आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की पहल

रिजर्व बैंक की नई व्यवस्था के तहत बैंकों को 31 जनवरी से 31 जुलाई के बीच एमएसएमई, आवास और वाहनों के लिए दिए गए ऋण के बराबर राशि के लिए अपनी जमा राशि पर 5 सालों तक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होगी।

ले ही मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने सर्वसम्मति से 6 फरवरी, 2020 की मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को 5.15 प्रतिशत पर यथावत रखने का फैसला किया, लेकिन दूसरे उपायों से केंद्रीय बैंक, बैंकों को सस्ती पूँजी उपलब्ध करायेगा। रिजर्व बैंक का कहना है कि भविष्य में जरूरत पड़ने पर वह दरों में कटौती भी कर सकता है। अभी मुद्रास्फीति की दर 7.4 प्रतिशत है और ऐसी स्थिति में दरों में कटौती की फिलवक्त कोई गुंजाइश नहीं है। 

रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में सीपीआई मुद्रास्फीति के 6.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान लगाया है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में इसके 5.4 प्रतिशत से 5.00 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। वहीं, वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में इसके 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। 

इसके अलावा, वित्त वर्ष 2020-21 में आर्थिक वृद्धि दर के 6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में 5.5 प्रतिशत से 6.2 प्रतिशत रह सकता है और वित्त वर्ष 2020-21 की तीसरी तिमाही में यह 6.2 प्रतिशत रह सकता है।

सांकेतिक चित्र

भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में बैंकों के लिए पूँजी की लागत को कम करने के लिए गैर-परंपरागत उपायों का सहारा लिया है अर्थात अब रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में कटौती किये बिना बैंकों को सस्ती पूँजी उपलब्ध करायेगा, ताकि बैंक अपनी उधारी दरों में और भी कटौती कर सकें। फिलहाल, खपत एवं मांग को पटरी पर लाने के लिए खुदरा उधारी को बढ़ावा देना जरूरी है। 

रिजर्व बैंक की नई व्यवस्था के तहत बैंकों को 31 जनवरी से 31 जुलाई के बीच एमएसएमई, आवास और वाहनों के लिए दिए गए ऋण के बराबर राशि के लिए अपनी जमा राशि पर 5 सालों तक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बनाए रखने की आवश्यकता नहीं होगी। 

अभी बैंक अपनी कुल जमा राशि की 4 प्रतिशत रकम सीआरआर के रूप में रखते हैं। इस पहल से बैंकों के पास सस्ती पूँजी उपलब्ध हो सकेगी और बैंकों द्वारा ऋण वितरण करने से आर्थिक गतिविधियों में तेजी भी आयेगी।  

रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा है कि वे 6 महीनों के दौरान ऋण के रूप में दी गई राशि के बराबर रकम को अपने कुल जमा आधार से अलग कर सकते हैं और उन्हें इस राशि पर 5 सालों तक सीआरआर बनाए रखने की जरूरत नहीं होगी। जानकारों का कहना है कि 5 सालों की अवधि बैंकों के लिए पर्याप्त है। 

आवास ऋण लंबे समय तक चल सकता है, जबकि वाहन ऋण की अवधि सात साल होती है। इस दौरान ऋण पोर्टफोलियो में कई बदलाव आयेंगे, क्योंकि सभी खुदरा ऋणों को अब रेपो दर से जोड़ दिया गया है, जिसकी हर 3 महीनों में समीक्षा की जाती है। फिर भी केंद्रीय बैंक की इस नई पहल से ग्राहकों को उधारी दरों में कटौती का लाभ मिलने की संभावना बढ़ गई है।  

रिजर्व बैंक की कोशिश बैंकों के लिए पूँजी की लागत को कम करना है। इस उपाय के साथ  दीर्घकालिक रेपो परिचालन (एलटीआरओ) की मदद से बैंकों के लिए जमा दरों में कमी किए बिना पूँजी की लागत को कम किया जा सकता है। 

रिजर्व बैंक, बैंकों को सस्ती पूँजी मुहैया कराने की कोशिश इसलिए कर रहा है, क्योंकि बैंकों का अब तक यह कहना रहा है कि अगर जमा दरों में कटौती नहीं होगी तो वे उधारी दरों में कमी नहीं कर सकते हैं और जमा दरों में कमी से ग्राहक ज्यादा प्रतिफल के लिए किसी और वित्तीय संस्थान का रुख कर सकते हैं। 

रिजर्व बैंक के मौजूदा रुख से ऐसा लग रहा है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये वह नियमों में बदलाव जारी रखेगा। नकदी के मामले में रिजर्व बैंक कह रहा है कि इसकी समस्या बैंकों को आने वाले दिनों में नहीं होगी, क्योंकि विदेशी निवेशक ज्यादा प्रतिफल की तलाश में भारत में निश्चित रूप से निवेश करेंगे, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी विश्व के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर स्थिति में है।  

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह भी कहा कि नीतिगत दर में पहले की गई कटौती का पूरा फायदा बैंक के कर्जदारों को नहीं मिला है। बैंकों को दरों में कटौती का पूरा फायदा ग्राहकों को जल्दी से जल्दी देना चाहिये। अभी भी बैंकों के पास इस लाभ को बैंक कर्जदारों तक पहुंचाने की काफी गुंजाइश बची है।   

मौद्रिक समीक्षा के अगले दिन यानी 7 फरवरी, 2020 को भारतीय स्टेट बैंक ने उधारी दरों में 5 बेसिस पॉइंट की कटौती की, जो 10 फरवरी से लागू हो गया। उम्मीद है कि दूसरे बैंक भी जल्द ही अपने उधारी दरों में कटौती करेंगे। दिसंबर, 2019 की मौद्रिक समीक्षा के बाद भी भारतीय स्टेट बैंक समेत अनेक बैंकों ने अपनी उधारी दरों में कटौती की थी। 

खपत और माँग में तभी तेजी आयेगी, जब कारोबारियों और आम आदमी को सस्ती दर पर कर्ज उपलब्ध होगा। इस मामले में बैंकों ने सकारात्मक पहल की है, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने की संभावना बढ़ी है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)