वर्ष 2014 के बाद से भारतीयों के विदेशों में जमा कथित कालेधन में कमी आई है। असल में राज्यसभा के सदन में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह अहम जानकारी प्रस्तुत की। स्विटजरलैंड की बैंकों में वर्ष 2014 से लेकर पिछले साल यानी 2017 तक तीन वर्ष की अवधि में इस धनराशि में बड़े पैमाने में गिरावट आई है जो कि अभी 80 प्रतिशत आंकी जा रही है। गौरतलब है कि यह कालखंड केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के बाद का है।
पिछले सप्ताह काले धन की बातें फिर से चर्चा में आ गईं। जिस अहम बिंदु का जिक्र छिड़ा वह यह रहा कि वर्ष 2014 के बाद से भारतीयों के विदेशों में जमा कथित कालेधन में कमी आई है। असल में राज्यसभा के सदन में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने यह अहम जानकारी प्रस्तुत की। स्विटजरलैंड की बैंकों में वर्ष 2014 से लेकर पिछले साल यानी 2017 तक तीन वर्ष की अवधि में इस धनराशि में बड़े पैमाने में गिरावट आई है जो कि अभी 80 प्रतिशत आंकी जा रही है। गौरतलब है कि यह कालखंड केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के बाद का है।
2014 में मोदी सरकार बनी और उसके बाद से ही इस कालेधन में कमी आई है। जब भी हम ‘काला धन’ शब्द का प्रयोग करते हैं, सुनते हैं, तो हमें थोड़ी-सी सावधानी बरत लेनी चाहिये, क्योंकि यह बिंदु महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ गूढ़ भी है। सबसे पहले तो सवाल उठता है कि काला धन यानी किस प्रकार का धन। इस सम्बन्ध में यदि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की बात मानें तो उन्होंने स्वयं स्पष्ट किया है कि स्विस बैंकों में धन तो जमा है, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि ये सारा काला धन ही है। काले धन का प्रतिशत कुल धन के मुकाबले कम ही है।
प्रश्न उठता है कि एक मंत्री को आखिर इस प्रकार की जानकारी सदन में प्रस्तुत करने की अचानक क्या जरूरत आन पड़ी? दरअसल हुआ यह था कि बीते दिनों मीडिया इस आशय की खबरें सामने आईं थीं कि स्विस बैंकों में जमा भारतीयों की धनराशि, जिसे आम जगत में काला धन माना जाता है, में बढ़ोतरी होती जा रही है। ज़ाहिर है इस पर केंद्र सरकार ने गंभीर संज्ञान लिया। सरकार ने स्वयं इन स्विस बैंकों से संपर्क किया और पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि जिस प्रकार की आंकड़ेबाजी की जा रही है, वह सर्वथा गलत और भ्रामक है।
निश्चित ही मीडिया के समक्ष प्रस्तुत हुए आंकड़े अपने आप में प्रामाणिक नहीं थे। अब जाकर चूंकि स्वयं केंद्रीय मंत्री को आधिकारिक जानकारी मिली है, तो उसे सार्वजनिक किया गया है। यदि आंकड़ों की मानें तो स्विस बैंकों में जमा धन में पिछले एक वर्ष में जो गिरावट आई है, उसका प्रतिशत 34 से 35 है। ये आंकड़े स्विस बैंक की अथॉरिटी ने स्वयं पुख्ता किए हैं। बीते साल की अंतिम तिमाही में यह प्रतिशत 35 से बढ़कर 44 तक चला गया था।
अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि काले धन को लेकर सरकार आखिर इतनी गंभीर एवं चिंतित क्यों नज़र आ रही है। जवाब स्पष्ट है। 2014 के पहले कांग्रेस के शासन काल में अनेक घोटाले हुए और उस भ्रष्टाचार का सारा पैसा कहां ठिकाने लगा दिया गया, यह अभी तक पकड़ में नहीं आया है। देश में भ्रष्टाचार का ग्राफ दिनोदिन इतना बढ़ता गया कि इससे देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लगी।
आखिर जब 2014 में सत्ता पलट हुआ और प्रचंड व पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार केंद्र में आई तब देशवासियों को उम्मीद थी कि अब कालेधन की रोकथाम की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। जनता ने यह उम्मीद इस आधार पर बांधी थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पूर्व बतौर विपक्ष के नेता एवं प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने जनता से वायदा किया था कि वे यदि सरकार में आए तो ना केवल काले धन पर लगाम लगाएंगे बल्कि यह धन वापस स्वदेश भी लाएंगे।
देखा जाए तो मोदी जनता से किए अपने इस वादे को पूरा करने की दिशा में सरकार में आने के पहले दिन से शत-प्रतिशत गंभीरता व ईमानदारी से प्रयासरत हैं। नवंबर, 2016 में हुई नोटबंदी इस बात का प्रमाण है। यह देश की बिगड़ती इकोनॉमी सुधारने की दिशा में पहला बड़ा कदम था। इसके बाद जून, 2017 में जीएसटी लागू करके दूसरा आर्थिक सुधार किया गया। मोदी सरकार ने ये दो बड़े आर्थिक सुधार करके देश में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बाजार में चलने वाले रुपए पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी। डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देने के पीछे भी सरकार यही मकसद है कि देश में काले धन के सृजन पर अंकुश लगे।
अब जहां तक स्विस बैंक में जमा धन की बात है, इसमें कोई दो-राय नहीं है कि इन बैंकों में 2014 के पहले धन जमा था, लेकिन मोदी सरकार की सक्रियता एवं सख्ती के चलते अब इसके निवेश का प्रतिशत घटता ही जा रहा है। इस बात की पुष्टि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा राज्यसभा के सदन में प्रस्तुत उक्त जानकारी से होती है।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने ये आंकड़े आसानी से जुटाए। सच तो ये है कि सरकार को इनके लिए काफी लंबा संघर्ष करना पड़ा है। बीते चार वर्षों में 4 हजार से अधिक बार संपर्क किया गया एवं सूचनाएं चाही गईं। बातचीत और समझौते आदि की दिशा में बढ़ा गया। तब जाकर आज यह स्थिति बनी है कि कुछ ठोस आंकड़े सामने आए हैं।
स्विस बैंकों में किए गए जमा एवं आहरण की समस्त जानकारी पाने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है। यह जानकारी सामने आने के बाद निश्चित ही कांग्रेस आदि विपक्षी दलों को करारा जवाब मिल गया होगा जो चार साल से केंद्र सरकार को काले धन के मसले पर निराधार ही कोसते आ रहे थे। अब इसपर विपक्षी दलों के पास तथ्यपरक ढंग से कहने को शायद ही कुछ हो। लेकिन अभी तो यह शुरुआत ही है।
अब जबकि सरकार को स्विस अथॉरिटी से सूचनाएं मिलने लगी हैं, तो यह उम्मीद की जा सकती है कि शेष विस्तृत जानकारियां भी खुलासे के रूप में जनता के सामने होंगी। आखिर जनता को भी यह विश्वास होना चाहिये कि उन्होंने किन्हीं गलत हाथों में देश की बागडोर नहीं सौंपी। मोदी ने चुनाव से पूर्व जो वादे किए, उन्हें पूरा करने की दिशा में ईमानदारी से कार्यरत भी हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)