2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से दुनिया भर में भारत की धाक लगातार बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मंचों पर भारत की भागीदारी बढ़ी है। इसी का नतीजा है कि आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है।
एक मजबूत अर्थव्यवस्था, देश प्रथम वाली कूटनीति, सुरक्षा बलों की बढ़ती ताकत जैसे कारणों से विश्व अब भारत को एक नई शक्ति के रूप में देखने लगा है। जैसे-जैसे भारत की आर्थिक ताकत बढ़ रही है वैसे-वैसे अन्य देशों के साथ संबंधों में सुधार भी आ रहा है। भारत की मजबूत स्थिति का सकारात्मक प्रभाव अब अन्य क्षेत्रों में भी दिखने लगा है।
इसमें प्रमुख है भारतीय रुपये को मिल रही वैश्विक पहचान। भारतीय रुपये की बढ़ती ताकत का लोहा अब विदेशी अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं। जाने-माने अर्थशास्त्री नूरी रॉबिन के अनुसार भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डॉलर हो सकता है।
दरअसल मोदी सरकार 2047 तक भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर स्थापित करने की दूरगामी योजना पर काम कर रही है ताकि आजादी की 100वीं वर्षगांठ पर भारतीय रुपया वैश्विक मुद्रा बने और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता खत्म की जा सके।
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां इसी दूरगामी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बन रही हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में घोषित नई विदेश व्यापार नीति में रुपये में विदेश व्यापार करने संबंधी प्रावधान किए गए हैं। नई विदेश व्यापार नीति (2023) में इस तरह के बदलाव किए गए हैं कि घरेलू मुद्रा में विदेशी व्यापार संभव हो सके। इससे भारतीय रुपया नई छलांग लगाएगा और डॉलर के मुकाबले रुपये को मजबूती मिलेगी।
जुलाई 2022 में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक नई नीति घोषित की जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय कारोबार को रुपये में सेटलमेंट की अनुमति दी गई है। रिजर्व बैंक ने यह कदम रुपये में कारोबार को बढ़ावा देने और दुनिया भर में बसे भारतीय कारोबारियों की सुविधा बढ़ाने के लिए उठाया है। इसके लिए वोस्ट्रो एकाउंट स्थापित किया गया है।
इस एकाउंट में उन देशों में ग्राहकों के लिए ट्रांसफर, विड्रॉल और डिपॉजिट करना शामिल है जहां घरेलू बैंक की फिजिकल उपस्थिति नहीं है। संबंधित विदेशी बैंक घरेलू बैंक की ओर से ट्रेजरी सर्विस के साथ-साथ विदेशी मुद्रा लेनदेन निष्पादित कर सकता है।
विश्व के 18 देशों के साथ रुपये में व्यापार की सहमति बन चुकी है। रूस, श्रीलंका व मॉरीशस के साथ रुपये में व्यापार शुरू हो चुका है। इसके बाद सऊदी अरब के साथ रुपये में कारोबार शुरू किए जाने की योजना है। इन देशों के साथ रुपये में लेनदेन शुरू होना भारतीय करेंसी के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में एक अहम पड़ाव साबित होगा। रुपये के ग्लोबल करेंसी बनने से भारत के वैश्विक उद्देश्यों को साधने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक मजबूती मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि विश्व की अर्थव्यवस्था अमेरिकी डॉलर के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। दुनिया का 80 प्रतिशत व्यापार डॉलर में होता है। पूरे विश्व में व्यापार की मुद्रा, मुद्रा के भंडार और केंद्रीय बैंक के भंडार के रूप में डॉलर अमेरिका को कई लाभ प्रदान करता है। डॉलर की प्रभुता के कारण अमेरिका को चालू खाते के घाटे के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं रहती।
अमेरिका ईरान जैसे देशों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर के उपयोग से अपनी शक्ति का उपयोग करने की धमकी देता रहता है। स्पष्ट है डॉलर अमेरिकी दादागिरी का प्रतीक बन चुका है। यही कारण है कि दुनिया में कई करेंसी डॉलर की जगह लेकर अमेरिकी दादागिरी को खत्म करने की तैयारी में जुटी हैं। इसमें भारतीय रुपया भी अग्रणी रूप से शामिल है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)