विश्व बिरादरी में पाक को अलग-थलग करने की दिशा में बढ़ती भारतीय विदेश नीति

अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि हमें बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार के हनन का प्रश्न दुनिया के पटल पर अवश्य उठाना चाहिए। इसके बाद से ही बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन और भारत के सहयोग के प्रति धन्यवाद की खबरें आने लगीं थीं। पाकिस्तान अलग-थलग पड़ने लगा था। दुनिया का ध्यान इसी मुद्दे से भटकाने के लिए उरी की साजिश सीमा पार की ताकतों द्वारा रची गयी, जिससे कि भारत को उसी के घर की समस्याओं में उलझाया जा सके। हालांकि पाकिस्तान इसमें कामयाब नहीं सका है। उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री ने बेहद सख्त तेवर दिखाए तो वहीँ देश के बाहर संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को खुले तौर पर बेनकाब किया। संयुक्त राष्ट्र की सभा में सुषमा स्वराज ने स्पष्ट तौर पर कहा कि आतंकवाद ही मानवाधिकारों का सबसे बड़ा हननकर्ता है, अर्थात मानवाधिकारों को सर्वाधिक खतरा आतंकवाद से है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रति भारत की सख्त नीति को दोहराते हुए पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुए कहा कि कुछ देश आतंकवाद बोते हैं, उगाते हैं और निर्यात करते है, इन देशों को बेनकाब करना होगा, अलग-थलग करना होगा। 

आतंकवाद की मसले पर सुषमा स्वराज का यह भाषण इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि इसमें उन्होंने आतंकवाद को भारत की निजी समस्या के रूप में प्रस्तुत करने की बजाय पूरे विश्व की शान्ति एवं मानवाधिकार के लिए खतरा बताया। जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी समस्या गिनाने और भारत को कोसने तक सीमित रहे। भारत की तरफ से दिए गये इस संबोधन में एक ऐसे जिम्मेदार देश की झलक दिखाई दे रही थी, जो वैश्विक चिंताओं के प्रति चिंतित नजर आता है और उन समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर दिखता है। लिहाजा इस भाषण का मूल्यांकन महज पाकिस्तान से भारत की चल रही रार अथवा सीमा-विवाद के मसले तक समझना ठीक नहीं होगा।

दरअसल विदेश मंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र की सभा में दिया गया यह भाषण इस मायने में भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल में ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भी इस सभा में अपना पक्ष  रखा था, जो कि सिवाय झूठ और लाचारी के कुछ भी नहीं था। अपने भाषण में आतंकी बुरहान वानी की तारीफ़ करके खुद को बेनकाब कर चुके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को भारतीय विदेश मंत्री द्वारा भी वाजिब और आईना दिखाने वाला जवाब दिया गया है। भारत अलग-अलग मंचों से दुनिया को यह बता पाने में कामयाब होता दिख रहा है कि दक्षिण एशिया में आतंकवाद की फसल पाकिस्तान में ही उगाई जा रही है। विदेशमंत्री ने भारत की उस मांग को एकबार फिर पुरजोर ढंग से वैश्विक मंच से उठाया कि अब आतंकवाद की परिभाषा तय की जानी चाहिए। कौन आतंकवाद के साथ है और कौन खिलाफ है, इसको भी अब स्पष्ट किया जाना चाहिए। इस मांग के साथ ही भारत ने अब स्पष्ट कर दिया कि वो पाकिस्तान के प्रति किसी भी स्तर पर पिछली सरकारों की तरह ढुलमुल नीति नहीं रखने वाला है।

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वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान को अलग-थलग करने की दिशा में बढती भारतीय विदेश नीति

आतंकवाद की मसले पर सुषमा स्वराज का यह भाषण इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि इसमें उन्होंने आतंकवाद को भारत की निजी समस्या के रूप में प्रस्तुत करने की बजाय पूरे विश्व की शान्ति एवं मानवाधिकार के लिए खतरा बताया। जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी समस्या गिनाने और भारत को कोसने तक सीमित रहे। भारत की तरफ से दिए गये इस संबोधन में एक ऐसे जिम्मेदार देश की झलक दिखाई दे रही थी, जो वैश्विक चिंताओं के प्रति चिंतित नजर आता है और उन समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर दिखता है। लिहाजा इस भाषण का मूल्यांकन महज पाकिस्तान से भारत की चल रही रार अथवा सीमा-विवाद के मसले तक समझना ठीक नहीं होगा। भारत अब हर स्तर पर इस नजरिये के साथ जा रहा है कि पाकिस्तान के साथ उसका महज कश्मीर को लेकर सीमा-विवाद अथवा मामला नहीं है बल्कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देने वाला एक खतरनाक मूल्क बन चुका है, जिससे न सिर्फ दुनिया के देशों को खतरा है बल्कि उसके अपने नागरिकों का मानवाधिकार भी सुरक्षित नहीं है। यानी, अब भारत की तरफ से पाकिस्तान को दुनिया के अमनपसंद लोकतांत्रिक देशों के बीच घेरने की मुहीम इस शर्त के साथ चलाई जा रही है कि या तो पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता छोड़े अथवा उसे दुनिया में अलग-थलग रहना होगा। भारत की यह नीति कामयाब होती भी दिख रही है। दुनिया के तमाम लोकतान्त्रिक देश पाकिस्तान को सचेत कर रहे हैं और भारत के साथ सहमत दिख रहे हैं। यह भारत की विदेश नीति की कामयाबी है कि वह दुनिया के सामने पाकिस्तान को बेनकाब करने में सफल रहा है।

हालांकि आतंकवाद के अलावा अन्य मुद्दों पर भी भारतीय विदेश मंत्री का संयुक्त राष्ट्र के मंच से दिया गया भाषण अहम है। उन्होंने, प्राकृतिक संपदाओं के दोहन, दुनिया के तमाम देशों में व्याप्त गरीबी, स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं के प्रति भी दुनिया का ध्यान दिलाने की बात की है। निश्चित तौर पर ये समस्त चिंताएं एक नेतृत्वकर्ता एवं जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में भावी भारत के निर्माण की तरफ बढाया गया एक मजबूत कदम है। समग्रता में अगर देखें तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का संयुक्त राष्ट्र में दिया गया यह भाषण बेहद स्पष्ट और वैश्विक समस्याओं के प्रति भारत का स्पष्ट रुख रखने वाला रहा।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो और नेशनलिस्ट ऑनलाइन के संपादक हैं।)