प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान इजरायल से अन्य क्षेत्रों के साथ जल प्रबंधन और कृषि विकास सहयोग समझौता किया गया है। इस समझौते के बाद यह उम्मीद बंधी है कि अब इजरायल की कृषि तकनीक का भारत को भी लाभ मिल सकेगा, जिससे भारतीय कृषि के भी फायदे का सौदा बनने के रास्ते खुलेंगे।
मुस्लिम वोट बैंक की चिंता में दिन-रात दुबले होने वाले भारतीय कांग्रेसी नेताओं ने इजराइल से इस कदर मुंह फुलाए रखा कि उसकी तकनीक प्रधान खेती की ओर देखने की फुरसत ही नहीं मिली। इजराइल से राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद भी दोनों देशों के संबंध रक्षा संबंधी जरूरतों के इर्द-गिर्द घूमते रहे। यही कारण है कि इजराइल ने तकनीक के दम पर कृषि विकास और पानी के प्रबंधन क्षेत्र में जो चमत्कार किया है, उसका भारत बहुत कम लाभ उठा पाया।
ये तो शुक्र हो प्रधनमंत्री मोदी का कि वे अपनी इजरायल यात्रा के दौरान इजरायल से कृषि तकनीक के क्षेत्र में समझौते किए हैं, जिससे अब भारत को इस दिशा में भी इजरायल से सहयोग मिलने की राह खुली है। इसी संदर्भ में एक नज़र इजरायल की कृषि तकनीक पर डालना समीचीन होगा।
इजरायल की कृषि तकनीक
गौर करें तो भारत में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1500 घन मीटर है और इस पानी का तीन-चौथाई खेती में प्रयुक्त होता है। इसके बावजूद यहां की खेती मानसून का जुआ बनी हुई है। दूसरी ओर इजराइल में महज 200 घनमीटर पानी की उपलब्धता के बाद भी सूखा-बाढ़ का कहीं नामो-निशान नहीं है। बूंद-बूंद (टपक) सिंचाई, गंदे पानी के पुर्नचक्रण, समुद्री पानी को मीठा बनाने जैसी उपलब्धियों के दम पर इजरायल रेगिस्तान में भी मुनाफे की खेती का रिकार्ड बना रहा है।
दूसरी ओर भारत में सतलुज-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान और उपजाऊ तटीय इलाके बदहाल बने हुए हैं। इजराइल में सिंचाई में इस्तेमाल होने वाले पानी का 62 फीसदी हिस्सा पुर्नचक्रित होता है। दूसरी ओर भारत में शहरों-कस्बों से निकलने वाले पानी को नदी-नालों में उड़ेल दिया जाता है। नदियों के प्रदूषण की एक बड़ी वजह यही है।
उन्नत जल प्रबंधन के साथ-साथ इजराइल ने नई तकनीक के दम पर कृषि उत्पादन में भी रिकार्ड बनाया है। 1948 में आजाद होने के बाद से अब इजराइल का कृषि उत्पादन 16 गुना बढ़ चुका है, जबकि हमारे देश में यह बढ़ोत्तरी पांच गुना ही है। तकनीकी क्षमता के बल पर इजराइल अपने खेतिहर रकबे में दो गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी कर चुका है, दूसरी ओर भारत का कृषि क्षेत्र दशकों से 14.2 करोड़ हेक्टेयर पर ठहरा हुआ है।
कृषि उत्पादन में ऊंची छलांग के बावजूद इजराइल में न तो गेहूं-चावल से गोदाम अटे पड़े हैं और न ही वह दाल-खाद्य तेल के लिए विदेश का मुंह ताकता है। इसका कारण है कि इजराइल का कृषि विकास विदेशी संस्थानों की मदद पर आधारित न होकर घरेलू अनुसंधान और बाजार की मांग पर किया गया है। वहां की खेती बागवानी, मछली, फल-फूल उत्पादन के जरिए विविधीकृत बनी हुई है।
इजराइल उत्पादन के साथ-साथ कृषि उपज के प्रबंधन व विपणन पर भी उतना ही ध्यान देता है। यहां कृषि उपज के भंडारण के लिए ऐसे बैग बनाए गए हैं, जिसमें महीनों तक उपज ताजी व सुरक्षित बनी रहती है। जहां भारतीय किसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों के महंगे कीटनाशकों के जाल में उलझे हुए हैं, वहीं इजरायल में बायो बी नामक कंपनी ने ऐसे कीट नियंत्रक दवा का निर्माण किया है, जिसके छिड़काव से कीड़े तो दूर रहते हैं, लेकिन कृषि मित्र मधुमक्खियों और भौंरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
भारत में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल छिड़काव कर किया जाता है, जिसमें फसल की जरूरत की जांच-परख नहीं की जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि ये उर्वरक मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ भूजल को भी प्रदूषित करते हैं। दूसरी ओर इजराइल में उर्वरकों को जरूरत के मुताबिक उनकी जड़ों में पानी के साथ डाला जाता है। डेयरी क्षेत्र में भी इजराइल ने कीर्तिमान बनाया है। भारत भले ही दूध उत्पादन में नंबर एक की पोजीशन रखता है, लेकिन यहां गायों की दूध देने की क्षमता पांच से सात लीटर ही है। इजराइल में गाय औसतन 36 से 40 लीटर दूध देती हैं। कृषि क्षेत्र की इन्हीं उपलब्धियों के बल पर इजराइल हर साल 2 अरब डॉलर के फल-सब्जी निर्यात करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान अन्य क्षेत्रों के साथ जल प्रबंधन और कृषि विकास सहयोग समझौता किया गया है। इस समझौते के बाद यह उम्मीद बंधी है कि अब इजरायल की कृषि तकनीक का भारत को भी लाभ मिल सकेगा, जिससे भारतीय कृषि के भी फायदे का सौदा बनने के रास्ते खुलेंगे।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)