पिछले दिनों हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मुलाकात ने दोनों देशों के दशकों पुराने रिश्ते को ऊर्जा से भर दिया है। दोनों नेताओं द्वारा अपने साझा बयान में लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक स्वतंत्रता, विधि के शासन और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करना रेखांकित करता है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों देश कदमताल को तैयार हैं। दोनों नेताओं ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ाने की मंशा जाहिर कर चीन को ताकीद कर दिया है कि उसकी विस्तारवादी नीति स्वीकार्य नहीं है।
बीते दिनों यूरोप की तीन दिवसीय यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मुलाकात ने दोनों देशों के दशकों पुराने रिश्ते को ऊर्जा से भर दिया है। दोनों नेताओं द्वारा अपने साझा बयान में लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक स्वतंत्रता, विधि के शासन और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करना रेखांकित करता है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों देश कदमताल को तैयार हैं।
दोनों नेताओं ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को आगे बढ़ाने की मंशा जाहिर कर चीन को ताकीद कर दिया है कि उसकी विस्तारवादी नीति स्वीकार्य नहीं है। फ्रांस ने आत्मनिर्भर भारत मुहिम का साझेदारी बनने के साथ-साथ 2025 तक बीस हजार भारतीय छात्रों को अपने यहां पढ़ाई का सुअवसर उपलब्ध कराने को तैयार है।
उल्लेखनीय है कि 2019 में 10 हजार भारतीय छात्रों ने फ्रांस में उच्च शिक्षा के लिए आवेदन किया था। इस मुहिम से दोनों देशों के बीच नए व्यवसायों, स्टार्ट-अप और नवाचार को गति मिलेगी और आर्थिक कारोबार बढ़ेगा।
दोनों देश आतंकवाद के मसले पर कंधा जोड़ने और आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने को तैयार हैं। गौरतलब है कि आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने के लिए इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ‘नो मनी फाॅर टेरर’ का तीसरा संस्करण भारत में होने जा रहा है। गौर करें तो भारत और फ्रांस के बीच बढ़ती निकटता ने दोनों देशों के कारोबारी रणनीति और सामरिक कूटनीति को नए क्षितिज पर पहुंचा दिया है।
दोनों देश एकदूसरे के सैनिक अड्डे का इस्तेमाल और वहां अपने युद्धपोत रखने के अलावा ऊर्जा, तस्करी, आव्रजन, शिक्षा, रेलवे, पर्यावरण, परमाणु, आतंकवाद और अंतरिक्ष मामलों में मिलकर काम कर रहे हैं। इसी साझेदारी और समझदारी का परिणाम है कि आज भारत में विदेशी निवेश के लिहाज से फ्रांस तीसरा सबसे बड़ा निवेशक देश बन चुका है।
भारत में 1000 से अधिक फ्रांस की कंपनियां काम कर रही हैं और सभी कंपनियों का संयुक्त टर्नओवर तकरीबन 30 अरब डाॅलर से अधिक है। फ्रांस भारत का भरोसेमंद दोस्त इसलिए भी है कि जब परमाणु परीक्षण से नाराज दुनिया के ताकतवर मुल्क भारत पर प्रतिबंध थोप रहे थे तब (1998) फ्रांस ने भारत के साथ रणनीतिक समझौते को आयाम दिया।
इसके अलावा 1962 में भारत व फ्रांस के बीच क्षेत्रों के हस्तांतरण संबंधी संधि के अनुमोदन ने दोनों देशों के संबंधों में मिठास घोली। उल्लेखनीय तथ्य यह कि फ्रांस सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारतीय प्रयास का समर्थन करने वाले प्रथम देशों में से एक था। फ्रांस आज भी अपने वहीं पुराने रुख पर कायम है।
दरअसल दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व में कई द्विपक्षीय तथा अंतर्राष्ट्रीय विषयों के संबंध में समान सोच है और इस समानता के विकास का मुख्य कारण दोनों देशों के नेताओं द्वारा एकदूसरे के यहां यात्राएं करने से उत्पन हुआ सद्भाव है। हालांकि विदेश नीति के विरोधी अभिमुखन के कारण दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों पर कई बार विरोधी रुख भी अपनाए हैं।
उदाहरण के तौर पर हिंद-चीन क्षेत्र की स्वतंत्रता मुद्दे पर जहां भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र की आजादी की बात पर बल दिया, वहीं फ्रांस लगातार औपनिवेशिक स्थिति बनाए रखने का पक्षधर था। दोनों देशों ने मोरक्को, तुनीसिया और अल्जीरिया की उपनिवेशिक स्थिति पर विरोधात्मक विचार प्रकट किए। 1956 में मिस्र द्वारा स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर भारत ने बहुत सशक्त रुप से फ्रांस व ब्रिटेन के संयुक्त प्रयास का विरोध किया।
इस संयुक्त हस्तक्षेप के विरोध में भारत ने मिस्र का साथ दिया। 1958 में डी गाॅल के फ्रांस के सत्ता संभालने के बाद दोनों देशों के संबंधों में बदलाव आना शुरु हो गया। 1959 में दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग विकसित करने की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। आर्थिक संबंधों में सुधार के कारण दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने की कोशिश की तथा व्यापार के उचित आदान-प्रदान हेतु एक संयुक्त आयोग की स्थापना की।
1973 में फ्रांस के तत्कालीन अर्थव्यवस्था एवं वित्तमंत्री वेलेरी जिसकार्ड जो बाद में फ्रांस के राष्ट्रपति भी बने, की पहल पर ‘भारत-फ्रांस अध्ययन समूह’ की स्थापना हुई। इस समूह की पहली बैठक फरवरी 1974 में फ्रांस में हुई तथा दूसरी बैठक मार्च 1975 में नई दिल्ली में हुई। इस समूह की सलाह पर दोनों देशों के मध्य समुद्री तेल उत्खनन, शक्ति उत्पादन व वितरण, कोयला उत्खनन व प्रयोग तथा तीसरे देश में संयुक्त उद्यम स्थापित करने संबंधित कई अहम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। भारत मुख्य रुप से फ्रांस से मशीनरी एवं कलपुर्जे मंगाता है।
भारत को फ्रांस की ओर से राफेल युद्धक विमान प्राप्त हुए हैं। गौरतलब है कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध चलाए जा रहे सैन्य अभियान में राफेल अपनी उपयोगित साबित कर चुका है। द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोगों के अतिरिक्त दोनों देशों के मध्य स्थित सद्भावना ने दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊंचाई दी है। प्रारंभ से ही दोनों देशों के मध्य जनसाधारण में सहयोग विकसित करने हेतु द्विपक्षीय सांस्कृतिक व वैज्ञानिक आदान-प्रदान करने की भावना प्रबल रही है।
दोनों देशों ने ‘भारत महोत्सव’ (1985) तथा ‘फ्रांस महोत्सव’ (1989) का आयोजन किया। दोनों देशों ने वर्ष 2007-2010 के लिए ‘संास्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम’ पर हस्ताक्षर किया और 2016 से 2018 के लिए ‘सांस्कृतिक आदान-प्रदान’ समझौते को मूर्त रुप देने का संकल्प जाहिर किया है। दोनों देशों के नेतृत्व के बीच बढ़ती निकटता दोनों देशों के हित में तो है ही साथ ही वैश्विक संतुलन साधने की दिशा में भी एक क्रांतिकारी पहल है।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)