार पर 0.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में वाईटीडी के आधार पर इसमें 0.8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।
रिजर्व बैंक द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को काल और नोटिस बाजार में कारोबार की अनुमति देने से उन्हें नकदी का बेहतर प्रबंधन करने का अवसर मिलेगा। अभी, उनके पास जमा के स्रोत मियादी जमा, सरकारी प्रतिभूति, नन-एसएलआर प्रतिभूति आदि हैं, जिसके कारण उन्हें अक्सर नकदी की कमी का सामना करना पड़ता है।
बीते सालों आईएल एंड एफएस एवं दीवान हाउसिंग लिमिटेड एनबीएफसी कंपनियों में आये संकट की वजह से एनबीएफसी के साख को भारी धक्का लगा था, जिसका एक महत्वपूर्ण कारण कमजोर ऑडिट की व्यवस्था का होना था।
इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में रिस्क बेस्ड इंटरनल ऑडिट (आरबीआईए) को एनबीएफसी के लिए भी अनिवार्य कर दिया है। बैंकों में यह व्यवस्था वर्ष 2002 से लागू थी। आरबीआईए का काम बैंक और एनबीएफसी के परिचालन में मौजूद जोखिम का प्रबंधन करना और मौजूद विसंगतियों को दूर करना है।
वित्तीय नवाचारों के साथ-साथ विवेकपूर्ण ढंग से एनबीएफसी क्षेत्र का विकास होना बहुत जरूरी है, जिसकी कुंजी जोखिम भरे क्षेत्रों में प्रवेश करने से पहले पर्याप्त जोखिम प्रबंधन प्रणालियों और प्रक्रियाओं के अनुपालन में निहित है।
वित्तीय स्थिरता, जमाकर्ताओं के निवेश का संरक्षण व भरोसे को बनाये रखना, उनकी जरूरतों का ख्याल रखना, दूर-दराज के क्षेत्रों में विकास की रफ्तार को बनाये रखना आदि एनबीएफसी के समक्ष बड़ी चुनौतियाँ हैं।
कोरोना महामारी के साये में रिजर्व बैंक का ध्यान फिलवक्त जीडीपी की दर बढ़ाने पर है। इसी को दृष्टिगत करते हुए केंद्रीय बैंक सुधारात्मक कदम उठा रहा है। भले ही रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में कटौती नहीं की है, लेकिन जरूरत पड़ने पर वह ऐसा कर सकता है। रिजर्व बैंक का मानना है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में उम्मीद से ज्यादा तेजी से जीडीपी वृद्धि दर में तेजी आयेगी।
मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखना रिजर्व द्वारा उठाया गया समीचीन कदम है। मौजूदा समय में बैंकिंग प्रणाली में ऋण देने के लिए पर्याप्त नकदी है। ऋण वृद्धि दर में इजाफा हो रहा है। अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो रहा है।
रबी फसल के बंपर उत्पादन होने की आस है साथ ही साथ लॉकडाउन के चरणबद्ध तरीके से अनलॉक करने से ढुलाई व्यवस्था सामान्य हो रही है, जिससे महंगाई पर लगाम लग रही है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)