विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ‘मन की बात’ में भारतीय खेलों को बेहतर बनाने की बात कही तो भारतीय खेल और खिलाड़ियों के साथ-साथ देशवासियों को उम्मीद की एक नयी किरण दिखाई दी। दरअसल यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर पूरे देश को मिलकर विचार करना पड़ेगा। यह केवल अकेले सरकार का मसला नहीं है। हर बार जब देश के खिलाड़ी पदक जीतने में बहुत अधिक कामयाब नहीं होते हैं तो देश भर में एक चर्चा आम हो जाती है कि आखिर इतनी बड़ी आबादी में से नाम मात्र के खिलाड़ी ही पदक क्यों जीत पाते हैं ? लेकिन, कभी भी किसी भी स्तर पर इसके समाधान के बारे नहीं सोचा गया, जिसका परिणाम यह हुआ है कि दशकों से देश में खेल के लिए अनुकूल माहौल नहीं बन पाया। देश में उम्दा खिलाड़ियों का निरंतर अभाव बना रहा। इस का मुख्य कारण है कि देश भर के तमाम खेल संगठनों पर प्रशासनिक अधिकारियों और नेता कब्जा किए बैठे हैं, जिन लोगों का खिलाड़ियों के प्रति ना तो व्यवहार ठीक होता है और ना ही खेल के प्रति उनके मन में कोई सकारात्मक उत्साह ही होता है।
पूर्व में जब किसी भी टीम के साथ जो प्रतिनिधिमंडल खिलाडियों विदेशों में जाते थे, तो उनको हर सुख-सुविधा खिलाड़ियों से बेहतर दिया जाता था साथ ही पैसा भी खिलाड़ियों से ज्यादा मिलता था। लेकिन, मोदी सरकार ने इस विसंगति को ध्यान में रखते हुए अब सबको समान सुविधाएं और रकम देने की पहल की है। भारतीय खिलाड़ियों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी, विदेश दौरे के समय भोजन की। चूंकि, अधिकांश भारतीय खिलाड़ी शाकाहरी होते थे, इसलिए उनको खाने को लेकर बहुत समस्या होती थी। मोदी सरकार ने इस समस्या को भी संज्ञान में लिया है और रिओ ओलंपिक में गए खिलाड़ियों को उनके पसंद के अनुसार भारतीय व्यंजन परोसने की व्यवस्था की गयी है।
लेकिन अब परिस्थितिया बदल रही हैं, वर्तमान में सबसे संतोषप्रद बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समस्या से बखूबी वाकिफ ही नहीं है, अपितु इसका समाधान करने की भी कोशिश कर रहे हैं। पूर्व में जब किसी भी टीम अथवा दल के साथ जो प्रतिनिधिमंडल खिलाड़ियों के साथ विदेशों में जाते थे, तो उनको हर सुख-सुविधा खिलाड़ियों से बेहतर दी जाती थी साथ ही पैसा भी खिलाड़ियों से ज्यादा मिलता था। लेकिन मोदी सरकार ने इस विसंगति को ध्यान में रखते हुए अब सबको समान सुविधाएं और रकम देने की पहल की है। भारतीय खिलाड़ियों की दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी, विदेश दौरे के समय भोजन की। चूंकि, अधिकांश खिलाड़ी शाकाहरी होते थे, इसलिए उनको खाने को लेकर बहुत समस्या होती थी। मोदी सरकार ने इस समस्या को भी संज्ञान में लिया है और रिओ ओलंपिक में गए खिलाड़ियों को उनके पसंद के अनुसार भारतीय व्यंजन परोसने की व्यवस्था की गयी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस पहल से खिलाड़ियों के स्वास्थ्य पर तो अनुकूल असर पड़ेगा ही, उनको मानसिक स्तर पर भी बल मिलेगा, जिससे वे बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे।
प्रधानमंत्री की दूसरी और सबसे सराहनीय पहल खुद को डाकिए की भूमिका में प्रस्तुत करना है। दरअसल जब भारत के खिलाड़ी रियो में पदक के लिए अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहे होंगे तभी देश अपनी आजादी की वर्षगांठ मना रहा होगा। उसदिन देश भर से आए शुभकामनाओं को खिलाड़ियों तक प्रेषित करने के लिए प्रधानमंत्री ने खुद को एक डाकिए के तौर पर देशवासिायों के सामने पेश किया है, जो भारतीय खेल के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। और इससे भी खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलेगा। प्रधानमंत्री ने संसदीय लोकतंत्र को और भी गौरवशाली बनाने की दृष्टी से इस बार लीक से हटते हुए 15 अगस्त को लाल किले से दिए जाने वाले भाषण के लिए देश भर से प्रस्ताव और सुझाव आमंत्रित किया है। प्रधानमंत्री के इस पहल से और आजादी के भाषण से देशवासियों को जोड़ने से भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और प्रगति को नया मुकाम हासिल करने में सफलता मिलेगी। भारतीय लोकतंत्र में यह पहला मौका है, जब किसी प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के लिए देशवासियों से सुझाव माँगा है। इससे हर देशवासी खुद को प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ महसूस करेगा, जो आने वाले दिनो के लिए अच्छा संकेत है।