वित्त वर्ष 2021-22 की अवधि में खनन क्षेत्र में 14.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है। बिजली क्षेत्र में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 8.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें 1.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। निर्माण क्षेत्र में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 10.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें 8.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।
सात जनवरी 2022 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुमानित आंकड़ा जारी किया, जिसके अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की जीडीपी में 9.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है। केंद्र सरकार कयास लगा रही है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन सकती है।
एनएसओ द्वारा अनुमानित आंकड़े भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमानित आंकड़ों से कम है। रिजर्व बैंक ने दिसंबर 2021 की मौद्रिक समीक्षा में 9.5 प्रतिशत की दर से जीडीपी में वृद्धि होने का अनुमान लगाया था। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी 20.1 प्रतिशत की दर से और दूसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी थी, जबकि सकल मूल्य वर्धित या ग्रॉस वैल्यू ऐडेड (जीवीए) के वित्त वर्ष 2021-22 में 8.6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में इसमें 6.2 प्रतिशत का संकुचन आया था।
वित्त वर्ष 2020-21 में 3 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में नॉमिनल जीडीपी के 17.6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने का अनुमान है। उम्मीद है कि नॉमिनल जीडीपी को वर्ष 2022 में 1 फरवरी को पेश किये जाने वाले बजट में जीडीपी गणना का आधार बनाया जायेगा।
वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कृषि क्षेत्र 3.9 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकती है। वित्त वर्ष 2020-21 में यह 3.6 प्रतिशत की दर से आगे बढी थी. विनिर्माण क्षेत्र वित्त वर्ष 2021-22 में 12.5 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सकता है।
वित्त वर्ष 2021-22 की अवधि में खनन क्षेत्र में 14.3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है। बिजली क्षेत्र में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 8.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें 1.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी। निर्माण क्षेत्र में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 10.7 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान इसमें 8.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।
जीडीपी, अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को मापने का पैमाना है। इसके तहत देश के भीतर एक निश्चित अवधि के दौरान सभी वस्तु एवं सेवा का क्या मूल्य रहा था, इसका पता लगाया जाता है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां उत्पादन कर रही हैं उसे भी जीडीपी की गणना में शामिल किया जाता है। आमतौर पर जब अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य ठीक होता है तो बेरोजगारी का स्तर कम होता है अर्थात कम लोग बेरोजगार होते हैं।
जीडीपी दो तरह की होती है। रियल जीडीपी, जिसे जीडीपी भी कहते हैं और नॉमिनल जीडीपी। रियल जीडीपी में वस्तु और सेवा के मूल्य की गणना आधार वर्ष की कीमत या स्थिर मूल्य पर की जाती है। अभी जीडीपी की गणना का आधार वर्ष 2011-12 है। आधार वर्ष में वस्तु एवं सेवा की जो कीमत थी। उसके आधार पर वस्तु एवं सेवा के मूल्य की गणना की जाती है, जबकि नॉमिनल जीडीपी की गणना मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर की जाती है।
जीडीपी की गणना करने के लिए जीडीपी=सी+जी+आई+एनएक्स विधि या सूत्र का प्रयोग किया जाता है। यहाँ “सी” का अर्थ निजी खपत है, जबकि “जी” का अर्थ सरकारी खर्च, “आई” का अर्थ निवेश और “एनएक्स” का अर्थ निवल निर्यात है।
जीवीए से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल सेवा या उत्पादन और आय का पता चलता है। यह बताता है कि एक तय अवधि में कच्चे माल की लागत को कम करने के बाद कितने रुपए की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हुआ। इससे यह भी पता चलता है कि किस क्षेत्र, उद्योग या क्षेत्र में कितना उत्पादन हुआ। दूसरे शब्दों में कहें तो जीडीपी में सब्सिडी और कर को कम करने के बाद जो राशि बचती है उसे जीवीए कहते हैं।
एक तरफ सरकार को जीडीपी में बेहतरी आने की उम्मीद है तो दूसरी तरफ निर्यात में भी विगत 9 महीनों में शानदार वृद्धि दर्ज की गई है। कोरोना महामारी के बावजूद पहली बार भारत ने दिसंबर, 2021 में 37.29 अरब डॉलर का निर्यात किया है।
सालाना आधार पर इसमें 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। दिसंबर, 2020 में भारत ने 27.22 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इस तरह, महज 9 महीनों में भारत का निर्यात 300 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया। निर्यात में आई तेजी को देखकर कयास लगाये जा रहे हैं कि भारत वित्त वर्ष 2021-22 में 400 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल कर लेगा। अभी लगभग हर क्षेत्र में निर्यात में वृद्धि देखी जा रही है।
क्षेत्रवार निर्यात को देखें तो इंजीनियरिंग गुड्स में 37 प्रतिशत, जेम्स व ज्वैलरी में 16 प्रतिशत, रेडीमेड कपड़ों में 22 प्रतिशत और इलेक्ट्रॉनिक्स में 33 प्रतिशत निर्यात में बढ़ोतरी हुई है।
अप्रैल से दिसंबर 2021 के दौरान भारत ने 299.74 अरब डॉलर का निर्यात किया, जो अप्रैल-दिसंबर 2020 में किये गए 201.37 अरब डॉलर के निर्यात से 48.85 प्रतिशत अधिक है। अप्रैल से दिसंबर 2019 के दौरान यह 238.27 अरब डॉलर था। अगर हम इस अवधि से इसकी तुलना करेंगे तो इसमें 25.80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
दिसंबर 2021 में भारत का आयात 59.27 अरब डॉलर रहा, जो दिसंबर 2020 में 42.93 अरब डॉलर था. इस तरह, इसमें 38.06 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। दिसंबर 2019 में यह 39.59 अरब डॉलर था। इससे तुलना करने पर इसमें 49.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अप्रैल से दिसंबर 2021 में भारत का आयात 443.71 अरब डॉलर था, जो अप्रैल से दिसंबर 2020 में 262.13 अरब डॉलर था। इससे तुलना करने पर इसमें 69.27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अप्रैल से दिसंबर 2019 में आयात 364.18 अरब डॉलर किया गया था। इस अवधि से तुलना करने पर आयात में 21.84 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
दिसंबर 2021 में व्यापार घाटा 21.99 अरब डॉलर रहा, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2021 के दौरान यह 143.97 अरब डॉलर रहा था। आंकड़ों से साफ़ है इन 9 महीनों की अवधि में निर्यात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होने से व्यापार घाटे में महत्वपूर्ण कमी आई है। इससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होगी और विकासात्मक कार्यों में तेजी आयेगी।
कहा जा सकता है कि ओमिक्रोन के बढ़ते मामलों के बीच जीडीपी के गुलाबी होने का अनुमान और निर्यात में आई तेजी अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है। ओमिक्रोन के मामले भले ही बढ़ रहे हैं, लेकिन इससे मरने वालों की संख्या महामारी की दूसरी लहर से बहुत ही कम है। फिर भी, इसमें दो राय नहीं है कि ओमिक्रोन की वजह से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, क्योंकि कोरोना के नियमों का पालन करने की वजह से उत्पादन या अन्य कार्य पूरी क्षमता से नहीं किये जा रहे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)