फिलवक्त, दुनिया के 17 देशों यथा, यूनाइटेड किंगडम, मलेशिया, रूस, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, म्यांमार, बोत्सवाना, इजराइल, फिजी, ओमान, केन्या, गुयाना, मॉरीशस, सेशेल्स, तंजानिया आदि के साथ रूपये में कारोबार किया जा रहा है और उम्मीद है कि जल्द ही जर्मनी, इजरायल सहित 64 अन्य देश भी रुपये में कारोबार करने लगेंगे। हालाँकि, रुपया में अगर सिर्फ 30 देश भी कारोबार करने लगेंगे तो यह अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मुद्रा बन जायेगा।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद रूस के आक्रामक रुख पर काबू पाने के लिए विकसित देशों ने उसपर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए, जिसके कारण रूस के लिए डॉलर, पाउंड या यूरो में कारोबार करना मुश्किल हो गया। चूँकि, रूस कच्चे तेल का एक बड़ा निर्यातक देश है, इसलिए, उसने अपनी माली हालात को ठीक करने के लिए चीन समेत भारत को सस्ती दर पर कच्चा तेल बेचना शुरू कर दिया।
कच्चे तेल को रूस से सुचारू तरीके से आयात किया जा सके, इसके लिए केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार रुपया में करने की पहल की। इस क्रम में भारत में स्पेशल रूपी वोस्ट्रो अकाउंट (एसआरवीए) खाते खोलने की प्रक्रिया जुलाई, 2022 में शुरू हुई और विदेश व्यापार नीति 2023 के तहत भी रूपये में अंतरार्ष्ट्रीय कारोबार को बढ़ावा देने के लिए प्रावधान किये गए।
भारतीय रिजर्व बैंक से एसआरवीए के लिए सबसे पहले अनुमति रूस के तीन शीर्ष बैंकों वीटीबी बैंक, सबरबैंक और गज़प्रॉमबैंक ने ली थी। तदुपरांत, रोसबैंक, टिंकॉफ बैंक, सेंट्रो क्रेडिट बैंक और मॉस्को के क्रेडिट बैंक सहित 20 अन्य रूसी बैंकों ने भारत में भागीदार बैंकों के साथ एसआरवीए खोले।
फिलवक्त, दुनिया के 17 देशों यथा, यूनाइटेड किंगडम, मलेशिया, रूस, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, म्यांमार, बोत्सवाना, इजराइल, फिजी, ओमान, केन्या, गुयाना, मॉरीशस, सेशेल्स, तंजानिया आदि के साथ रूपये में कारोबार किया जा रहा है और उम्मीद है कि जल्द ही जर्मनी, इजरायल सहित 64 अन्य देश भी रुपये में कारोबार करने लगेंगे। हालाँकि, रुपया में अगर सिर्फ 30 देश भी कारोबार करने लगेंगे तो यह अंतरराष्ट्रीय कारोबारी मुद्रा बन जायेगा।
रुपये में अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार करने के लिए भारत के 12 बैंकों ने विदेश के बैंकों में एसआरवीए खाते खोले, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, यूको बैंक, यस बैंक, एचडीएफसी बैंक, केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडसइंड बैंक, आईडीबीआई बैंक आदि शामिल हैं। दूसरे करेंसियों की तरह रूपये में भी वोस्ट्रो खाते के जरिये अन्तर्राष्ट्रीय लेनदेन करने की व्यवस्था की गई, जिससे भारतीय कारोबारियों ने चुनिंदा देशों के कारोबारियों को रूपये में भुगतान करना शुरू कर दिया और रूपये में उन्हें अपने माल की कीमत भी मिलने लगी।
वोस्ट्रो खाते के जरिये लेनदेन को एक उदहारण के द्वारा समझा जा सकता है, जैसे, भारत का कोई भी कारोबारी भारत स्थित बैंक की मदद से विश्व के किसी भी देश में वहां के स्थानीय बैंक के जरिये कारोबार कर सकता है और ठीक इसके उलट भी हो सकता है।
इसे एक और उदाहरण की मदद से समझा जा सकता है, मसलन, इंग्लैंड स्थित एचएसबीसी बैंक का वोस्ट्रो खाते का परिचालन भारत में भारतीय स्टेट बैंक या किसी दूसरे बैंक के माध्यम से किया जा सकता है और इसी तरह भारत के पंजाब नेशनल बैंक के वोस्ट्रो खाते का परिचालन इंग्लैंड स्थित एचएसबीसी बैंक या किसी दूसरे बैंक के द्वारा किया जा सकता है।
भारत सरकार की इस पहल से रूपये में अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार करने की आवृति में काफी तेजी आई है। इतना ही नहीं, डॉलर, पाउंड और यूरो के बाद वैश्विक स्तर पर हवाई अड्डों के मुद्रा विनिमय काउंटरों पर रुपया व्यापक रूप से स्वीकार किया जाने लगा है, जिसके कारण यह मुद्रा विनिमय के मामले में चौथी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बन गई।
माना जा रहा है कि अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार रूपये में करने से भारत के कारोबारियों के लिए कारोबार की लागत कम हो जायेगी, जिससे रूपये में अंतर्राष्ट्रीय कारोबार करने के चलन को बढ़ावा मिलेगा और हेजिंग के खर्च में भी कमी आयेगी, क्योंकि इससे रुपए के उतार-चढ़ाव में कमी आने की संभावना है। इससे विदेशी निवेशक भी भारत के साथ कारोबार करने के लिए प्रोत्साहित होंगे और भारत को निर्यात करने में आसानी होगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय कारोबार में पारदर्शिता आयेगी, जिससे भारतीय निर्यात को बल मिलेगा। उल्लेखनीय है कि अभी रूपये में अंतर्राष्ट्रीय कारोबार महज 2 प्रतिशत की जा रही है।
यह भी कयास लगाया जा रहा है कि इससे कारोबारियों को वैश्विक बाज़ार की बारीकियों को समझने में मदद मिलेगी और वे परिस्थितिनुसार मूल्य निर्धारण रणनीति बनाने में समर्थ होंगे। इससे भुगतान प्रक्रिया त्वरित और सटीक होगी। सीमा-पार भुगतान से जुड़े समय और लागत में कमी आयेगी। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी रिज़र्व रखने की लागत इससे कम होगी। जब अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में रुपए का व्यापक प्रचलन और उसकी स्वीकृति होगी तो रिजर्व बैंक को आकस्मिक जरूरतों को पूरा करने और दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विदेशी मुद्रा रखने की जरुरत नहीं होगी।
किसी भी मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये उसका तरल होना और देश के वित्तीय बाज़ार का विकसित होना जरुरी है। भारतीय वित्तीय बाज़ार अभी भी विकास की प्रक्रिया में है और इसे वैश्विक वित्तीय बाज़ारों के साथ सामंजस्य बनाने और विनियामक वातावरण को बेहतर बनाने की जरुरत है, जिसके लिए काम किया जा रहा है।
कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि फिलहाल रुपए में अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार करने के क्रम में कुछ चुनौतियाँ जरूर हैं, लेकिन केंद्र सरकार के प्रयासों से जिस तरह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रुपए की स्वीकार्यता बढ़ रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि जल्द ही यह यूरो, पाउंड और डॉलर के साथ एक पंक्ति में खड़ा दिखेगा।
(फीचर इमेज साभार : Dainik Jagran)
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)