भारत का एससीओ का सदस्य बनना निश्चित रूप से भारत की एक कूटनीतिक जीत है। आज की तारीख में मुख्यधारा से अलग-थलग रहकर वैश्विक स्तर पर कोई भी देश अपनी पहचान नहीं बना सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एससीओ का सदस्य बनने के बाद पाकिस्तान को कठघरे में खड़े करने के मौके भी भारत को मिल सकते हैं। बेशक, वैश्विक स्तर पर धाक जमाने के लिये आज आर्थिक महाशक्ति बनना बहुत जरूरी है।
बेल्ट एंड रोड फोरम का बहिष्कार करने के बाद शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भारत का शामिल होना कूटनीतिक एवं कारोबारी दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर इस संगठन का सामरिक व कारोबारी महत्व है। इस संगठन का उद्देश्य चरमपंथी ताकतों को नेस्तनाबूत करने के साथ-साथ सदस्य देशों के बीच कारोबारी रिश्ते मजबूत करना है। भारत मौजूदा समय में मुख्य तौर पर आतंकवाद और पूँजी की कमी की समस्या से जूझ रहा है।
जाहिर है, अब भारत दूसरे सदस्य देशों की मदद से चरमपंथी ताकतों का सामना करने के साथ-साथ पूँजी की कमी को भी दूर कर सकता है। देखा जाये तो इस संगठन में शामिल होने से भारत के लिये मध्य एशियाई देशों के कारोबारी दरवाजे भी खुल गये हैं। कजाकिस्तान के साथ तो पहले से ही भारत के कारोबारी संबंध हैं। भारत कजाकिस्तान से यूरेनियम आयात करता है।
चीन इस संगठन का सबसे महत्वपूर्ण देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वस्तुस्थिति से वाकिफ हैं। इसलिए, कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में अपनी सदस्यता एवं परस्पर कारोबारी मसलों पर 9 जून, 2017 को चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ बातचीत की। इसमें दो राय नहीं है कि कुछ मामलों में भारत के चीन के साथ कड़वे रिश्ते हैं। जैसे, भारत चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करे, लेकिन चीन ऐसा नहीं चाहता है। भारत एनएसजी का सदस्य नहीं बने, इसके लिये भी चीन पुरजोर कोशिश कर रहा है।
बहरहाल, दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि दोनों देशों के बीच के मतभेदों को कभी भी विवाद नहीं बनने दिया जायेगा। दोनों देशों के बीच रक्षा सामानों के आदान-प्रदान, दूसरे जरूरी उत्पादों का कारोबार, निवेश, द्विपक्षीय सहयोग से जुड़े तमाम पहलुओं, बांग्लादेश, भारत म्यांमार कॉरिडोर (बीसीआईएम) सहित अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा हुई।
हालाँकि, भारत द्वारा बीजिंग में आयोजित बेल्ट एंड रोड फोरम का पिछले महीने किये गये बहिष्कार पर कोई बातचीत नहीं हुई। सनद रहे, बेल्ट एंड रोड पहल के तहत बनने वाले 50 अरब डॉलर के चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की मुखालफत करते हुए भारत ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया था, क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित एवं बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। इस मुद्दे पर चीन के सकारात्मक रुख से साफ हो गया कि चीन भारत के साथ कारोबारी रिश्ते को हमेशा बेहतर बनाये रखना चाहता है, क्योंकि वह जानता है कि भारतीय बाजार की अनदेखी करना उसके लिये बहुत ज्यादा नुकसानदायक हो सकता है।
शी ने एससीओ का आधिकारिक सदस्य बनने पर भारत को बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एससीओ का सदस्यता दिलाने में चीन के समर्थन के लिये आभार व्यक्त किया है। वर्तमान समय में विश्व सामरिक व आर्थिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। चूँकि, विश्व बहुध्रुवीय बन गया है, लिहाजा इसके महत्वपूर्ण देशों के बीच मधुर संबंध बना रहना जरूरी है। माना जा रहा है कि भारत और चीन के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बने रहने से विश्व में कुछ हद तक स्थिरता का माहौल बना रहेगा।
एससीओ का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। अप्रैल, 1996 में चीन, रूस, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने चरमपंथी ताकतों का सामना करने के लिये आपस में मिलकर “शंघाई फ़ाइव” नाम से एक संगठन बनाया था। पुनश्च: जून 2001 में चीन, रूस एवं 4 मध्य एशियाई देश, मसलन, कज़ाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़बेकिस्तान ने मिलकर “शंघाई सहयोग संगठन” का निर्माण किया। नये संगठन का फ़लक व मकसद पुराने संगठन से कहीं ज्यादा व्यापक था।
नये संगठन का उद्देश्य चरमपंथी ताकतों से निपटने के अलावा सदस्य देशों के बीच व्यापार, निवेश आदि को बढ़ावा देना था। निर्माण के वक्त संगठन के इन 6 सदस्य देशों का भूभाग यूरोशिया का 60 प्रतिशत था, जहाँ दुनिया की चौथाई आबादी निवास करती थी। आज इस संगठन के फ़लक में और भी विस्तार हुआ है और यह विश्व की 42 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
कालांतर में इस संगठन के कार्यक्षेत्र का और भी विस्तार हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा का पर्यवेक्षक बनने के साथ-साथ कुछ सरोकारों को पूरा करने के लिये यह यूरोपीय संघ, आसियान, कॉमनवेल्थ, इस्लामिक सहयोग संगठन आदि से भी जुड़ गया। इस संगठन के विस्तार के क्रम में वर्ष, 2005 में कज़ाकस्तान के अस्ताना में हुए सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार हिस्सा लिया।
भारत ने सितंबर 2014 में एससीओ की सदस्यता के लिए आवेदन दिया और वर्ष 2015 में भारत और पाकिस्तान को इस संगठन में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया गया। फिर वर्ष 2017 में कजाकिस्तान के अस्ताना में ही भारत एवं पाकिस्तान को इस संगठन का औपचारिक रूप से सदस्य बनाया गया।
कहा जा सकता है कि भारत का एससीओ का सदस्य बनना निश्चित रूप से भारत की एक कूटनीतिक जीत है। आज की तारीख में मुख्यधारा से अलग-थलग रहकर वैश्विक स्तर पर कोई भी देश अपनी पहचान नहीं बना सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एससीओ का सदस्य बनने के बाद पाकिस्तान को कठघरे में खड़े करने के मौके भी भारत को मिल सकते हैं। बेशक, वैश्विक स्तर पर धाक जमाने के लिये आज आर्थिक महाशक्ति बनना बहुत जरूरी है।
चूँकि, इस संगठन से जुड़े देश विश्व की 42 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, अस्तु, भारत को अपने कारोबार के विस्तार का एक अच्छा अवसर मिला है। हाँ, चीन के साथ कारोबार करने में भारत को जरूर सतर्कता बरतनी होगी, क्योंकि फिलवक्त चीन का भारत के बाज़ारों पर कब्जा है। देवी-देवता से लेकर जरूरत की लगभग हर चीज हम चाइनीज इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए, भारत को “समान आधार” पर चीन के साथ कारोबार करने की कोशिश करनी होगी।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। स्तंभकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)