भारत-चीन सीमा से लगते इलाकों में जो हालिया विवाद है उसका कारण भारत द्वारा सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का जाल बिछाना है। यदि 1962 में मिली करारी हार से सबक सीखते हुए कांग्रेसी सरकारों ने तभी से सीमावर्ती इलाकों का विकास किया होता तो आज यह स्थिति न पैदा होती। दुर्भाग्यवश आज भी कांग्रेस पार्टी इस संवेदनशील मसले पर मोदी सरकार का साथ नहीं दे रही है।
डोकलाम विवाद के बाद पहली बार भारत और चीन की सेनाएं पैगोंग शो झील, गल्वान घाटी और देमचौक में आमने-सामने हैं। पांच मई को पूर्वी लद्दाख में 250 भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। बाद में दोनों देश के सैनिक पीछे हट गए।
इसके बाद 9 मई को सिक्किम में इसी प्रकार की घटना दुहराई गई। इस तनाव के बावजूद भारत लद्दाख से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक चीन से लगती सीमा क्षेत्र में विकास कार्य न रोकने पर अड़ा है। भारत का यही स्टैंड चीन को चिंतित किए हुए है।
देखा जाए तो आज जो स्थिति बनी है वह कांग्रेसी सरकारों की लंबे अरसे की उपेक्षा का नतीजा है। इसी को देखते हुए 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने चीन सीमा से लगते इलाकों में सड़क और दूसरी आधारभूत परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी।
मोदी सरकार इस इलाके सुरंगों के जरिए सड़क निर्माण करा रही है ताकि मौसम की परवाह किए बिना सीमा पर सुरक्षा मजबूत की जा सके। तभी से चीन बौखलाया हुआ है और समय-समय पर युद्ध जैसी स्थिति पैदा करता रहता है। गौरतलब है कि 2017 में डोकलाम को लेकर भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक गतिरोध बना रहा था।
भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर विवाद है। चीन अरूणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है जबकि भारत का स्पष्ट कहना है कि अरूणाचल प्रदेश उसका अभिन्न हिस्सा है। इतना ही नहीं, चीन लद्दाख के कई हिस्सों पर अपना हक जताता है।
भारत-चीन सीमा पर सबसे बड़ी समस्या कनेक्टीविटी की रही है। कठिन भौगोलिक परिस्थिति और मौसम की प्रतिकूलता सबसे बड़ी चुनौती है। सामरिक महत्व का होने और 1962 के युद्ध में चीन के हाथों मिली शिकस्त के बावजूद कांग्रेसी सरकारों ने सीमावर्ती इलाकों में सुरंग आधारित बारहमासी सड़कों के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया।
दूसरी ओर चीन भारतीय सीमा के नजदीक तक सड़क और दूसरी आधारभूत संरचना का निर्माण करता रहा। गौरतलब है कि 1962 के युद्ध से ठीक पहले भारतीय सेना ने चीन से लगती सीमा पर बुनियादी सुविधाएं विकसित करने के लिए नेहरू सरकार से एक करोड़ रूपये मांगे थे लेकिन पंचशील के नशे में डूबी नेहरू सरकार ने पैसे नहीं दिए। नतीजा पूरी दुनिया देख चुकी है।
दूसरी ओर मोदी सरकार दुर्गम इलाकों में प्राथमिकता के आधार पर सड़क निर्माण करा रही है। उदाहरण के लिए 2017 में डोकलाम विवाद के समय यहां पहुंचने के लिए सेना को खच्चरों के लिए बने रास्ते का प्रयोग करना पड़ा था जिसमें सात घंटे का समय लगता था। इससे सबक लेते हुए मोदी सरकार ने यहां चारकोल की सड़क बनाने का आदेश दिया। इसका परिणाम यह हुआ अब यह दूरी महज चालीस मिनट में पूरी हो रही है।
डोकलाम की तरह कनेक्टीविटी विकसित करने हेतु मोदी सरकार ने दर्जनों परियोजनाएं शुरू की। इनमें से कई परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं जबकि कई पूरी होने को हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले कार्यकाल में असम में देश के सबसे लंबे पुल का उद्घाटन कर चुके हैं।
अरूणाचल प्रदेश में तवांग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। चीन इस पर अपना हक जताता रहा है। तवांग शेष भारत से सेला पास के जरिए जुड़ा है लेकिन सर्दियों में इसके बंद होने से यह इलाका देश के दूसरे हिस्सों से कट जाता है।
इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 फरवरी 2019 को सेला सुरंग परियोजना शुरू की। 36 महीने बाद जब यह परियोजना पूरी होगी तब तवांग व समीपवर्ती क्षेत्र हर मौसम में देश के दूसरे हिस्सों से जुड़ जाएंगे। अरूणाचल प्रदेश के दुर्गम इलाकों में जैसे–जैसे परियोजनाएं आगे बढ़ रही हैं वैसे-वैसे दूरियां घटती जा रही हें।
अरूणाचल प्रदेश की तरह लद्दाख क्षेत्र में सामरिक महत्व की कई सड़कों पर युद्ध स्तर पर काम चल रहा है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है लेह-कराकोरम राजमार्ग। इसमें लद्दाख में दरबुक-शियोक (डीएस) से दौलत बेग ओल्डी तक 225 किमी लंबी सड़क पूरी हो चुकी है।
इसी तरह मनाली-लेह राजमार्ग को सुरंग के जरिए हर मौसम में कार्यशील रहने वाला बनाया जा रहा है ताकि हिमाचल प्रदेश और लद्दाख बारहों महीने जुड़े रहें। इससे लद्दाख और कश्मीर तक पहुंचने का एक वैकल्पिक मार्ग मिल जाएगा।
समग्रत: भारत-चीन सीमा से लगते इलाकों में जो हालिया विवाद है उसका कारण भारत द्वारा सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का जाल बिछाना है। यदि 1962 में मिली करारी हार से सबक सीखते हुए कांग्रेसी सरकारों ने तभी से सीमावर्ती इलाकों का विकास किया होता तो आज यह स्थिति न पैदा होती। दुर्भाग्यवश आज भी कांग्रेस पार्टी इस संवेदनशील मसले पर मोदी सरकार का साथ नहीं दे रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)