2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भारत की सांस्कृतिक पहचान के पुनरुत्थान की दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार लगातार प्रयासरत है। इस सरकार से पहले तक वैश्विक स्तर पर भारत की छवि ऐसी थी कि यहाँ पर्यटन स्थलों की चर्चा में ताजमहल सबसे प्रमुख नाम होता था। ऐसा लगता था कि यदि ताजमहल न होता तो भारत पर्यटन के क्षेत्र में कहाँ ठहरता! वर्तमान सरकार ने इस भ्रम को तोड़कर भारतीय सांस्कृतिक विरासतों के प्रति लोगों में सजगता लाने का कार्य तेजी से किया है और कर रही है।
भारत को उत्सवों का देश माना जाता है। समाज में कितनी भी नकारात्मकता या अवसाद व्याप्त हो लेकिन यहाँ के लोगों की उत्सवधर्मिता उनमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती रही है। देव दीपावली तो प्रत्येक वर्ष आती रही है, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के जाने से इसकी भव्यता ने इसे अलग स्वरूप दिया।
देव दीपावली त्रिपुरासुर पर भगवान शिव के विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यही कारण है कि इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा या त्रिपुरोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। देव दीपावली के दिन चंद्रमा को देखने का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन भक्तगण काशी में घाट पर दीप प्रज्ज्वलित कर गंगा पूजन व आरती करते हैं।
इस वर्ष काशी में घाट पर देव दीपावली के आयोजन में स्वयं प्रधानमंत्री का जाना देव दीपावली के इस आयोजन को और भव्य तथा व्यापक रूप दे गया। बेंजामिन बार्बर ने 1992 में एक आलेख में लिखा कि जहां वामपंथ का पतन होगा वहाँ के लोग अपनी सीमाओं, अपनी पहचान तथा अपनी संस्कृतियों एवं विचारधाराओं को पुनः परिभाषित करने का प्रयास करेंगे।
2014 में सत्ता में आने के बाद से ही भारत की सांस्कृतिक पहचान के पुनरुत्थान के क्रम में नरेंद्र मोदी सरकार लगातार प्रयासरत है। इस सरकार से पहले तक वैश्विक स्तर पर भारत की छवि ऐसी थी कि यहाँ पर्यटन स्थलों की चर्चा में ताजमहल सबसे प्रमुख नाम होता था। ऐसा लगता था कि यदि ताजमहल न होता तो भारत पर्यटन के क्षेत्र में कहाँ ठहरता!
वर्तमान सरकार ने इस भ्रम को तोड़कर भारतीय सांस्कृतिक विरासतों के प्रति लोगों में सजगता लाने का कार्य तेजी से किया है और कर रही है। इस सरकार के आने के बाद से भारत अब अपनी सांस्कृतिक विरासतों को संजोने के हरसंभव प्रयास कर रहा है। आज जो पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहा है, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से ही संभव हो सका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में न केवल केंद्र सरकार अपितु भाजपा की राज्य सरकारें भी इस दिशा में लगातार काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विशेष रूप से भारतीय सांस्कृतिक पहचान को बल देने के लिए काम कर रहे हैं। फिर चाहे वह अयोध्या में दीपावली के अवसर पर भव्य दीपोत्सव कार्यक्रम हो. त्रेतायुग को जीवंत करना हो या उत्तर प्रदेश में स्थित सांस्कृतिक धरोहरों के सुंदरीकरण का कार्य हो।
ऐसे ही अयोध्या मे राम मंदिर का निर्माण, काशी में देव दीपावली का भव्य आयोजन, प्रयागराज में कुम्भ मेले का भव्य आयोजन, केदारनाथ मंदिर का नवनिर्माण, अयोध्या में दीपावली के अवसर पर भव्य दीपोत्सव का आयोजन भी इसके उदाहरण हैं।
साथ ही, अनेक सांस्कृतिक आयोजनों में देश के शीर्ष नेतृत्व के स्वयं सम्मिलित होने से कार्यक्रम के स्वरूप में न सिर्फ भव्यता आई अपितु उस आयोजन का संदेश भी व्यापक हो गया। चाहे वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो, काशी में देव दीपावली हो, प्रयागराज में भव्य कुम्भ हो या जेएनयू में स्वामी विवेकानंद की मूर्ति की स्थापना हो। ऐसे अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री स्वयं सम्मिलित होते हैं और उसको अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर ले जाते हैं।
इन प्रयासों से हमारी सांस्कृतिक पहचान एवं विरासत सिर्फ पुनर्स्थापित ही नहीं हो रही है, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित भी हो रही है। आज दुनिया भारत की मूलभूत सांस्कृतिक पहचान व परम्पराओं से प्रभावित है। यह सब वर्तमान भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से ही संभव हुआ है। अभी इस यात्रा को बहुत आगे तक जाना है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)