मोबाइल निर्यात बाजार में भारत की दस्‍तक

अब तक अग्रणी मोबाइल आयातक के रूप में शुमार भारत जल्‍दी ही मोबाइल निर्यातक की श्रेणी आ जाए तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। दरअसल मोदी सरकार 370 अरब डॉलर के वैश्‍विक मोबाइल बाजार में चीन-वियतनाम को टक्‍कर देने की रणनीति पर काम कर रही है। फिलहाल 2025 तक सात प्रतिशत हिस्‍सेदारी का लक्ष्‍य रखा गया है लेकिन यदि सरकारी कोशिशें परवान चढ़ीं तो इससे ज्‍यादा कामयाबी मिलनी तय है।

देश में हुई संचार क्रांति का श्रेय लेने वाली कांग्रेस पार्टी भूलकर भी यह जिक्र नहीं करती कि यह क्रांति आयातित संचार उपकरणों के बल हुई थी। कांग्रेस पार्टी यह भी नहीं बताती कि संचार उपकरणों के आयात में सत्‍ता पक्ष से जुड़े लोगों ने कमीशन के रूप में मोटी कमाई की थी।

हर हाथ तक मोबाइल पहुंचाने का दावा करने वाली यूपीए सरकार के अंतिम वर्ष (2014) में देश में महज दो मोबाइल विनिर्माण इकाइयां थीं। मोदी सरकार के प्रयासों से महज छह वर्षों में देश में मोबाइल मोबाइल विनिर्माण इकाइयों की संख्‍या बढ़कर 300 से अधिक हो गई है और भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश बन चुका है।

सांकेतिक चित्र (साभार : ABC News)

प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने मोबाइल हैंडसेट-उपकरणों के चिंताजनक आयात और कमीशनखोरी दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया। नीतिगत बदलाव, कच्‍चे माल की उपलब्‍धता, घरेलू उद्यमियों को प्रोत्‍साहन जैसे उपाय किए गए जिससे मोबाइल विनिर्माण में तेजी आई। प्रधानमंत्री के प्रयासों की सफलता की पुष्‍टि खुद आंकड़े करते हैं। जहां 2014 में भारत में मात्र छह करोड़ मोबाइल फोन बनते थे, वहीं 2019 में यह संख्‍या बढ़कर 30 करोड़ तक पहुंच गई। 

मूल्‍य की दृष्‍टि से देखें तो 2014 में जहां भारत में 18,900 करोड़ रूपये के मोबाइल बनते थे, वहीं 2019 में यह बढ़कर 1,81,000 करोड़ रूपये हो गया। हालांकि उत्‍पादन में इस भारी-भरकम बढ़ोत्‍तरी के बावजूद भारत अब भी मोबाइल हैंडसेट और दूसरे उपकरणों का आयात करता है।

ऐसे में अब मोदी सरकार मोबाइल फोन निर्माण में भारत को दुनिया में पहला स्‍थान दिलाने के साथसाथ भारत को अग्रणी मोबाइल निर्यातक बनाने की योजना पर काम कर रही है। इसके लिए प्रोडक्‍शन लिंक्‍ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू की गई है। इस योजना के लिए 40,000 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। इसके तहत वैश्‍विक कंपनियों को पांच वर्ष की अवधि के दौरान चार से छह प्रतिशत तक प्रोत्‍साहन मिलेगा लेकिन उन्‍हें तीन शर्तें पूरी होगी। 

सबसे पहले इन कंपनियों को केवल उन्‍हीं मोबाइल हैंडसेट का निर्यात करना होगा जिनकी कीमत 200 डॉलर होगी। दूसरी शर्त के तहत उन्‍हें पांच वर्ष की अवधि के दौरान 1000 करोड़ रूपये निवेश करना होगा। तीसरी शर्त यह होगी कि कंपनियों को पहले वर्ष 4000 करोड़ रूपये मूल्‍य के उत्‍पादों का निर्यात करना होगा और पांचवे वर्ष तक यह आंकड़ा बढ़ाकर 25,000 करोड़ रूपये करना होगा। इसी तरह की शर्तें घरेलू विनिर्माताओं के लिए भी लागू की गई हैं। 

सांकेतिक चित्र (साभार : Dataquest)

इस समय वैश्‍विक मोबाइल उपकरण निर्यात बाजार में भारत की हिस्‍सेदारी 0.5 प्रतिशत (दो अरब डॉलर) है। इस बाजार में चीन और वियतनाम का दबदबा है जिनकी हिस्‍सेदारी 85 प्रतिशत है। ऐप्पल, सैमसंग और हुआवे इन तीन कंपनियों के उत्‍पादों की कुल निर्यात उत्‍पादन में हिस्‍सेदारी 75 प्रतिशत तक है।

पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण फैलने के लिए चीन को दोषी मान रही है। यही कारण है कि दुनिया भर की कंपनियां चीन छोड़कर भारत में अपनी विनिर्माण इकाई लगाने की योजना पर काम कर रही हैं। ऐसे में सरकार की पीएलआई योजना की सफलता में कोई संदेह नहीं है। 

देश में बेरोजगारी, व्‍यापार घाटा आदि के लिए आयात केंद्रित रणनीति ही जिम्‍मेदार रही है। अब मोदी सरकार देश में परंपरागत से लेकर आधुनिक उद्यमों के पुनर्जीवन और प्रोत्‍साहन में जुटी है। इससे न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्‍कि भारत दुनिया का अग्रणी निर्यातक बनकर उभरेगा।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)