एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खासियत यह है कि यह एक बार में 72 मिसाइल दाग सकता है और 36 परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों को एक साथ नष्ट कर सकता है। गौर करें तो यह सिस्टम एस-300 का अपडेटेड वर्जन है जो 400 किमी के दायरे में लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को खत्म कर देगा। सच कहें तो इस समझौते से भारत की रक्षा पंक्ति मजबूत हुई है और इस मोर्चे पर भी वो चीन के बराबर खड़ा हो गया है।
अमेरिका की तमाम रोकटोक के बावजूद भी रुस ने भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति कर रेखांकित कर दिया है कि दोनों देश सदाबहार साथी हैं और वे किसी के दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। अमेरिका की कोशिश थी कि रुस पर दबाव डालकर भारत को एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम दिए जाने से रोक दिया जाए। लेकिन उसकी रणनीति-कूटनीति काम नहीं आयी। ऐसा इसलिए कि भारत ने पहले ही एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खरीद को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की जरुरत बताकर स्पष्ट कर दिया था कि उसके लिए देश की सुरक्षा सर्वोपरि है और वह किसी के दबाव में आने वाला नहीं है।
गौर करें तो अमेरिकी समकक्ष माइक पोम्पियों के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दो टूक कहा था कि भारत वही करेगा, जो उसके हित में होगा। उन्होंने एस-400 को लेकर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट यानी काटसा के तहत प्रतिबंधों के सवाल पर भी अपना नजरिया स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारत का रुस के साथ संबंधों का लंबा इतिहास रहा है जिसकी वह अनदेखी नहीं कर सकता।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका एस-400 रक्षा समझौते के खिलाफ है और वह रुस पर काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरिज थ्रू सैंक्शन एक्ट लगा रखा है जिसके जरिए वह रुस के रक्षा क्षेत्र में बाहरी मुद्रा को आने से रोकना चाहता है। लेकिन भारत और रुस दोनों देशों ने इसकी परवाह किए बिना ही समझौते को अमलीजामा पहनाकर दोस्ती के रंग को पहले से भी अधिक गाढ़ा और चटक कर दिया है।
यहां जानना आवश्यक है कि एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की खासियत यह है कि यह एक बार में 72 मिसाइल दाग सकता है और 36 परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों को एक साथ नष्ट कर सकता है। गौर करें तो यह सिस्टम एस-300 का अपडेटेड वर्जन है जो 400 किमी के दायरे में लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को खत्म कर देगा। सच कहें तो इस समझौते से भारत की रक्षा पंक्ति मजबूत हुई है और वो चीन के बराबर खड़ा हो गया है।
वैसे भी रुस भारत का परंपरागत भरोसेमंद मित्र है और रुस ने भी मौके दर मौके भारत के साथ कंधा जोड़ने में हिचकिचाहट नहीं दिखायी है। रक्षा समझौतों के अलावा दोनों देश रेलवे, फर्टिलाइजर, अतंर्राष्ट्रीय संस्थानों में सहयोग, आतंकवाद व नशीली पदार्थों के खिलाफ साझा जंग और सौर व नाभिकीय उर्जा का शांतिपूर्वक उपयोग जैसे अन्य मसलों पर साथ-साथ हैं। इसरो व रुसी संघीय अंतरिक्ष संगठनों के बीच गगनयान को लेकर भी समझौता हो चुका है। रिश्तों की प्रगाढ़ता और मोदी-पुतिन केमेस्ट्री की चमक का ही असर है कि दोनों देश एक स्वर में आतंकवाद के विरुद्ध मिलकर लड़ने की प्रतिबद्धता पर कायम हैं।
रुसी राष्ट्रपति पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि आतंकवाद से निपटने के लिए जो भी ताकत हो उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मतलब साफ है कि पाकिस्तान संरक्षित व पोषित आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में रुस भारत के साथ है। याद होगा नवंबर 2001 में दोनों देशों ने मास्को घोषणा पत्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने का संकल्प व्यक्त किया और दिसंबर 2002 में भारत की यात्रा पर आए रुसी राष्ट्रपति पुतिन ने हस्ताक्षरित दस्तावेजों में विशेषकर सीमा पर आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण और पाकिस्तान में आतंकवाद की अवसंरचना को ध्वस्त करने का समर्थन किया।
इसके अलावा रुस ‘संयुक्त राष्ट्र संघ में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एवं व्यापक कन्वेंशन’ पर भारत के मसौदे का समर्थन कर चुका है। निःसंदेह आतंकवाद पर दोनों देशों के समान दृष्टिकोण से दक्षिण एशिया में शांति, सहयोग और आर्थिक विकास का वातावरण निर्मित करने के साथ आतंकवाद से लड़ने में मदद मिलेगी। ऐसे में आवश्यक है कि अमेरिका एस-400 समझौते पर आंखे तरेरने के बजाए भारत की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अपने नजरिए में बदलाव लाए। अगर अमेरिका की रणनीति काटसा के तहत रुस के रक्षा क्षेत्र में बाहरी मुद्रा को आने से रोकना है तो यह उसकी समस्या है, भारत की नहीं।
भारत चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों से घिरा हुआ है और अगर रुस भारत की रक्षा जरुरतों को पूरा करने में समर्थ है तो अमेरिका को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उचित होगा कि अमेरिका रुस के साथ भारत के दशकों पुराने संबंधों का सम्मान करे। वैसे भी रुस इस समय आर्थिक मोर्चे पर भयावह स्थिति का सामना कर रहा है। मित्र होने के नाते भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वह रुस का साथ दे। रुस से निकटता बढ़ाने से भारत को भी यूरोप और पश्चिम एशिया में द्विपक्षीय कारोबार और निवेश की भरपायी करने में मदद मिलेगी।
मौजूदा समय में रुस के समक्ष नियंत्रित अर्थव्यवस्था को बाजार अर्थव्यवस्था में बदलने की चुनौती के साथ वैश्विक और सामरिक मोर्चे पर नैतिक समर्थन की भी दरकार है। रुस यूक्रेन और सीरिया मसले पर अमेरिका और यूरोपिय देशों के निशाने पर है। ऐसे में वह सामरिक व कारोबारी समझौते के बरक्स अगर भारत के साथ अपनी विदेशनीति और व्यापारनीति को पुनर्परिभाषित कर रहा है तो यह भारत की सफल कूटनीति का ही नतीजा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)