जिस यान से यह प्रक्षेपण किया गया वह कुल 643 टन वजनी और 43.5 मीटर लंबा है। इसे इसरो का सबसे भारी प्रक्षेपण यान कहा जाता है। यह अब तक पांच सफल उड़ानें संपन्न कर चुका है। चंद्रयान -2 मिशन इसमें मुख्य रूप से शामिल है। अपने दूसरे लांच पैड से ब्रिटिश कंपनी वन वेब के 36 उपग्रहों को लेकर एक बार फिर इसने अंतरिक्ष के लिए सफल व सुरक्षित उड़ान भरी है। ये 36 उपग्रह 5805 टन वजनी थे।
देश के लिए एक और गर्व एवं उपलब्धि का प्रसंग हाल ही में सामने आया है। सामरिक ताकतों के बढ़ते क्रम के समानांतर ही अब अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी स्वदेशी पैठ पुख्ता हो रही है। इसी तारतम्य में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बीते रविवार को सबसे भारी प्रक्षेपण यान से 36 वनवेब इंटरनेट उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है। इसरो के 43.5 मीटर लंबे राकेट के जरिये चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लांच पैड से रविवार सुबह नौ बजे यह प्रक्षेपण पूरा हुआ।
खास बात यह है कि यह लॉन्चिंग इसरो ने स्वयं के शोध या मिशन के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश कंपनी के लिए आउटसोर्स पर की है। वनवेब ग्रुप कंपनी ब्रिटेन की एक कंपनी है जिसके लिए भारत के इसरो ने यह काम किया। कहा जा सकता है कि अंतरिक्ष व्यापार की दिशा में अब इसरो ने अपनी पैठ मजबूत कर ली है।
जिस यान से यह ताजा प्रक्षेपण किया गया वह कुल 643 टन वजनी और 43.5 मीटर लंबा है। इसे इसरो का सबसे भारी प्रक्षेपण यान कहा जाता है। यह अब तक पांच सफल उड़ानें संपन्न कर चुका है। चंद्रयान -2 मिशन इसमें मुख्य रूप से शामिल है। अपने दूसरे लांच पैड से ब्रिटिश कंपनी वन वेब के 36 उपग्रहों को लेकर एक बार फिर इसने अंतरिक्ष के लिए सफल व सुरक्षित उड़ान भरी है। ये 36 उपग्रह 5805 टन वजनी थे।
इस प्रक्षेपण के बारे में थोड़ा विस्तार में जाएं तो जानिये कि ब्रिटेन की नेटवर्क एक्सेस एसोसिएट्स लिमिटेड (वनवेब ग्रुप कंपनी) ने पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में 72 उपग्रहों को स्थापित करने के लिए इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआइएल) के साथ एक अनुबंध किया था। इसके तहत पहले क्रम में बीते साल 23 अक्टूबर 2022 को वनवेब ग्रुप कंपनी के ही लिए पहले 36 उपग्रह प्रक्षेपित किए गए थे। शेष 36 अब लॉन्च किए गए।
वनवेब के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था कि इसरो की वाणिज्यिक शाखा, न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के लॉन्च शुल्क के लिए दो अलग-अलग चरणों में 72 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए वनवेब के साथ एक बकायदा करार साइन किया था।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मिशन को एलवीएम3-एम3/वनवेब इंडिया-2 नाम दिया था। एलवीएम 3 ने अब तक चंद्रयान-2 मिशन सहित लगातार पांच सफल मिशन संचालित किया है। वनवेब को भारत की दूरसंचार प्रमुख भारती समूह का समर्थन प्राप्त है। इसके पास अब तक कक्षा में 582 उपग्रह थे, अब यह संख्या 618 तक हो चुकी है।
इस सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर है और वैश्विक वाणिज्यिक लांच सेवा प्रदाता के रूप में भारत की अग्रणी भूमिका को मजबूती से दर्शाती है। इससे पहले भी कई बार इसरो अन्य देशों के लिए सफल लॉन्चिंग करता रहा है। इसरो के प्रति विदेशों का यह विश्वास उसकी शत-प्रतिशत सफलता और अपेक्षाकृत सस्ती सेवा के कारण ही बना हुआ है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने गत 15 फरवरी 2017 को कुल 104 उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करके एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था। ये उपग्रह अनेक देशों के थे। पीएसएलवी की यह कुल 39वीं और 37वीं सफल उड़ान थी। अभी तक किसी भी देश ने इतनी संख्या में उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण नहीं किया है।
पिछला रिकॉर्ड रूस के नाम था। रूस ने नेपर रॉकेट से 2014 में एक साथ 37 सैटेलाइट लांच कर वर्ष 2013 में मिनटॉर 1 से 29 सैटेलाइट एक साथ छोड़ने के अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रिकॉर्ड को तोड़ा था। इसरो भी 2016 में 20 उपग्रह एक साथ लॉन्च कर चुका है।
चंद्रयान 2 के हादसे के बाद जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी सहित पूरा देश इसरो के साथ उठ खड़ा हुआ था, उससे इसरो को बहुत संबल मिला। यही कारण है कि चंद्रयान 2 की आंशिक सफलता के बावजूद इसरो अपने आगामी मिशनों, लक्ष्यों से डिगा नहीं, विचलित नहीं हुआ और शक्ति जुटाकर फिर से नए अनुसंधानों की दिशा में जुट गया।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने एलवीएम3-एम3-वनवेब इंडिया-2 के सफल प्रक्षेपण पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि अब इस सफलता के बाद मिले उत्साह से महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन को गति मिलेगी। गगनयान मानव मिशन के तहत तीन के लिए तीन अंतरिक्ष यात्री 400 किलोमीटर ऊंची कक्षा में भेजे जाएंगे। वे सुरक्षित वापस भारतीय जल सीमा में उतरेंगे।
इस अहम मिशन को अगले वर्ष की सितंबर तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह निश्चित है कि इसरो अपने श्रम, दूरदर्शिता, मजबूत इरादों और अचूक कौशल के चलते इस बड़े मिशन में भी सफलता प्राप्त करेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)