हर देश वासी के लिए यह गर्व का प्रसंग होना चाहिये कि अब हमारा देश दुनिया के उन देशों की गिनती में आता है जो कि स्वदेशी तकनीक से बड़े एयर क्राफ्ट कैरियर को बनाते हैं। INS विक्रांत भी स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है। खास बात यह है कि इसके एयरबेस में जो स्टील लगा है, वो स्टील भी स्वदेशी है। इसका निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है।
बीते दिनों देश एक ऐतिहासिक और गौरवपूर्ण पल का साक्षी बना। भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को देश को समर्पित किया गया। भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत का चालू होना भारत की आजादी के 75 साल के अमृतकाल के दौर में देश के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है और यह देश के आत्मविश्वास और कौशल का प्रतीक भी है। यह स्वदेशी विमानवाहक पोत देश के तकनीकी कौशल का प्रमाण है।
आइएनएस विक्रांत के चालू होने के साथ हमारा देश विश्व के उन विशिष्ट देशों के क्लब में प्रवेश कर गया है जो स्वयं अपने लिए विमान वाहक बना सकते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आईएनएस विक्रांत अत्याधुनिक स्वचालित विशेषताओं से लैस है और वह भारत के सामुद्रिक इतिहास में अब तक का सबसे विशाल स्वनिर्मित पोत है। विक्रांत के नौसेना में शामिल होने के साथ भारत के पास दो सक्रिय विमान वाहक पोत हो गये हैं, जिनसे देश की समुद्री सीमाओं की रक्षा में मदद मिलेगी।
‘मेक इन इंडिया’ के तहत विकसित पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को इस दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इसका डिजाइन भारतीय नौसेना की अपनी संस्था वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि इस पर ब्रिटिश काल का ध्वज अभी तक उपयोग में लाया जा रहा था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिकता का एक प्रतीक था। आश्चर्यजनक है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने इसे हटाने पर कभी ध्यान नहीं दिया। अब चूंकि भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी विचार को नियोजित करता जा रहा है, ऐसे में औपनिवेशक काल के काले अतीत से निकलकर आने का यह सुखद समय है।
कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड में पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आईएनएस विक्रांत के लोकार्पण के साथ ही नौसेना के भी नए निशान Ensignia का अनावरण किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित अन्य अधिकारियों की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने अपने भाषण में देश के तेजी से आत्मनिर्भर एवं सशक्त होने का संकेत दिया।
हर देश वासी के लिए यह गर्व का प्रसंग होना चाहिये कि अब हमारा देश दुनिया के उन देशों की गिनती में आता है जो कि स्वदेशी तकनीक से बड़े एयर क्राफ्ट कैरियर को बनाते हैं। आईएनएस विक्रांत भी स्वदेशी सामर्थ्य, स्वदेशी संसाधन और स्वदेशी कौशल का प्रतीक है। खास बात यह है कि इसके एयरबेस में जो स्टील लगा है, वो स्टील भी स्वदेशी है। इसका निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है।
देश के इस पहले स्वदेशी रूप से निर्मित एयर क्राफ्ट कैरियर आइएनएस विक्रांत में भिलाई इस्पात संयंत्र का विशेष ग्रेड का स्टील लगा है। इस पोत के निर्माण में भिलाई इस्पात संयंत्र सहित सेल की दो अन्य यूनिट से कुल 30 हजार टन विशेष स्टील की आपूर्ति की गई है। भारतीय नौसेना के पहले स्वदेशी एयर क्राफ्ट कैरियर के निर्माण के लिए करीब 30 हजार टन डीएमआर ग्रेड स्पेशियलिटी स्टील की जरूरत थी।
इसे पूरा करने देश की सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न स्टील उत्पादक कंपनी स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के भिलाई इस्पात संयंत्र, बोकारो इस्पात संयंत्र एवं राउरकेला इस्पात संयंत्र को जिम्मेदारी दी गई थी। कंपनी की इस तीनों यूनिट ने इस बड़ी उपलब्धि को हासिल करने के साथ आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में भागीदारी निभाई।
भिलाई इस्पात संयंत्र ने डीएमआर ग्रेड के विशेष प्लेट्स को भारतीय नौसेना और डीएमआरएल के सहयोग से विकसित किया है। इस युद्धपोत के पतवार और पोत के अंदरूनी हिस्सों के लिए विशेष ग्रेड 249 ए और उड़ान डेक के लिए ग्रेड 249 बी की डीएमआर प्लेटों का उपयोग किया गया। इस युद्धपोत के लिए बल्ब बार को छोड़कर, स्पेशियलिटी स्टील की पूरी सेल के तीनों यूनिट द्वारा की गई है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)