विभाजन के बाद देश ने कई विभीषिकाओं को झेला, हजारों आपदाओं को सहन किया। फिर उठ खड़ा हुआ तथा विश्व के सामने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी। इस कालखंड में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न हुईं, कुछ का समाधान हुआ और कुछ आज भी अधर में लटक हुई हैं, जिसमें सबसे बड़ी समस्या कश्मीर की है। देश का यह हिस्सा आज आतंक से सबसे ज्यादा पीड़ित है। पूर्ववर्ती सरकारों की अदूरदर्शी नीति ने इसे और कमजोर किया। कश्मीर समस्या पर देश में विगत कई दशकों से राजनीति हो रही है, लेकिन आतंकवाद के बदलते स्वरूप में इसका भी अर्थ बदल गया है। इस नए दौर मंे भारतीय मुसलमानों की एक कट्टर पीढ़ी की वहाबी प्रवृत्ति ने आतंकवादी कृत्यों को समर्थन दिया तथा उसे हर मायने में सही साबित करने की पुरजोर कोशिश की। आज देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विश्लेषक बहुत ही बेशर्म तरीके से दावा करते हैं कि भारत के मुसलमानों का आतंकवाद से कुछ लेना-देना नहीं है, बल्कि जो आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं, वो अयोध्या और गुजरात जैसी घटनाओं की प्रक्रिया मात्र है। वास्तविकता के धरातल पर ऐसे लोग जेहादी कृत्यों को सिर्फ इसलिए जायज ठहराने की मांग करते हैं कि भारतीय मुसलमानों का एक कट्टरपंथी तबका न सिर्फ इनके प्रति सहानुभूति रखता है, बल्कि मामला वोट बैंक से भी जुड़ा हुआ है।
दरअसल इन कट्टरपंथियों का उद्देश्य कश्मीर में चल रहे जिहाद को भारत में मुसलमानों की दुर्दशा से जोड़कर विश्व के सभी मुस्लिम देशों की सहानुभूति हासिल करने के साथ-साथ मोटी राशि भी हासिल करना है। लेकिन, वास्तविकता के धरातल पर उतरकर जब इस समस्या का अवलोकन किया जाता है तो सच्चाई का और डरावाना रूप उभरकर सामने आता है। दरअसल यह तबका कश्मीरी जिहाद को आधार बनाकर मुस्लिम देशों से आर्थिक मदद हासिल कर देश के सभी मुस्लिम बहुत इलाकों में अपना वर्चस्व कायम करना तथा अपने अनुसार व्यवस्था चलाने की साजिश को अंजाम देने की फिराक में है। देश को और खासकर देश के लिबरल मुस्लिमों और उनके संगठनों को चाहिए कि वक्त रहते इस विषय को संज्ञान में लेकर इस पर त्वरित कार्यवाही करें तथा खुलकर अपना विरोध दर्ज कराएं। इससे देश के बहुसंख्यक समाज को सकारात्मक संदेश जाएगा और मुस्लिम समुदाय के प्रति लोगों के मन में प्यार और विश्वास भी बढ़ेगा।
दरअसल कश्मीर की समस्या और आतंकवाद को समझने के लिए हमें इतिहास में वापस जाना होगा, और इसके मूल में बसी समस्याओं का अध्ययन करना होगा। 1980 में जब कश्मीर में अलगाववाद ने पैर पसारना शुरू किया तभी जिहादी ताकतों ने मौके का लाभ उठाकर यहां पर आतंकवाद को प्रत्यारोपित कर दिया, तब से लेकर आज तक यह यथावत है। इस आतंकवाद की विभीषिका में अभी तक लाखों निर्दोष लोग और सेना के जवान अपनी जान गवां चुके है। वहाबियों की नजर में कश्मीर में जारी गतिरोध और आतंक शोषण एवं अन्याय के खिलाफ युद्ध है, जो जिहाद का एक हिस्सा है। इस काम में जाकिर नाइक जैसे कट्टरपंथी विचारधारा के इस्लामिक उपदेशकों द्वारा किए जा रहे कुप्रचार का भी बड़ा हाथ है। इससे प्रभावित होकर पढ़े-लिखे मुस्लिम युवा भी तेजी से आतंकवाद की ओर आकृष्ट हो रहे हैं।
कश्मीर में चल रहे आतंकवाद को नजदीक से समझने वाले आज भी इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि कश्मीर समस्या की मूल दुनियाभर में फैले वहाबी कट्टरपंथियों आतंकवाद के प्रसार का ही असर है। इसकी नजीर कश्मीर से भगाए गए लाखों कश्मीरी पंडितों से लेकर अमरनाथ भूमि आन्दोलन को देखने से ही मिल जाती है। एक बात यह भी गौर करने वाली है कि जब भी पाकिस्तान द्वारा कश्मीर को लेकर गलतबयानी की जाती है तब विरोध में अधिकांश भारतीय मुसलमानों का दबा-छुपा स्वर ही सुनाई देता है। देश को अमरनाथ भूमि आन्दोलन याद होगा जब पूरा देश उस आंदोलन का समर्थन कर रहा था तब भारतीय मुसलमानों की चुप्पी भी नापाक कश्मीरी वहाबियों के पक्ष को मौन समर्थन प्रदान कर रही थी। देश में इन कट्टरपंथियों का काम आए दिन संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गाली देना है, लेकिन ये कश्मीर में मारे जा रहे सुरक्षाकर्मियों की शहादत पर चुप्पी साधे रहते हैं। देश को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही तबका है, जो बाटला हाउस एनकाउंटर को आज भी फर्जी मानता है, सोहराबुद्दीन को दीन-ए-इस्लाम का रक्षक मानता है और आतंकी याकुब के जनाजे में मातम मनाता है। इन लोगों का रुख राष्ट्रीय सरोकारों पर भी संदिग्ध ही रहता है। और तो और यह तबका बंग्लादेशी घुसपैठ को जायज मानता है और मुबई हमले में हिंदू संगठनों को भी साजिश बताने का षड्यंत्र करते रहता है। भारत में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में मरने वाले निर्दोष नागरिकों के लिए इनका दिल नहीं पसीजता लेकिन म्यामार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ इनके मन में इतना गुस्सा भर जाता है कि मुंबई के आजाद मैदान में स्थापित राष्ट्र गौरव के प्रतीक अमर जवान ज्योति को लात मारी जाती है, कई पुलिस वालों तथा आम नागरिकों को मारकर घायल किया जाता है तथा पूरे देश में उत्पात किया जाता है। दरअसल यह त्वरित गुस्से की परिणति नहीं होती है, यह एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है।
दरअसल इन कट्टरपंथियों का उद्देश्य कश्मीर में चल रहे जिहाद को भारत में मुसलमानों की दुर्दशा से जोड़कर विश्व के सभी मुस्लिम देशों की सहानुभूति हासिल करने के साथ-साथ मोटी राशि भी हासिल करना है। लेकिन, वास्तविकता के धरातल पर उतरकर जब इस समस्या का अवलोकन किया जाता है, तो सच्चाई का और डरावाना रूप उभरकर सामने आता है। दरअसल यह तबका कश्मीरी जिहाद को आधार बनाकर मुस्लिम देशों से आर्थिक मदद हासिल कर देश के सभी मुस्लिम बहुत इलाकों में अपना वर्चस्व कायम करने तथा अपने अनुसार व्यवस्था चलाने की फिराक में है। देश को और खासकर देश के लिबरल मुस्लिमों और उनके संगठनों को चाहिए कि वक्त रहते इस विषय को संज्ञान में लेकर इस पर त्वरित कार्यवाही करें तथा खुलकर अपना विरोध दर्ज कराएं। इससे देश के बहुसंख्यक समाज को सकारात्मक संदेश जाएगा और मुस्लिम समुदाय के प्रति लोगों के मन में प्यार और विश्वास भी बढ़ेगा।
(लेखक श्यामा प्रसाद मुकर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं।)